पौष पुत्रदा एकादशी व्रत कथा | Paush Putrada Ekadashi Vrat Katha

॥ एकादशी का महत्त्व ॥
पौष का महीना बहुत पावन माना जाता है, इस महीने में आने वाली एकादशियां, अमावस्या एवं पूर्णिमा का भी विशेष महत्व माना जाता है। अमावस्या जहां पितरों की शांति के लिये तर्पण आदि करने के लिये शुभ मानी जाती है तो वहीं पूर्णिमा मोक्षदायिनी। लेकिन जब बात सांसारिक सुखों व जीवन की आती है तो संतान का सुख सर्वोपरि नज़र आने लगता है। संतान सुख की प्राप्ति के लिये ही बहुत खास दिन माना जाता है पौष मास की शुक्ल एकादशी को।
इस एकादशी को पुत्रदा एकादशी भी कहा जाता है। श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि भी पुत्रदा एकादशी कहलाती है।वैसे तो हिंदू धर्म के अनुयायियों के लिये सभी एकादशियां अपना विशेष महत्व रखती हैं लेकिन पौष मास व श्रावण मास की शुक्ल एकादशियों को संतान प्राप्ति के लिये बहुत ही विशेष दिन माना जाता है। कहते हैं इस दिन विधिपूर्वक व्रत रखने व भगवान विष्णु की पूजा करने से संतान का सुख मिलता है। यहां तक इस एकादशी व्रत की कथा सुनने या पढ़ने मात्र से ही वाजपेय यज्ञ के समान फल मिलता है।
॥ पूजन सामग्री ॥
पूजन सामग्री को व्यवस्थित रूप से ( पूजन शुरू करने के पूर्व ) पूजा स्थल पर जमा कर रख लें, जिससे पूजन में अनावश्यक व्यवधान न हो।
यदि इनमे से कुछ सामग्री ना जुटा सकें तो कोई बात नहीं, जितनी सामग्री सहर्ष जुटा सकें उसी से भक्ति भावना से पूजा करें। क्योंकि कहा जाता है भगवान भावना से प्रसन होते है, सामग्री से नहीं।
- चौकी, रोली, मौली, अक्षत ( साबुत चावल )
- दीपक, शुद्ध देशी घी, रुई, धूपबत्ती, फूल, अष्टगंध
- अगरबत्ती, कपूर, तुलसीदल, जनेऊ, जल का कलश।
- प्रसाद के लिए गेंहू के आटे की पंजीरी, फल, दूध, मिठाई, नारियल, पंचामृत, सूखे मेवे, शक्कर, पान में से जो भी हो सवाया लें।
- दक्षिणा।
॥ पूजन का मंडप ॥
पूजन को शुरु करने से पहले मंडप तैयार कर लें।
- सबसे पहले पूजा के स्थान को साफ कर लें।
- अब पूर्व या उत्तर की ओर मुख कर बैठे।
- पूजा वाले स्थान को साफ करके चौकी स्थापित करनी चाहिए।
- चौकी पर शुभ चिह्न स्वस्तिक बनाएं।
- चौकी पर साफ लाल रंग का कपड़ा बिछाएं।
- अब भगवान श्री गणेश एवं भगवान विष्णु की तस्वीर रखें। श्री कृष्ण या सत्यनारायण की प्रतिमा की भी स्थापना कर सकते है।
- अब बायी ओर दीपक रखें।
- चौकी के सामने पूजन की थाली व जल भरकर कलश रखें।
- पूजन की थाली में रोली से एक स्वास्तिक बनाते है। इस थाली में ही, फूल, मिठाई, रोली, मौली, सुपारी, पान, चावल, कपूर, धूप, अगरबत्ती, एक दीपक, जल कलश रखे ।
पौष पुत्रदा एकादशी व्रत कथा | Paush Putrada Ekadashi Vrat Katha
धर्मराज युधिष्ठिर कहने लगे कि हे जनार्दन ! मैंने पौष माह कृष्ण पक्ष एकादशी अर्थात सफला एकादशी का सविस्तार वर्णन सुना। अब आप कृपा करके मुझे पौष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी के विषय में भी बतलाइये। इस एकादशी का क्या नाम है तथा इसके व्रत का क्या विधान है? इसकी विधि क्या है? इसका व्रत करने से किस फल की प्राप्ति होती है? कृपया यह सब विधानपूर्वक कहिए।
भगवान श्रीकृष्ण बोले : पौष माह के शुक्ल पक्ष मे आने वाली इस एकादशी को पुत्रदा एकादशी कहा जाता है। इस एकादशी के देवता श्रीनारायण हैं। विधिपूर्वक इस व्रत को करना चाहिए। जिस प्रकार नागों में शेषनाग, पक्षियों में गरुड़, सब ग्रहों में चंद्रमा, यज्ञों में अश्वमेध और देवताओं में भगवान विष्णु श्रेष्ठ हैं, उसी तरह सब व्रतों में एकादशी का व्रत श्रेष्ठ है। जो मनुष्य सदैव एकादशी का व्रत करते हैं, वे मुझे परम प्रिय हैं।
इस एकादशी से सम्बंधित जो कथा प्रचलित है, उसे मैं तुम्हें सुनाता हूँ, श्रद्धा पूर्वक श्रवण करो।
प्राचीन समय में भद्रावती नगरी में सुकेतुमान नाम का एक राजा राज्य करता था। उसके कोई संतान नहीं थी। उसकी पत्नी का नाम शैव्या था। उस संतानहीन राजा के मन में इस बात की बड़ी चिंता थी कि उसके बाद उसे और उसके पूर्वजों को कौन पिंडदान देगा। उसके पितर भी व्यथित हो पिंड लेते थे कि सुकेतुमान के बाद हमें कौन पिंड देगा।
इधर राजा भी बंधु-बांधव, राज्य, हाथी, घोड़ा आदि से संतुष्ट नहीं था। उसका एकमात्र कारण संतानहीन होना था। बिना संतान के पितरों और देवताओं से उऋण नहीं हो सकते। इस तरह राजा रात-दिन इसी चिंता में घुला करता था। इस चिंता के कारण एक दिन वह इतना दुखी हो गया कि उसके मन में अपने शरीर को त्याग देने की इच्छा उत्पन्न हो गई, किंतु वह सोचने लगा कि आत्महत्या करना तो महापाप है, अतः उसने इस विचार को मन से निकाल दिया।
एक दिन इन्हीं विचारों में डूबा हुआ वह घोड़े पर सवार होकर वन को चल दिया। घोड़े पर सवार राजा वन, पक्षियों और वृक्षों को देखने लगा। उसने वन में देखा कि मृग, बाघ, सिंह, बंदर आदि विचरण कर रहे हैं। हाथी शिशुओं और हथनियों के बीच में विचर रहा है। उस वन में राजा ने देखा कि कहीं तो सियार कर्कश शब्द निकाल रहे हैं और कहीं मोर अपने परिवार के साथ नाच रहे हैं। वन के दृश्यों को देखकर राजा और ज्यादा दुखी हो गया कि उसके संतान क्यों नहीं हैं? इसी सोच-विचार में दोपहर हो गई।
वह सोचने लगा कि मैंने अनेक यज्ञ किए हैं और ब्राह्मणों को भोजन कराया है, किंतु फिर भी मुझे यह दुख क्यों मिल रहा है? आखिर इसका कारण क्या है? अपनी व्यथा किससे कहूं? कौन मेरी व्यथा का समाधान कर सकता है?अपने विचारों में खोए राजा को प्यास लगी। वह पानी की तलाश में आगे बढ़ा। कुछ दूर जाने पर उसे एक सरोवर मिला। उस सरोवर में कमल पुष्प खिले हुए थे। सारस, हंस, घड़ियाल आदि जल-क्रीड़ा में मग्न थे। सरोवर के चारों तरफ ऋषियों के आश्रम बने हुए थे। राजा इस नज़ारे को देखकर हैरान रह गये पहले तो उन्हें यहां पर ऐसा मंजर देखने को नहीं मिला था। वह मुनियों को दंडवत प्रणाम कर उनके पास बैठ गया और मुनियों से पूछा हे महात्माओ आप लोग कौन हैं और यहां कैसे आना हुआ है, मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूं। मुनियों ने कहा राजन हम विश्वदेव हैं और इस सरोवर में स्नान करने के लिये आये हैं। आज पुत्रदा एकादशी का दिन हैं।
पुत्र का नाम सुनते ही राजा का सारा दुख आंसुओं के जरिये बाहर आने लगा और मुनियों से गिड़गिड़ाकर बोले हे मुनिवर मैं संतान के सुख से वंचित हूं अत: मुझे भी कोई उपाय बतायें जिससे मेरे आंगन में भी किलकारी गूंजे। मुनियों ने कहा राजन आज का दिन बहुत शुभ है पौष मास की शुक्ल एकादशी है तुम इसका विधिपूर्वक उपवास करो, तुम्हारी मनोकामना जरुर पूरी होगी।
राजा ने मुनि के वचनों के अनुसार उस दिन उपवास किया और द्वादशी को व्रत का पारण किया और ऋषियों को प्रणाम करके वापस अपनी नगरी आ गया। भगवान श्रीहरि की कृपा से कुछ दिनों बाद ही रानी ने गर्भ धारण किया और नौ माह के पश्चात उसके एक तेजस्वी पुत्र उत्पन्न हुआ। यह राजकुमार बड़ा होने पर अत्यंत वीर, धनवान, यशस्वी और प्रजापालक बना।
श्रीकृष्ण ने कहा- हे पाण्डुनंदन ! संतान की प्राप्ति के लिए पुत्रदा एकादशी का उपवास करना चाहिए संतान प्राप्ति के लिए इससे बढ़कर दूसरा कोई व्रत नहीं है।जो कोई व्यक्ति पुत्रदा एकादशी के महात्म्य को पढ़ता व श्रवण करता है तथा विधानानुसार इसका उपवास करता है, उसे सर्वगुण सम्पन्न संतान की प्राप्ति होती है। श्रीहरि की अनुकम्पा से वह मनुष्य मोक्ष को प्राप्त करता है।