अक्षय तृतीया | आखा तीज व्रत कथा | Akshay Tritiya | Aakha Teej Vrat Katha

तीज व्रत कथाएँ

॥ तीज का महत्त्व ॥

हिन्दू धर्म में साल में चार तीज मनाई जाती है। हर तीज का अपना अलग महत्व है, और ये सभी बड़ी धूमधाम से यहाँ मनाई जाती है।
अक्षय तृतीया वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि के दिन मनाई जाती है। इस दिन देवी लक्ष्मी और विष्णु भगवान की पूजा की जाती है। इसे आखा तीज और अक्ति के नाम से भी जाना जाता है।

अक्षय तृतीया एक महत्वपूर्ण दिन है। हिन्दू कैलेंडर में किसी महीने में कोई तिथि घट भी सकती है और बढ़ भी सकती है। जैसे किसी महीने में ग्यारस तिथि दो बार आ सकती है या किसी महीने में दशमी तिथि के बाद अगले दिन बारस तिथि हो सकती है।
लेकिन अक्षय तृतीया एक ऐसी तिथि है जो कभी भी ना तो कम होती है ना ही बढ़ती है। इसीलिए इसका नाम अक्षय तृतीया है। अक्षय का मतलब है जिसका कभी भी क्षय नहीं होता।

1. अक्षय तृतीया/ अखा तीज : वैशाख शुक्ल पक्ष तृतीया तिथि
2. हरियाली तीज/ श्रावणी तीज/ सावन की तीज/ छोटी तीज : श्रावण शुक्ल पक्ष तृतीया तिथि
3. कजली तीज/ कजरी तीज/ बड़ी तीज/सातुड़ी तीज : भाद्रपद कृष्ण पक्ष तृतीया तिथि
4. हरतालिका तीज : भाद्रपद शुक्ल पक्ष तृतीया तिथि

॥ अक्षय तृतीया महत्त्व॥

यह दिन पृथ्वी के रक्षक श्री विष्णुजी को समर्पित है। हिन्दू धर्म की मान्यता के अनुसार विष्णुजी ने श्री परशुराम के रूप में धरती पर अवतार लिया था।
इस दिन परशुराम के रूप में विष्णुजी छटवी बार धरती पर अवतरित हुए थे, और इसीलिए यह दिन परशुराम के जन्मदिवस के रूप में भी मनाया जाता है।

धार्मिक मान्यता के अनुसार विष्णुजी त्रेता एवं द्वापरयुग तक पृथ्वी पर चिरंजीवी (अमर) रहे। परशुराम सप्तऋषि में से एक ऋषि जमदगनीतथा रेणुका के पुत्र थे।
यह ब्राह्मण कुल में जन्मे और इसीलिए अक्षय तृतीय तथा परशुराम जयंती को सभी हिन्दू बड़े धूमधाम से मनाते हैं।

वेद व्यास जी ने गणेशजी के साथ महाभारत लिखने की शुरुआत इसी दिन की थी।

अक्षय तृतीया के पीछे हिंदुओं की एक और रोचक मान्यता है। जब श्री कृष्ण ने धरती पर जन्म लिया, तब अक्षय तृतीया के दिन उनके निर्धन मित्र सुदामा, कृष्ण से मिलने पहुंचे।
सुदामा के पास कृष्ण को देने के लिए सिर्फ चार चावल के दाने थे, वही सुदामा ने कृष्ण के चरणों में अर्पित कर दिये।
परंतु अपने मित्र एवं सबके हृदय की जानने वाले अंतर्यामी भगवान सब कुछ समझ गए और उन्होने सुदामा की निर्धनता को दूर करते हुए उसकी झोपड़ी को महल में परिवर्तित कर दिया और उसे सब सुविधाओं से सम्पन्न बना दिया।

इस दिन महाभारत का युद्ध समाप्त हुआ था और त्रेता युग की शुरुआत हुई थी।

महाभारत में अक्षय तृतीया की एक और कथा प्रचलित है। इसी दिन दुशासन ने द्रौपदी का चीरहरण किया था। द्रौपदी को इस चीरहरण से बचाने के लिए श्री कृष्ण ने कभी न खत्म होने वाली साड़ी का दान किया था।

माना जाता है कि इस दिन किया गया जप तप, पितृ तर्पण, दान पुण्य आदि करने से का इसका फल हमेशा व्यक्ति के साथ रहता है , जिसका कभी क्षय नहीं होता।

किसी भी शुभ कार्य जैसे शादी, गृह प्रवेश, मकान बनाना, नये व्यापार की शुरुआत आदि के लिए अक्षय तृतीया का दिन अबूझ मुहूर्त वाला दिन कहलाता है अर्थात बिना किसी संकोच के किसी भी कार्य की शुरुआत इस दिन की जा सकती है।

अक्षय तृतीया के दिन ही महर्षि वेदव्यास ने महाभारत लिखना आरंभ की थी। इसी दिन महाभारत के युधिष्ठिर को “अक्षय पात्र” की प्राप्ति हुई थी। इस अक्षय पात्र की विशेषता थी, कि इसमें से कभी भोजन समाप्त नहीं होता था।
इस पात्र के द्वारा युधिष्ठिर अपने राज्य के निर्धन एवं भूखे लोगों को भोजन दे कर उनकी सहायता करते थे। इसी मान्यता के आधार पर इस दिन किए जाने वाले दान का पुण्य भी अक्षय माना जाता है, अर्थात इस दिन मिलने वाला पुण्य कभी खत्म नहीं होता।
यह मनुष्य के भाग्य को सालों साल बढाता है।

जैन धर्म में इसे तीर्थंकर ऋषभनाथ द्वारा एक वर्ष के उपवास के बाद गन्ने का रस पीकर उपवास समाप्त करने के दिन के रूप में मनाया जाता है। जैन धर्म का पालन करने वाले लोग इस दिन सिर्फ गन्ने के रस पीकर व्रत करते है।

दूसरी मान्यता के अनुसार त्रेता युग के शुरू होने पर धरती की सबसे पावन माने जानी वाली गंगा नदी इसी दिन स्वर्ग से धरती पर आई। गंगा नदी को भागीरथ धरती पर लाये थे।
इस पवित्र नदी के धरती पर आने से इस दिन की पवित्रता और बढ़ जाती है और इसीलिए यह दिन हिंदुओं के पावन पर्व में शामिल है। इस दिन पवित्र गंगा नदी में डुबकी लगाने से मनुष्य के पाप नष्ट हो जाते हैं।

यह दिन रसोई एवं पाक (भोजन) की देवी माँ अन्नपूर्णा का जन्मदिन भी माना जाता है। अक्षय तृतीया के दिन माँ अन्नपूर्णा का भी पूजन किया जाता है और माँ से भंडारे भरपूर रखने का वरदान मांगा जाता है।
अन्नपूर्णा के पूजन से रसोई तथा भोजन में स्वाद बढ़ जाता है।

प्रसिद्ध साढ़े तीन मुहूर्त में अक्षय तृतीया का दिन भी शामिल है। इसके अलावा चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा, विजयादशमी, कार्तिक शुक्ल पक्ष प्रतिपदा वाले दिन भी साढ़े तीन मुहूर्त में गिने जाते है।

दक्षिण प्रांत में इस दिन की अलग ही मान्यता है। उनके अनुसार इस दिन कुबेर (भगवान के दरबार का खजांची) ने शिवपुरम नामक जगह पर शिव की आराधना कर उन्हें प्रसन्न किया था।
कुबेर की तपस्या से प्रसन्न हो कर शिवजी ने कुबेर से वर मांगने को कहा, कुबेर ने अपना धन एवं संपत्ति लक्ष्मीजी से पुनः प्राप्त करने का वरदान मांगा।

तभी शंकरजी ने कुबेर को लक्ष्मीजी का पूजन करने की सलाह दी। इसीलिए तब से ले कर आजतक अक्षय तृतीया पर लक्ष्मीजी का पूजन किया जाता है।
लक्ष्मी विष्णुपत्नी हैं, इसीलिए लक्ष्मीजी के पूजन के पहले भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। दक्षिण में इस दिन लक्ष्मी यंत्रम की पूजा की जाती है, जिसमें विष्णु, लक्ष्मीजी के साथ-साथ कुबेर का भी चित्र रहता है।

ज्योतिष के अनुसार अक्षय तृतीया के दिन सूर्य और चन्द्रमा अपनी सम्पूर्ण उच्च क्षमता के साथ बराबर चमक बिखेरते हैं।

वृंदावन स्थित श्री बांके बिहारी जी मन्दिर में भी केवल इसी दिन श्री विग्रह के चरण दर्शन होते हैं, अन्यथा वे पूरे वर्ष वस्त्रों से ढके रहते हैं।

चार धाम की यात्रा के भगवान बद्रीनाथ के दर्शन अक्षय तृतीया के दिन से खोले जाते है।

॥ पूजा विधि ॥

  • सुबह नहाकर स्वच्छ कपड़े पहनें।
  • सबसे पहले भगवान नारायण ( विष्णु जी ) व लक्ष्मी जी की प्रतिमा को जल से स्नान कराएं।
  • स्नान कराने के बाद प्रतिमा को सूखे व स्वच्छ कपड़े से पोंछकर यथास्थान स्थापित करें।
  • रोली व चन्दन का टीका लगाकर अक्षत अर्पित करें।
  • मौली अर्पित करें। 
  • माला , पुष्प आदि अर्पित करें।
  • दक्षिणा अर्पित करें।
  • भगवान को तुलसी-दल और नैवेद्य के रूप में मिश्री व भीगे हुए चनों का भोग अर्पित करें। खीचड़ा बनाया हो तो तुलसी का पत्ता डालकर उसे भगवान को अर्पित करें।
  • पान , लौंग , इलायची अर्पित करें।
  • पूजन के बाद कहानी सुननी चाहिए।
  • धूप , दीप से आरती करें। यथा संभव ब्राह्मण भोजन कराकर उन्हें दान दक्षिणा दें।

अक्षय तृतीया | आखा तीज | व्रत कथा

अक्षय तृतीया की कथा सुनने तथा विधि से पूजा करने से बहुत लाभ होता है। इस कथा का पुराणों में भी महत्व है। जो भी इस कथा को सुनता है, विधि से पूजन एवं दान आदि करता है, उसे सभी प्रकार के सुख, संपत्ति, धन, यश, वैभव की प्राप्ति होती है।
इसी धन एवं यश की प्राप्ति के लिए वैश्य समाज के धर्मदास नामक व्यक्ति ने अक्षय तृतीया का महत्त्व जाना।

बहुत पुरानी बात है, धर्मदास अपने परिवार के साथ एक छोटे से गाँव में रहता था। वह बहुत ही गरीब था। वह हमेशा अपने परिवार के भरण-पोषण के लिए चिंतित रहता था।
उसके परिवार में कई सदस्य थे। धर्मदास बहुत धार्मिक पृव्रत्ति का व्यक्ति था। एक बार उसने अक्षय तृतीया का व्रत करने का सोचा।

अक्षय तृतीया के दिन सुबह जल्दी उठकर उसने गंगा में स्नान किया। फिर विधिपूर्वक भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना एवं आरती की।
इस दिन अपने सामर्थ्यानुसार जल से भरे घड़े, पंखे, जौ, सत्तू, चावल, नमक, गेंहू, गुड़, घी, दही, सोना तथा वस्त्र आदि वस्तुएँ भगवान के चरणों में रख कर ब्राह्मणों को अर्पित की।

यह सब दान देख कर धर्मदास के परिवार वाले तथा उसकी पत्नी ने उसे रोकने की कोशिश की। उन्होने कहा कि अगर धर्मदास इतना सब कुछ दान में दे देगा, तो उसके परिवार का पालन –पोषण कैसे होगा।
फिर भी धर्मदास अपने दान और पुण्य कर्म से विचलित नहीं हुआ और उसने ब्राह्मणों को कई प्रकार का दान दिया।

उसके जीवन में जब भी अक्षय तृतीया का पावन पर्व आया, प्रत्येक बार धर्मदास ने विधि से इस दिन पूजा एवं दान आदि कर्म किया। बुढ़ापे का रोग, परिवार की परेशानी भी उसे, उसके व्रत से विचलित नहीं कर पायी।
अक्षय तृतीया के दिन किए गए दान-पुण्य व पूजन के कारण वह अपने अगले जन्म में बहुत धनी एवं प्रतापी राजा बना।
वह इतना धनी और प्रतापी राजा था कि त्रिदेव तक उसके दरबार में अक्षय तृतीया के दिन ब्राह्मण का वेष धारण करके उसके महायज्ञ में शामिल होते थे।

उनके राज्य में सभी प्रकार का सुख, धन, सोना, हीरे, जवाहरात, संपत्ति की किसी भी प्रकार से कमी नहीं थी। उनके राज्य में प्रजा बहुत सुखी थी।
अक्षय तृतीया के पुण्य प्रभाव से राजा को वैभव एवं यश की प्राप्ति हुई, लेकिन वे कभी लालच के वश नहीं हुए एवं अपने सत्कर्म के मार्ग से विचलित नहीं हुए। उन्हें उनके अक्षय तृतीया का पुण्य सदा मिलता रहा।

अपनी श्रद्धा और भक्ति का उसे कभी घमंड नहीं हुआ, वह प्रतापी राजा महान एवं वैभवशाली होने के बावजूद भी धर्म मार्ग से कभी विचलित नहीं हुआ।
माना जाता है कि यही राजा आगे के जन्मों में भारत के प्रसिद्ध सम्राट चंद्रगुप्त के रूप में पैदा हुए थे।

जैसे भगवान ने धर्मदास पर अपनी कृपा की वैसे ही जो भी व्यक्ति इस अक्षय तृतीया की कथा का महत्त्व सुनता है और विधि विधान से पूजा एवं दान आदि करता है, उसे अक्षय पुण्य एवं यश की प्राप्ति होती है।

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