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अपरा-अचला एकादशी व्रत कथा | Apara-Achala Ekadashi Vrat Katha

एकादशी व्रत कथाएँ

Apara Ekadashi

॥ एकादशी का महत्त्व ॥

अपरा एकादशी ज्येष्ठ महीने के कृष्णपक्ष की एकादशी को कहते हैं। इसे अचला एकादशी भी कहा जाता है । अपरा एकादशी के दिन जो व्यक्ति व्रत रखकर भगवान विष्णु और लक्ष्मी जी की विधिवत पूजा करता है, उसे धन संपदा सहित समस्त सांसारिक सुखों की प्राप्ति हो सकती है ।यह अपार धन देने वाली है। जो मनुष्य इस व्रत को करते हैं, वे संसार में प्रसिद्ध हो जाते हैं। इस दिन भगवान त्रिविक्रम की पूजा की जाती है। भगवान त्रिविक्रम में भगवान विष्णु, भगवान विट्ठल और बालाजी के दर्शन होते हैं।

एकादशी व्रत का व्रत जब किसी कामना के लिए किया जाता है तो उसे काम्य एकादशी व्रत कहते हैं। ऐसा व्रत धन, संपत्ति, संतान, आयु, स्वास्थ्य आदि की कामना से किया जाता है। यदि निष्काम भावना से यह व्रत किया जाता है तो इसे नित्य एकादशी व्रत कहा जाता है।

इस व्रत में भगवान की भक्ति ही मुख्य ध्येय होता है। पुराणों की व्याख्या करने वाले ब्रह्मज्ञानी श्री सूत जी महाराज ने एकादशी के महत्त्व और उनसे सम्बंधित कथाओं का वर्णन किया है।

उनके अनुसार इन्द्रियों पर नियमन यानि संयम करना आवश्यक होता है। इसलिए इसे नियम भी कहते हैं।एकादशी के व्रत नियम पूर्वक करने से बुद्धि निर्मल होने लगती है। विचारों में सत्व गुणों का आगमन होने लगता है। विवेक शक्ति आती है तथा सत असत का निर्णय स्वतः ही होने लगता है।

॥ पूजन सामग्री ॥

पूजन सामग्री को व्यवस्थित रूप से ( पूजन शुरू करने के पूर्व ) पूजा स्थल पर जमा कर रख लें, जिससे पूजन में अनावश्यक व्यवधान न हो।
यदि इनमे से कुछ सामग्री ना जुटा सकें तो कोई बात नहीं, जितनी सामग्री सहर्ष जुटा सकें उसी से भक्ति भावना से पूजा करें। क्योंकि कहा जाता है भगवान भावना से प्रसन होते है, सामग्री से नहीं।

  • चौकी, रोली, मौली, अक्षत ( साबुत चावल )
  • दीपक, शुद्ध देशी घी, रुई, धूपबत्ती, फूल, अष्टगंध
  • अगरबत्ती, कपूर, तुलसीदल, जनेऊ, जल का कलश।
  • प्रसाद के लिए गेंहू के आटे की पंजीरी, फल, दूध, मिठाई, नारियल, पंचामृत, सूखे मेवे, शक्कर, पान में से जो भी हो सवाया लें।
  • दक्षिणा।

॥ पूजन का मंडप ॥

पूजन को शुरु करने से पहले मंडप तैयार कर लें।

  • सबसे पहले पूजा के स्थान को साफ कर लें।
  • अब पूर्व या उत्तर की ओर मुख कर बैठे।
  • पूजा वाले स्थान को साफ करके चौकी स्थापित करनी चाहिए।
  • चौकी पर शुभ चिह्न स्वस्तिक बनाएं।
  • चौकी पर साफ लाल रंग का कपड़ा बिछाएं।
  • अब भगवान श्री गणेश एवं भगवान विष्णु की तस्वीर रखें। श्री कृष्ण या सत्यनारायण की प्रतिमा की भी स्थापना कर सकते है।
  • अब बायी ओर दीपक रखें।
  • चौकी के सामने पूजन की थाली जल भरकर कलश रखें।
  • पूजन की थाली में रोली से एक स्वास्तिक बनाते है। इस थाली में ही, फूल, मिठाई, रोली, मौली, सुपारी, पान, चावल, कपूर, धूप, अगरबत्ती, एक दीपक, जल कलश रखे

अपरा-अचला एकादशी व्रत कथा | Apara-Achala Ekadashi Vrat Katha

धर्मराज युधिष्ठिर भगवान श्री कृष्ण से कहते हैं : हे भगवन् ! आपने वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी अर्थात मोहिनी एकादशी के बारे मे विस्तार पूर्वक बतलाया। अब आप कृपा करके ज्येष्ठ कृष्ण एकादशी का क्या नाम है? तथा उसकी कथा क्या है? इस व्रत की क्या विधि है, कृपा कर यह सब विस्तारपूर्वक कहिए।
भगवान श्रीकृष्ण कहने लगे : हे राजन! ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को अचला एकादशी या अपरा एकादशी दोनो ही नामों से जाना जाता है।इस एकादशी से सम्बंधित जो कथा प्रचलित है, उसे मैं तुम्हें सुनाता हूँ, श्रद्धा पूर्वक श्रवण करो।

प्राचीन काल में महीध्वज नामक एक धर्मात्मा राजा था। उसका छोटा भाई वज्रध्वज बड़ा ही क्रूर, अधर्मी तथा अन्यायी था। वह अपने बड़े भाई से द्वेष रखता था। उस पापी ने एक दिन रात्रि में अपने बड़े भाई की हत्या करके उसकी देह को एक जंगली पीपल के नीचे गाड़ दिया। इस अकाल मृत्यु से राजा प्रेतात्मा के रूप में उसी पीपल पर रहने लगा। अब वह प्रेत बन गया था इसलिए स्वभाव वश आने जाने वालों को परेशान करने लगा और अनेक उत्पात करने लगा।

एक दिन अचानक धौम्य नामक ॠषि उधर से गुजरे। उन्होंने प्रेत को ज्ञानचक्षु से देखा और तपोबल से उसके अतीत को जान लिया। अपने तपोबल से प्रेत उत्पात का कारण समझा। उन्हे पता चला कि राजा प्रेत योनि से मुक्त होना चाहता है। ॠषि ने प्रेत को पीपल के पेड़ से उतारा तथा परलोक विद्या का उपदेश दिया।

दयालु ॠषि ने राजा की प्रेत योनि से मुक्ति के लिए स्वयं ही अपरा एकादशी का व्रत किया और उसे अगति से छुड़ाने को उसका पुण्य प्रेत को अर्पित कर दिया। इस पुण्य के प्रभाव से राजा की प्रेत योनि से मुक्ति हो गई। वह ॠषि को सप्रेम धन्यवाद देता हुआ दिव्य देह धारण कर पुष्पक विमान में बैठकर स्वर्ग को चला गया।

हे राजन ! यह अपरा एकादशी की कथा मैंने लोकहित के लिए कही है। इसे पढ़ने अथवा सुनने से मनुष्य सब पापों से छूट जाता है।

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