बृहस्पतिवार व्रत कथा | Brihaspativar Vrat Katha

॥ व्रत का महत्त्व ॥
इस व्रत को करने से समस्त इच्छएं पूर्ण होती है और वृहस्पति महाराज प्रसन्न होते है । धन, विघा, पुत्र तथा मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है । परिवार में सुख तथा शांति रहती है । इसलिये यह व्रत सर्वश्रेष्ठ और अतिफलदायक है ।इस व्रत में केले का पूजन ही करें । कथा और पूजन के समय मन, कर्म और वचन से शुद्घ होकर मनोकामना पूर्ति के लिये वृहस्पतिदेव से प्रार्थना करनी चाहिये । दिन में एक समय ही भोजन करें । भोजन चने की दाल आदि का करें, नमक न खाएं, पीले वस्त्र पहनें, पीले फलों का प्रयोग करें, पीले चंदन से पूजन करें । पूजन के बाद भगवान वृहस्पति की कथा सुननी चाहिये ।
॥ पूजन सामग्री ॥
पूजन सामग्री को व्यवस्थित रूप से ( पूजन शुरू करने के पूर्व ) पूजा स्थल पर जमा कर रख लें, जिससे पूजन में अनावश्यक व्यवधान न हो।
यदि इनमे से कुछ सामग्री ना जुटा सकें तो कोई बात नहीं, जितनी सामग्री सहर्ष जुटा सकें उसी से भक्ति भावना से पूजा करें। क्योंकि कहा जाता है भगवान भावना से प्रसन होते है, सामग्री से नहीं।
- चौकी, रोली, मौली, अक्षत ( साबुत चावल )
- दीपक, शुद्ध देशी घी, रुई, धूपबत्ती, फूल, अष्टगंध
- अगरबत्ती, कपूर, तुलसीदल, जनेऊ, जल का कलश।
- प्रसाद के लिए गेंहू के आटे की पंजीरी, फल, दूध, मिठाई, नारियल, पंचामृत, सूखे मेवे, शक्कर, पान में से जो भी हो सवाया लें।
- दक्षिणा।
॥ पूजन का मंडप ॥
पूजन को शुरु करने से पहले मंडप तैयार कर लें।
- सबसे पहले पूजा के स्थान को साफ कर लें।
- अब पूर्व या उत्तर की ओर मुख कर बैठे।
- पूजा वाले स्थान को साफ करके चौकी स्थापित करनी चाहिए।
- चौकी पर शुभ चिह्न स्वस्तिक बनाएं।
- चौकी पर साफ लाल रंग का कपड़ा बिछाएं।
- अब भगवान श्री गणेश एवं भगवान विष्णु की तस्वीर रखें। श्री कृष्ण या सत्यनारायण की प्रतिमा की भी स्थापना कर सकते है।
- अब बायी ओर दीपक रखें।
- चौकी के सामने पूजन की थाली व जल भरकर कलश रखें।
- पूजन की थाली में रोली से एक स्वास्तिक बनाते है। इस थाली में ही, फूल, मिठाई, रोली, मौली, सुपारी, पान, चावल, कपूर, धूप, अगरबत्ती, एक दीपक, जल कलश रखे ।
बृहस्पतिवार व्रत कथा
प्राचीन समय की बात है। एक नगर में एक बड़ा व्यापारी रहता था। वह जहाजों में माल लदवाकर दूसरे देशों में भेजा करता था। वह जिस प्रकार अधिक धन कमाता था उसी प्रकार जी खोलकर दान भी करता था, परंतु उसकी पत्नी अत्यंत कंजूस थी। वह किसी को एक दमड़ी भी नहीं देने देती थी।
एक बार सेठ जब दूसरे देश व्यापार करने गया तो पीछे से बृहस्पतिदेव ने साधु-वेश में उसकी पत्नी से भिक्षा मांगी। व्यापारी की पत्नी बृहस्पतिदेव से बोली हे साधु महाराज, मैं इस दान और पुण्य से तंग आ गई हूं। आप कोई ऐसा उपाय बताएं, जिससे मेरा सारा धन नष्ट हो जाए और मैं आराम से रह सकूं। मैं यह धन लुटता हुआ नहीं देख सकती।
बृहस्पतिदेव ने कहा, हे देवी, तुम बड़ी विचित्र हो, संतान और धन से कोई दुखी होता है। अगर अधिक धन है तो इसे शुभ कार्यों में लगाओ, कुंवारी कन्याओं का विवाह कराओ, विद्यालय और बाग-बगीचों का निर्माण कराओ। ऐसे पुण्य कार्य करने से तुम्हारा लोक-परलोक सार्थक हो सकता है, परन्तु साधु की इन बातों से व्यापारी की पत्नी को ख़ुशी नहीं हुई। उसने कहा- मुझे ऐसे धन की आवश्यकता नहीं है, जिसे मैं दान दूं।
तब बृहस्पतिदेव बोले “यदि तुम्हारी ऐसी इच्छा है तो तुम एक उपाय करना। सात बृहस्पतिवार घर को गोबर से लीपना, अपने केशों को पीली मिटटी से धोना, केशों को धोते समय स्नान करना, व्यापारी से हजामत बनाने को कहना, भोजन में मांस-मदिरा खाना, कपड़े अपने घर धोना। ऐसा करने से तुम्हारा सारा धन नष्ट हो जाएगा। इतना कहकर बृहस्पतिदेव अंतर्ध्यान हो गए।
व्यापारी की पत्नी ने बृहस्पति देव के कहे अनुसार सात बृहस्पतिवार वैसा ही करने का निश्चय किया। केवल तीन बृहस्पतिवार बीते थे कि उसी समस्त धन-संपत्ति नष्ट हो गई और वह परलोक सिधार गई। जब व्यापारी वापस आया तो उसने देखा कि उसका सब कुछ नष्ट हो चुका है। उस व्यापारी ने अपनी पुत्री को सांत्वना दी और दूसरे नगर में जाकर बस गया। वहां वह जंगल से लकड़ी काटकर लाता और शहर में बेचता। इस तरह वह अपना जीवन व्यतीत करने लगा।
एक दिन उसकी पुत्री ने दही खाने की इच्छा प्रकट की लेकिन व्यापारी के पास दही खरीदने के पैसे नहीं थे। वह अपनी पुत्री को आश्वासन देकर जंगल में लकड़ी काटने चला गया। वहां एक वृक्ष के नीचे बैठ अपनी पूर्व दशा पर विचार कर रोने लगा। उस दिन बृहस्पतिवार था। तभी वहां बृहस्पतिदेव साधु के रूप में सेठ के पास आए और बोले “हे मनुष्य, तू इस जंगल में किस चिंता में बैठा है?”
तब व्यापारी बोला “हे महाराज, आप सब कुछ जानते हैं।” इतना कहकर व्यापारी अपनी कहानी सुनाकर रो पड़ा। बृहस्पतिदेव बोले “देखो बेटा, तुम्हारी पत्नी ने बृहस्पति देव का अपमान किया था इसी कारण तुम्हारा यह हाल हुआ है लेकिन अब तुम किसी प्रकार की चिंता मत करो। तुम गुरुवार के दिन बृहस्पतिदेव का पाठ करो। दो पैसे के चने और गुड़ को लेकर जल के लोटे में शक्कर डालकर वह अमृत और प्रसाद अपने परिवार के सदस्यों और कथा सुनने वालों में बांट दो। स्वयं भी प्रसाद और चरणामृत लो। भगवान तुम्हारा अवश्य कल्याण करेंगे।”
साधु की बात सुनकर व्यापारी बोला “महाराज। मुझे तो इतना भी नहीं बचता कि मैं अपनी पुत्री को दही लाकर दे सकूं।” इस पर साधु जी बोले “तुम लकड़ियां शहर में बेचने जाना, तुम्हें लकड़ियों के दाम पहले से चौगुने मिलेंगे, जिससे तुम्हारे सारे कार्य सिद्ध हो जाएंगे।”
लकड़हारे ने लकड़ियां काटीं और शहर में बेचने के लिए चल पड़ा। उसकी लकड़ियां अच्छे दाम में बिक गई जिससे उसने अपनी पुत्री के लिए दही लिया और गुरुवार की कथा हेतु चना, गुड़ लेकर कथा की और प्रसाद बांटकर स्वयं भी खाया। उसी दिन से उसकी सभी कठिनाइयां दूर होने लगीं, परंतु अगले बृहस्पतिवार को वह कथा करना भूल गया।
अगले दिन वहां के राजा ने एक बड़े यज्ञ का आयोजन कर पूरे नगर के लोगों के लिए भोज का आयोजन किया। राजा की आज्ञा अनुसार पूरा नगर राजा के महल में भोज करने गया। लेकिन व्यापारी व उसकी पुत्री तनिक विलंब से पहुंचे, अत: उन दोनों को राजा ने महल में ले जाकर भोजन कराया। जब वे दोनों लौटकर आए तब रानी ने देखा कि उसका खूंटी पर टंगा हार गायब है। रानी को व्यापारी और उसकी पुत्री पर संदेह हुआ कि उसका हार उन दोनों ने ही चुराया है। राजा की आज्ञा से उन दोनों को कारावास की कोठरी में कैद कर दिया गया। कैद में पड़कर दोनों अत्यंत दुखी हुए। वहां उन्होंने बृहस्पति देवता का स्मरण किया। बृहस्पति देव ने प्रकट होकर व्यापारी को उसकी भूल का आभास कराया और उन्हें सलाह दी कि गुरुवार के दिन कैदखाने के दरवाजे पर तुम्हें दो पैसे मिलेंगे उनसे तुम चने और मुनक्का मंगवाकर विधिपूर्वक बृहस्पति देवता का पूजन करना। तुम्हारे सब दुख दूर हो जाएंगे।
बृहस्पतिवार को कैदखाने के द्वार पर उन्हें दो पैसे मिले। बाहर सड़क पर एक स्त्री जा रही थी। व्यापारी ने उसे बुलाकार गुड़ और चने लाने को कहा। इसपर वह स्त्री बोली “मैं अपनी बहू के लिए गहने लेने जा रही हूं, मेरे पास समय नहीं है।” इतना कहकर वह चली गई। थोड़ी देर बाद वहां से एक और स्त्री निकली, व्यापारी ने उसे बुलाकर कहा कि हे बहन मुझे बृहस्पतिवार की कथा करनी है। तुम मुझे दो पैसे का गुड़-चना ला दो।
बृहस्पतिदेव का नाम सुनकर वह स्त्री बोली “भाई, मैं तुम्हें अभी गुड़-चना लाकर देती हूं। मेरा इकलौता पुत्र मर गया है, मैं उसके लिए कफन लेने जा रही थी लेकिन मैं पहले तुम्हारा काम करूंगी, उसके बाद अपने पुत्र के लिए कफन लाऊंगी।”
वह स्त्री बाजार से व्यापारी के लिए गुड़-चना ले आई और स्वयं भी बृहस्पतिदेव की कथा सुनी। कथा के समाप्त होने पर वह स्त्री कफन लेकर अपने घर गई। घर पर लोग उसके पुत्र की लाश को “राम नाम सत्य है” कहते हुए श्मशान ले जाने की तैयारी कर रहे थे। स्त्री बोली “मुझे अपने लड़के का मुख देख लेने दो।” अपने पुत्र का मुख देखकर उस स्त्री ने उसके मुंह में प्रसाद और चरणामृत डाला। प्रसाद और चरणामृत के प्रभाव से वह पुन: जीवित हो गया।
पहली स्त्री जिसने बृहस्पतिदेव का निरादर किया था, वह जब अपने पुत्र के विवाह हेतु पुत्रवधू के लिए गहने लेकर लौटी और जैसे ही उसका पुत्र घोड़ी पर बैठकर निकला वैसे ही घोड़ी ने ऐसी उछाल मारी कि वह घोड़ी से गिरकर मर गया। यह देख स्त्री रो-रोकर बृहस्पति देव से क्षमा याचना करने लगी।
उस स्त्री की याचना से बृहस्पतिदेव साधु वेश में वहां पहुंचकर कहने लगे “देवी। तुम्हें अधिक विलाप करने की आवश्यकता नहीं है। यह बृहस्पतिदेव का अनादार करने के कारण हुआ है। तुम वापस जाकर मेरे भक्त से क्षमा मांगकर कथा सुनो, तब ही तुम्हारी मनोकामना पूर्ण होगी।”
जेल में जाकर उस स्त्री ने व्यापारी से माफी मांगी और कथा सुनी। कथा के उपरांत वह प्रसाद और चरणामृत लेकर अपने घर वापस गई। घर आकर उसने चरणामृत अपने मृत पुत्र के मुख में डाला| चरणामृत के प्रभाव से उसका पुत्र भी जीवित हो उठा। उसी रात बृहस्पतिदेव राजा के सपने में आए और बोले “हे राजन। तूने जिस व्यापारी और उसके पुत्री को जेल में कैद कर रखा है वह बिलकुल निर्दोष हैं। तुम्हारी रानी का हार वहीं खूंटी पर टंगा है।”
दिन निकला तो राजा रानी ने हार खूंटी पर लटका हुआ देखा। राजा ने उस व्यापारी और उसकी पुत्री को रिहा कर दिया और उन्हें आधा राज्य देकर उसकी पुत्री का विवाह उच्च कुल में करवाकर दहेज़ में हीरे-जवाहरात दिए।