चौथ माता व्रत कथा-बारह महीने | Chauth Mata Vrat katha 12 Month

Oct 29, 2023 | चौथ माता व्रत कथाएँ

॥ चौथ कथा का महत्त्व ॥

यहाँ भारत की सभी प्रसिद्व चौथ कथाओ को विस्तार पूर्वक लिखा गया है। आप अपने स्थान में प्रसिद्व किसी भी कथा को पढ़ सकते है। चौथ के दिन चौथ की कथा सुनने के साथ विनायक जी की कहानी भी कही और सुनी जाती है।
इस दिन गणेश जी तथा चौथ माता की पूजा की जाती है। भगवान को भोग लगाया जाता है। शाम के समय चाँद निकलने पर चाँद को अर्ध्य दिया जाता है। उसके बाद व्रत खोल जाता है।

चौथ का व्रत और पूजन महीने की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को किया जाता है। इसे चतुर्थी भी कहते है। चौथ का व्रत महज एक व्रत नहीं है, बल्कि सूत्र है, विश्चास का, कि पति पत्नी हमेशा साथ रहेंगे, आधार है जीने का कि उनका साथ कभी ना छूटे।

॥ पूजन सामग्री ॥

पूजन सामग्री को व्यवस्थित रूप से ( पूजन शुरू करने के पूर्व ) पूजा स्थल पर जमा कर रख लें, जिससे पूजन में अनावश्यक व्यवधान न हो।
यदि इनमे से कुछ सामग्री ना जुटा सकें तो कोई बात नहीं, जितनी सामग्री सहर्ष जुटा सकें उसी से भक्ति भावना से पूजा करें। क्योंकि कहा जाता है भगवान भावना से प्रसन होते है, सामग्री से नहीं।

  • चौकी, रोली, मौली, मेहंदी, अक्षत ( साबुत चावल )
  • दीपक, शुद्ध देशी घी, रुई, धूपबत्ती, फूल, अष्टगंध
  • अगरबत्ती, कपूर, जल का कलश।
  • प्रसाद के लिए गुड़, साबुत तिल, तिल कुट्टा, फल, दूध, मिठाई, नारियल, पंचामृत, सूखे मेवे, शक्कर, पान में से जो भी हो लें।
  • दक्षिणा।

॥ पूजन का मंडप ॥

पूजन को शुरु करने से पहले मंडप तैयार कर लें।

  • सबसे पहले पूजा के स्थान को साफ कर लें।
  • अब पूर्व या उत्तर की ओर मुख कर बैठे।
  • पूजा वाले स्थान को साफ करके चौकी स्थापित करनी चाहिए।
  • चौकी पर शुभ चिह्न स्वस्तिक बनाएं।
  • चौकी पर साफ लाल रंग का कपड़ा बिछाएं।
  • चौकी पर थोड़े चावल पर एक लोटा पानी से भरकर रखें। लोटे पर स्वस्तिक बना दें और कुमकुम से तेरह बिंदी लगा दें।
  • फिर गेंहू रख कर उस पर चौथ माता रखें। यदि चौथ माता बनवाई हुए नहीं हो तो चाँदी की कोई वस्तु जैसे अंगूठी या सिक्का आदि को चौथ माता के रूप में रखकर पूजा की जा सकती है।
  • चौकी पर मां पार्वती व विनायक जी की स्थापना कर बायी ओर दीपक रखें।
  • एक पूजा की थाली तैयार करें। पूजन की थाली में रोली से एक स्वास्तिक बनाते है। इस थाली में ही, फूल, मिठाई, रोली, मौली, सुपारी, पान, चावल, कपूर, धूप, अगरबत्ती, एक दीपक, जल कलश रखे।
  • इस व्रत में शिव-पार्वती, कार्तिकेय, गणेशजी और चाँद का पूजन किया जाता है। पूजा के लिए पाना या चित्र बाजार में मिल जाता है।

  • एक मिट्टी के करवे पर मौली बांधकर रोली से एक स्वस्तिक बनाएँ । उस पर रोली से तेरह बिंदी लगाकर चाँद को अर्ध्य देने के लिए जल भर दें ।

॥ पूजा विधि ॥

1. पहले गणेश जी की पूजा करें।
2. जल का छींटा देकर स्नान कराएं।
3. फिर रोली का टीका लगाकर अक्षत अर्पित करें, लच्छा चढ़ायें।
4. पुष्प या फूल माला अर्पित करें। दक्षिणा के रूप में कुछ पैसे चढ़ाएं।
5. गणेश जी को भोग लगाये। श्रद्धा पूर्वक नमन करें।
6. इसी प्रकार चौथ माता की पूजा करें। नमन करें।
7. जल का छींटा देकर स्नान कराएं।
8. फिर रोली का टीका लगाकर, मेहंदी व अक्षत अर्पित करें, लच्छा चढ़ायें।
9. पुष्प या फूल माला अर्पित करें। दक्षिणा के रूप में कुछ पैसे चढ़ाएं।
10. फिर हाथ में आखे (साबुत गेंहू ) लेकर चौथ की कहानी सुने।
11. फिर गणेशजी की कहानी सुने ।
12. चौथ माता का गीत गाएँ।
13. गणेश जी और अपने इष्ट देव की आरती गाएँ।
14. इस प्रकार पूजा संपन्न होती है। अब थोड़ा प्रसाद खाएं।
15. कथा सुनते समय हाथ में लिए गए आखे से तथा लोटे के पानी से चाँद उगे तब अर्घ्य देना चाहिए।

16. प्रसाद पर रूपये रख कर बायना निकाल कर सासू माँ को दें। पैर छूकर उनका आशीर्वाद लें। उनकी अनुपस्थिति में बायना जेठानी या ननद को दिया जा सकता है। इसके बाद पहले प्रसादऔर फिर खाना खाएँ ।
17. दूसरे दिन गणेश जी, चौथ माता या चाँदी की वस्तु जो भी आपने पूजा में रखी थी, वह संभालकर अपने पास रख लें तथा बाकि सभी सामान मंदिर में या ब्राह्मण को दे दें।

॥ चौथ माता व्रत कथा – बारह महीने ॥

एक नगर में एक बूढी माँ रहती थी। वह अपने बेटे की सलामती के लिए बारह महीनों की चौथ का व्रत करती थी। हर चौथ को पंसारी से थोड़ा सा गुड़ और घी लाकर चार लड़्डू बनाती।
एक बेटे को देती, एक से पूजा करती, एक हथकार के लिए निकालती और एक चाँद उगने पर खुद खा लेती थी।

एक बार उसका बेटा ताई से मिलने गया। ताई ने वैसाखी चौथ का व्रत रखा था। ताई से पूछा माँ तो बारह चौथ करती है। ताई बोली तेरी माँ तेरी कमाई से तर माल खाने के लिए बारह चौथ करती है।
तू परदेस जाये तो वह एक भी चौथ नहीं करेगी। लड़के को लगा ताई सच कह रही है।

घर आकर माँ से कहा मैं परदेस जा रहा हूँ यहाँ तू मेरी कमाई खाने पीने में ही उड़ा देती है। माँ ने समझाकर रोकना चाहा पर बेटा नहीं माना।
माँ ने उसे साथ ले जाने के लिए चौथ माता के आखे दिए और कहा मुसीबत में ये आखे तेरी मदद करेंगे। वह आखे लेकर रवाना हो गया।

घूमते हुए एक नगर में पहुंचा। उसने देखा एक बूढी माँ रोती जा रही थी और पुआ बनाते जा रही थी। उसने कारण पूछा तो बूढी माँ ने कहा बेटा इस नगर की पहाड़ी पर एक दैत्य रहता है।
पहले वह नगर में आकर कई लोगों को खाने के लिए मार देता था।

अब राजा हर घर से एक आदमी दैत्य के पास भेजता है और आज मेरे बेटे की बारी है इसलिए रो रही हूँ और उसी के लिए पुए बना रही हूँ।
वह बोला तू पुए मुझे खिला दे, तेरे बेटे की जगह मैं चला जाता हूँ। बूढ़ी माँ ने खीर पुए उसे खिला दिए। खा पीकर वह सो गया।

रात को राजा के सैनिक आये तो बूढ़ी माँ ने उसे भेज दिया।
दैत्य के सामने पहुँचने पर उसने चौथ माता के आखे दैत्य की तरफ फेंक कर कहा–हे चौथ माता, यदि मेरी माँ मेरी सलामती के लिए व्रत करती है तो दैत्य का सिर कट कर गिर जाये।

तुरंत दैत्य का सिर कट गया। लड़का वापस आ गया। राजा ने उसे उपहार देकर विदा किया। चलते हुए एक दूसरे राजा के नगर में पहुंचा।
इस राज्य में आवा तभी पकता था जब एक इंसान की बली दी जाती थी। सिपाहियों ने उसे पकड़ कर आवे में चुन दिया।

लड़के ने आखे आवे में डाले और कहा–हे चौथ माता , यदि मेरी माँ मेरे लिए व्रत करती है तो आवा मेरी बली लिए बिना ही झट से पक जाये।
आवा तुरंत पक गया। आवे में से मिट्टी की जगह सोने चांदी के बर्तन निकले। अंदर से लड़का बोला बर्तन धीरे धीरे निकालना मुझे लग नहीं जाये।

राजा ने उसे निकलवाया और पूछा इस आवे से तुम बच कैसे गए। लड़के ने बताया कि उसकी माँ चौथ माता का व्रत करती है। व्रत के कारण ही वह बच पाया। राजा को विश्वास नहीं हुआ।
उसने एक चांदी की सुराही मंगवाई और कहा कि सुराही की नली से निकल कर दिखाओ तभी मुझे विश्वास होगा।

लड़के ने चौथ माता को याद करके आखे सुराही में डाले और कहा–मैं भंवरा बनू सुराही से निकलूं।

लड़का भंवरा बन कर सुराही से निकल गया। राजा में खुश होकर राजकुमारी की शादी उसके साथ करवाई और सभी लोगों को चौथ माता का व्रत करने को कहा।
उसे माँ की याद आई। उसने राजा के पास जाकर खुद के नगर जाने की इच्छा जाहिर की। राजा ने रथ, घोड़ा, हाथी, और खूब सारा दान दहेज़ देकर उन्हें विदा किया।

चौथ के दिन अपने नगर पहुंचा। वह अकेला पंसारी के यहाँ माँ का इंतजार करने लगा। सोचा चौथ है तो माँ यहाँ जरूर आएगी। थोड़ी देर बाद लकड़ी टेकती हुई माँ आती दिखी।
बेटा माँ के चरणों में गिर पड़ा। कहा माँ मैं तेरा बेटा हूँ मुझे माफ़ कर दो। माँ ने उसे गले लगा लिया।

लोग चौथ माता की जय जयकार करने लगे। उस नगर के सभी लोग चौथ माता का व्रत करने लगे।
हे चौथ माता , जैसे बूढ़ी माँ और उसके बेटे की सहायता की वैसे हमारी भी करना। कहानी कहने और सुनने वाले पर कृपा करना।

बोलो चौथ माता की जय !!!

॥ गणेश जी की कथा ॥

एक बार गणेश जी एक छोटे बालक के रूप में चिमटी में चावल और चमचे में दूध लेकर निकले। वो हर किसी से कह रहे थे कि कोई मेरी खीर बना दो, कोई मेरी खीर बना दो।
कोई भी उनपर ध्यान नहीं दे रहा था बल्कि लोग उन पर हँस रहे थे। वे लगातार एक गांव के बाद, दूसरे गांव इसी तरह चक्कर लगाते हुए पुकारते रहे, पर कोई खीर बनाने के लिए तैयार नहीं था। सुबह से शाम हो गई गणेश जी लगातार घूमते रहे।

शाम के वक्त एक बुढ़िया अपनी झोपड़ी के बाहर बैठी हुई थी, तभी गणेश जी वहां से पुकारते हुए निकले कि “कोई मेरी खीर बना दे, कोई मेरी खीर बना दे”, बुढ़िया बहुत कोमल ह्रदय वाली स्त्री थी।
उसने कहा “बेटा, मैं तेरी खीर बना देती हूं।” वह छोटा सा बर्तन चढ़ाने लगी तब गणेश जी ने कहा कि दादी मां छोटा सा बर्तन मत चढ़ाओ तुम्हारे घर में जो सबसे बड़ा बर्तन हो वही चढ़ा दो।
बुढ़िया ने वही चढ़ा दिया। वह देखती रह गई कि वह जो थोड़े से चावल उस बड़े बर्तन में डाली थी वह तो पूरा भर गया है। गणेश जी ने कहा “दादी मां मैं स्नान करके आता हूं तब तक तुम खीर बना लो। मैं वापस आकर खाऊँगा।”

खीर तैयार हो गई तो बुढ़िया के पोते पोती खीर खाने के लिए रोने लगे बुढ़िया ने कहा गणेश जी तेरे भोग लगना कहकर चूल्हे में थोड़ी सी खीर डाली और कटोरी भर भरकर बच्चों को दे दी।
अभी भी गणेश जी नहीं आए थे। बुढ़िया को भी भूख लग रही थी वह भी एक कटोरा खीर का भरकर के कीवाड़ के पीछे बैठकर एक बार फिर कहा कि गणेश जी आपके भोग लगे कहकर खाना शुरु कर दिया तभी गणेश जी आ गए।

बुढ़िया ने कहा “आजा रे बेटा खीर खा ले मैं तो तेरी ही राह देख रही थी”, गणेश जी ने कहा “दादी मां मैंने तो खीर पहले ही खा ली”
बुढ़िया ने कहा “कब खाई ?” गणेश जी ने कहा “जब तेरे पोते पोती ने खाई तब खाई थी और अब तूने खाई तो मेरा पेट पूरा ही भर गया।”

बुढ़िया ने पूछा, “मैं इतनी सारी खीर का क्या करूंगी ?” इस पर गणपति जी बोले, “सारे गांव को दावत दे दो”
बुढ़िया ने बड़े प्यार से, मन लगाकर खीर बनाई थी, खीर की भीनी-भीनी, मीठी-मीठी खुशबू चारों दिशाओं में फैल गई थी
वह हर घर में जाकर खीर खाने का न्योता देने लगी। लोग उस पर हँस रहे थे। बुढ़िया के घर में खाने को दाना नहीं और यह सारे गांव को खीर खाने की दावत दे रही है।
लोगों को कुतूहल हुआ और खीर की खुशबू से लोग खिंचे चले आए। लो ! सारा गाँव बुढ़िया के घर में इकट्ठा हो गया।

बुढ़िया ने पूरी नगरी जीमा दी फिर भी बर्तन पूरा ही भरा था, राजा को पता लगा तो बुढ़िया को बुलाया और कहा क्यों री बुढ़िया ऐसा बर्तन तेरे घर पर अच्छा लगे या हमारे घर पर अच्छा लगे ।
बुढ़िया ने कहा “राजा जी आप ले लो। “राजा जी ने खीर का बर्तन महल में मंगा लिया, लाते ही खीर में कीड़े, मकोड़े, बिच्छू हो गए और दुर्गंध आने लगी।

यह देखकर राजा ने बुढ़िया से कहा, “बुढ़िया बर्तन वापस ले जा, जा तुझे हमने दिया।”
बुढ़िया ने कहा “राजा जी आप देते तो पहले ही कभी दे देते यह बर्तन तो मुझे मेरे गणेश जी ने दिया है” बुढ़िया ने बर्तन वापस लिया, लेते ही सुगंधित की हो गई ।
घर आकर बुढ़िया ने गणेश जी से कहा, बची हुई खीर का क्या करें ?
गणेश जी ने कहा “झोपड़ी के कोने में खड़ा खोदकर गाड़ दो । उसी जगह सुबह उठकर वापस खोदेगी तो धन के दो चरे मिलेंगे।”

ऐसा कहकर गणेश जी अंतर्ध्यान हो गए जाते समय झोपड़ी के लात मारते हुए गये तो झोपड़ी के स्थान पर महल हो गया। सुबह बुढ़िया ने फावड़ा लेकर घर को खोद ने लगी तो टन टन करते दो धन के चरे निकल आए ।

वह बहुत खुश थी। उसकी सारी दरिद्रता दूर हो गई और वह आराम से रहने लगी। उसने गणपति जी का एक भव्य मंदिर बनवाया और साथ में एक बड़ा सा तालाब भी खुदवाया।
इस तरह उसका नाम दूर-दूर तक प्रसिद्ध हो गया। उस जगह वार्षिक मेले लगने लगे। लोग गणेश जी की कृपा प्राप्त करने के लिए, उस स्थान पर पूजा करने और मान्यताएं मानने के लिए आने लगे।
गणेश जी सब की मनोकामनाएं पूरी करने लगे.

गणेश जी जैसा आपने बुढ़िया को दिया वैसा सबको देना विनायक जी की कहानी कहने वाले और आसपास के सुनने वाले सब को देना।

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