दीपावली लक्ष्मी पूजन विधि | Deepawali Lakshmi Poojan Vidhi

दीपावली-लक्ष्मीपूजन

॥ पूजन सामग्री ॥

पूजन शुरू करने के पूर्व पूजन पद्धति को एक बार शुरू से आखिरी तक पढ़कर दोहरा लेना चाहिए उससे आप पूजन में आनंद का अनुभव करेंगे।

पूजन सामग्री को व्यवस्थित रूप से (पूजन शुरू करने के पूर्व) पूजा स्थल पर जमा कर रख लें, जिससे पूजन में अनावश्यक व्यवधान न हो।
माता लक्ष्मीजी के पूजन की सामग्री अपने सामर्थ्य के अनुसार होना चाहिए। इसमें लक्ष्मीजी को कुछ वस्तुएँ विशेष प्रिय हैं। उनका उपयोग करने से वे शीघ्र प्रसन्न होती हैं। इनका उपयोग अवश्य करना चाहिए।
यदि इनमे से कुछ सामग्री ना जुटा सकें तो कोई बात नहीं, जितनी सामग्री सहर्ष जुटा सकें उसी से भक्ति भावना से पूजा करें। क्योंकि कहा जाता है भगवान भावना से प्रसन होते है, सामग्री से नहीं।

  • माताजी को पुष्प में कमल व गुलाब प्रिय है।
  • वस्त्र में इनका प्रिय वस्त्र लाल-गुलाबी या पीले रंग का रेशमी वस्त्र है।
  • फल में पांच प्रकार के फल ( अनार, सीताफल , केले, सिंघाड़ा, बेर आदि ) व श्रीफल प्रिय हैं।
  • पांच प्रकार के मेवे ( काजू , बादाम, पिस्ता, सूखे खजूर, किशमिश आदि )
  • सुगंध में केवड़ा, गुलाब, चंदन के इत्र का प्रयोग इनकी पूजा में अवश्य करें।
  • मिठाई में, पांच प्रकार की मिठाई, घर में बनी शुद्धता पूर्ण केसर की मिठाई, हलवा, खीर तथा शिरा का नैवेद्य उपयुक्त है।
  • प्रकाश के लिए गाय का घी, मूँगफली या तिल्ली का तेल इनको शीघ्र प्रसन्न करता है।
    अन्य सामग्री में
  • लाल कपड़ा, चौकी, नारियल, दूर्वा, गन्ना, पंचामृत, जनेऊ, खील-बताशे, कमल गट्टा, खड़ी हल्दी, विल्वपत्र, पंचामृत, गंगाजल, ऊन का आसन ।
  • रुई, धूपबत्ती, फूल, अष्टगंध, रोली, मौली, अक्षत ( साबुत चावल ), फूल माला, सुपारी, लौंग, इलायची, साबुत धनिया, पान के पत्ते, कपूर ।
  • अगरबत्ती, मिट्टी के दीपक ( एक बड़ा अखंड ज्योत के लिए, 11-21 छोटे ), पंचामृत, जनेऊ, चांदी के सिक्के, देव मूर्ति के स्नान के लिए तांबे का पात्र, तांबे का लोटा, जल का कलश।
  • बहीखाता, कलम और दवात।

॥ पूजन का मंडप ॥

पूजन को शुरु करने से पहले मंडप तैयार कर लें।

  • सबसे पहले पूजा के स्थान को साफ कर लें।
  • पूजन करते समय आपका मुँह पूर्व या उत्तर दिशा में होना चाहिए। सूर्य के रहते हुए अर्थात दिन में पूर्व की तरफ मुँह करके एवं सूर्यास्त के पश्चात उत्तर की तरफ मुँह करके पूजन करना चाहिए।
  • पूजा वाले स्थान को साफ करके चौकी स्थापित करनी चाहिए।
  • चौकी पर शुभ चिह्न स्वस्तिक बनाएं।
  • चौकी पर साफ सुन्दर लाल रंग का कपड़ा बिछाएं।
  • लक्ष्मी जी की मूर्ती स्थापित करें।
  • दायीं तरफ (लक्ष्मी जी के बाएँ हाथ की तरफ ) गणेश जी की मूर्ति स्थापित करें।
  • चौकी पर श्री लक्ष्मी व श्री गणेश की मूर्तियाँ इस प्रकार रखें कि, लक्ष्मीजी, गणेशजी की दाहिनी ओर रहें। या तस्वीर रखें। तस्वीर में गणेश और कुबेर की तस्वीर भी हो।
  • माता के दाएं और बाएं सफेद हाथी के चित्र भी होना चाहिए।
  • श्री लक्ष्मी जी के दाएं हाथ की तरफ चावलों पर कलश स्थापित करें। कलश को तीन चौथाई तक शुद्ध जल से भर दें। इसमें थोड़ा गंगाजल, सुपारी, फूल, अक्षत और एक सिक्का डालें।
  • नारियल को लाल वस्त्र में इस प्रकार लपेटें कि नारियल का अग्रभाग दिखाई देता रहे अब मौली बांध कर कलश पर रखें। यह कलश वरुण देवता का प्रतीक होता है ।
  • दो बड़े दीपक रखें। एक में घी भरें व दूसरे में तेल। एक दीपक चौकी के दाईं ओर रखें व दूसरा मूर्तियों के चरणों में। इसके अतिरिक्त एक घी का दीपक गणेशजी के पास रखें।
  • मूर्तियों वाली चौकी के सामने छोटी चौकी रखकर उस पर लाल वस्त्र बिछाएँ।
  • कलश की तरफ लाल कपड़े पर चावल से नौ छोटी ढेरी बनायें। ये नवग्रह का प्रतीक हैं।
  • गणेश जी के सामने गेहूं के दानो से सोलह ढेरी बनायें। ये शोडष मातृका का प्रतीक है।
  • नवग्रह व षोडश मातृका के बीच स्वस्तिक का चिह्न बनाएँ। स्वास्तिक के बीच में सुपारी पर मौली लपेटकर रोली लगाकर स्वास्तिक पर स्थापित करें। ये श्री गणेश जी का प्रतीक है ।
  • स्वस्तिक के नीचे चावल से पांच छोटी ढेरी बनायें। ये पंचदेव के प्रतीक हैं।
  • पूजन के समय पंचदेव की स्थापना जरूर करें। सूर्यदेव, श्री गणेश, दुर्गा, शिव और विष्णु को पंचदेव कहा गया है
  • छोटी चौकी के सामने तीन थाली व जल भरकर कलश ( पूजा के जलपात्र ) रखें। थालियों की निम्नानुसार व्यवस्था करें-
  • पहली थाली में, स्वस्तिक बनाकर उस पर ग्यारह या इक्कीस दीपक रखें।
  • दूसरी थाली में, फूल, खील, बताशे, मिठाई, वस्त्र, आभूषण, चन्दन का लेप, लौंग, इलायची, कमल गट्टा, खड़ी हल्दी, साबुत धनिया, सुपारी, चांदी के सिक्के, जनेऊ, इत्र, फल, मेवे।
  • तीसरी थाली (पूजन की थाली) में, रोली, मौली, सुपारी, पान, दुर्वा, चावल, कपूर, सुगंधित पदार्थ, धूप, अगरबत्ती, एक दीपक, तांबे का लोटा।

इन थालियों के सामने यजमान लाल ऊनी आसन अथवा कुशा के आसन पर बैठे। आपके परिवार के सदस्य आपकी बाईं ओर बैठें। कोई आगंतुक हो तो वह आपके या आपके परिवार के सदस्यों के पीछे बैठे।

॥ श्री लक्ष्मी पूजन प्रारंभ ॥

॥ पवित्रीकरण ॥

सबसे पहले पवित्रीकरण करें।

पवित्रकरण हेतु बाएँ हाथ में जल लेकर, दाहिने हाथ की अनामिका से स्वयं पर एवं समस्त पूजन सामग्री और अपने आसन पर निम्न दोहा बोलते हुए जल छिड़कें –

वरुण विष्णु सबसे बड़े, देवन में सरताज ।
बाहर भीतर देह मम, करो शुद्ध महाराज ॥

‘भगवान पुण्डरीकाक्ष का नाम उच्चारण करने से पवित्र अथवा अपवित्र व्यक्ति, बाहर एवं भीतर से पवित्र हो जाता है। भगवान पुण्डरीकाक्ष मुझे पवित्र करें।’

॥ आचमन ॥

इसके बाद दाहिने हाथ में जल लेकर तीन बार आचमन करें

ॐ केशवाय नमः स्वाहा, (आचमन करें)
ॐ नारायणाय नमः स्वाहा, (आचमन करें)
ॐ माधवाय नमः स्वाहा। (आचमन करें)

निम्न मंत्र बोलकर हाथ धो लें।
ॐ गोविन्दाय नमः हस्तं प्रक्षालयामि ।

॥ दीपक ॥

शुद्ध घृत युक्त दीपक जलाएँ (हाथ धो लें)। निम्न वाक्यांश बोलते हुए दीप-देवता की पूजा करें-
‘हे दीप ! तुम देवरूप हो, हमारे कर्मों के साक्षी हो, विघ्नों के निवारक हो, हमारी इस पूजा के साक्षीभूत दीप देव, पूजन कर्म के समापन तक सुस्थिर भाव से आप हमारे निकट प्रकाशित होते रहें।’
अब चौकी पर रखे सभी दीपक जगाये।

॥ स्वस्ति-वाचन ॥

निम्न मंगल वाक्यांश का पाठ करें।

ॐ ! हे पूजनीय परब्रह्म परमेश्वर ! हम अपने कानों से शुभ सुनें। अपनी आँखों से शुभ ही देखें, आपके द्वारा प्रदत्त हमारी आयु में हमारे समस्त अंग स्वस्थ व कार्यशील रहें। हम लोकहित का कार्य करते रहें।
ॐ ! हे परब्रह्म परमेश्वर ! गगन मंडल व अंतरिक्ष हमारे लिए शांति प्रदाता हो। भू-मंडल शांति प्रदाता हो। जल शांति प्रदाता हो, औषधियाँ आरोग्य प्रदाता हों, अन्न पुष्टि प्रदाता हो।
हे विश्व को शक्ति प्रदान करने वाले परमेश्वर ! प्रत्येक स्रोत से जो शांति प्रवाहित होती है। हे विश्व नियंत्रा ! आप वही शांति मुझे प्रदान करें।

श्री महागणपति को नमस्कार, लक्ष्मी-नारायण को नमस्कार, उमा-महेश्वर को नमस्कार, माता-पिता के चरण कमलों को नमस्कार, इष्ट देवताओं को नमस्कार, कुल देवता को नमस्कार, सब देवों को नमस्कार।

॥ पूजन का सकंल्प ॥

संकल्प करने से पहले हाथों मे जल, फूल व चावल लें। सकंल्प में अपना नाम, जिस दिन पूजन कर रहे हैं उस वर्ष, तिथि, उस वार और उस जगह को लेकर अपनी इच्छा बोले।
तो इस प्रकार संकल्प लें। मैं…………..विक्रम संवत्को………….., कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की अमावस्या, तिथि …………..को…………..वार के दिन,
भारत देश के …………..राज्य के…………..शहर में, इस मनोकामना से …………..श्री महालक्ष्मी का पूजन कर रही / रहा हूं।

शुभ पर्व की इस शुभ बेला में हे, धन वैभव प्रदाता महालक्ष्मी, आपकी प्रसन्नतार्थ यथा उपलब्ध वस्तुओं से आपका पूजन करने का संकल्प करता हूँ।
इस पूजन कर्म में महासरस्वती, महाकाली, कुबेर आदि देवों का पूजन करने का भी संकल्प लेता हूँ। इस कर्म की निर्विघ्नता हेतु श्री गणेश का पूजन करता हूँ।’
अब हाथों में लिए गए जल को जमीन पर छोड़ दें।

अब अपनी रक्षा के लिए चावल के दाने हाथ में लेकर दशों दिशाओ में थोड़े-थोड़े अर्पित करते हुए, ये दोहा बोले-

पूरब में श्री कृष्ण जी, दक्षिण में बाराह ।
पश्चिम केशव दुख हरे, उत्तर श्रीधर शाह ॥
ऊपर गिरधर श्री कृष्ण जी, शेषनाग पाताल ।
दशों दिशा रक्षा करे, मेरी नित गोपाल ॥

॥ श्री गणेश पूजन ॥

अब हाथ जोड़कर तथा यह दोहा बोलते हुए श्री गणेश जी महाराज का ध्यान व आह्वान कर नमस्कार करे।

सिद्धि सदन गजवदनवर, प्रथम पूज्य गणराज ।
प्रथम वंदना आपको, आय सुधारो काज ॥

श्री गणेशजी ! आपको नमस्कार है। आप संपूर्ण विघ्नों की शांति करने वाले हैं।
अपने गणों में गणपति, क्रांतदर्शियों में श्रेष्ठ कवि, शिवा-शिव के प्रिय ज्येष्ठ पुत्र और सुख आदि के प्रदाता, हम आपका इस पूजन कर्म में आह्वान करते हैं।
हमारी स्तुतियों को सुनते हुए पालनकर्ता के रूप में आप इस सदन में आसीन हों क्योंकि आपकी आराधना के बिना कोई भी कार्य प्रारंभ नहीं किया जा सकता है।
आप यहाँ पधारकर पूजा ग्रहण करें और हमारे इस पूजन कर्म की रक्षा भी करें।

अब श्री गणेश की मूर्ति अथवा छोटी चौकी पर स्वस्तिक पर रखी सुपारी पर श्री गणेश जी महाराज का पूजन इस प्रकार करे

  • पहले जल छिड़कें और बोलें – स्नानं समर्पयामि
  • मौली चढ़ायें और बोलें – वस्त्रम समर्पयामि ( गणेश जी को जनेऊ अर्पित करें )
  • रौली के छींटे दें बोलें – गन्धकं समर्पयामि
  • अक्षत चढ़ायें बोलें – अक्षतान समर्पयामि
  • पुष्प, फूल और माला चढ़ायें बोलें – पुष्पं समर्पयामि
  • धूप दिखाएँ बोलें – धूपम समर्पयामि
  • दीपक दिखाएँ बोलें – दीपम दर्शयामि
  • गुड़ या मिठाई चढ़ाएं बोलें – नैवेद्यम समर्पयामि
  • जल के छींटे देकर आचमन कराएँ बोलें – आचमन समर्पयामि
  • पान चढ़ाएं बोलें – ताम्बूलं समर्पयामि
  • सुपारी या पैसे चढ़ाएं बोलें – दक्षिणा समर्पयामि

प्रार्थना- हे गणेश ! यथाशक्ति आपका पूजन किया, मेरी त्रुटियों को क्षमा कर आप इसे स्वीकार करें। अब हाथ जोड़कर श्री गणेश जी महाराज को नमस्कार कर यह दोहा बोले

जय गणपति गिरजा सुवन, रिद्धि सिद्धि दातार
कष्ट हरो मंगल करो, नमस्कार सत बार

॥ वरुण देव कलश पूजन॥

पूजा के थाल में रखे जल के कलश पर ही वरुण देव की पूजा होगी, अब अक्षत चढ़ा कर वरुण देवता का आह्वान इस दोहे को बोल करे

जल जीवन है जगत का, वरुण देव का वास ।
सकल देव निशदिन करे, कलशे मांहि निवास ॥
गंगादिक नदियाँ बसे, सागर सप्त निवास ।
पूजा हेतु पधारिये, पाप शाप हो नाश ॥

अब पूजा के थाल में रखे जल के कलश पर

  • पहले जल छिड़कें और बोलें – स्नानं समर्पयामि
  • मौली चढ़ायें और बोलें – वस्त्रम समर्पयामि
  • रौली के छींटे दें बोलें – गन्धकं समर्पयामि
  • अक्षत चढ़ायें बोलें – अक्षतान समर्पयामि
  • पुष्प, फूल और माला चढ़ायें बोलें – पुष्पं समर्पयामि
  • धूप दिखाएँ बोलें – धूपम समर्पयामि
  • दीपक दिखाएँ बोलें – दीपम दर्शयामि
  • गुड़ या मिठाई चढ़ाएं बोलें – नैवेद्यम समर्पयामि
  • जल के छींटे देकर आचमन कराएँ बोलें – आचमन समर्पयामि
  • पान चढ़ाएं बोलें – ताम्बूलं समर्पयामि
  • सुपारी या पैसे चढ़ाएं बोलें – दक्षिणा समर्पयामि

अब हाथ जोड़कर वरुण देव को नमस्कार करे

॥ षोडश मातृका पूजन॥

बाएं हाथ में अक्षत लेकर निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुए दाएं हाथ से अक्षत पूजा की चौकी पर गेंहू की सोलह ढ़ेरी पर अर्पित करते हुए षोडश मातृकाओं का आह्वान करे

गौरी, पद्या, शची, मेधा, सावित्री, विजया, जया, देवसेना,
स्वधा, स्वाहा, मातृः, लोकमातृः, धृतिः, पुष्टिः, तुष्टिः, आत्मनः, कुलदेवता आह्वान समर्पयामि

अब षोडश मातृकाओं पर

  • पहले जल छिड़कें और बोलें – स्नानं समर्पयामि
  • मौली चढ़ायें और बोलें – वस्त्रम समर्पयामि
  • रौली के छींटे दें बोलें – गन्धकं समर्पयामि
  • अक्षत चढ़ायें बोलें – अक्षतान समर्पयामि
  • पुष्प, फूल और माला चढ़ायें बोलें – पुष्पं समर्पयामि
  • धूप दिखाएँ बोलें – धूपम समर्पयामि
  • दीपक दिखाएँ बोलें – दीपम दर्शयामि
  • गुड़ या मिठाई चढ़ाएं बोलें – नैवेद्यम समर्पयामि
  • जल के छींटे देकर आचमन कराएँ बोलें – आचमन समर्पयामि
  • पान चढ़ाएं बोलें – ताम्बूलं समर्पयामि
  • सुपारी या पैसे चढ़ाएं बोलें – दक्षिणा समर्पयामि

अब हाथ जोड़कर षोडश मातृका को नमस्कार कर यह दोहा बोले –

सोलह माता आपको, नमस्कार शतबार ।
पुष्टि तुष्टि मंगल करो, भरो अखंड भंडार ॥

॥ नवग्रह पूजन ॥

बाएं हाथ में अक्षत लेकर निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुए दाएं हाथ से अक्षत पूजा की चौकी पर चावल की नौ ढ़ेरी पर अर्पित करते हुए नवग्रहों का आह्वान करे

रवि, शशि, मंगल, बुध, गुरु (बृहस्पति), शुक्र, शनि महाराज ।
राहु एवं केतु नव ग्रह नमो, सकल सवारों काज ॥

अब नवग्रहों पर

  • पहले जल छिड़कें और बोलें – स्नानं समर्पयामि
  • मौली चढ़ायें और बोलें – वस्त्रम समर्पयामि
  • रौली के छींटे दें बोलें – गन्धकं समर्पयामि
  • अक्षत चढ़ायें बोलें – अक्षतान समर्पयामि
  • पुष्प, फूल और माला चढ़ायें बोलें – पुष्पं समर्पयामि
  • धूप दिखाएँ बोलें – धूपम समर्पयामि
  • दीपक दिखाएँ बोलें – दीपम दर्शयामि
  • गुड़ या मिठाई चढ़ाएं बोलें – नैवेद्यम समर्पयामि
  • जल के छींटे देकर आचमन कराएँ बोलें – आचमन समर्पयामि
  • पान चढ़ाएं बोलें – ताम्बूलं समर्पयामि
  • सुपारी या पैसे चढ़ाएं बोलें – दक्षिणा समर्पयामि

अब हाथ जोड़कर नवग्रह महाराज को नमस्कार कर यह दोहा बोले –

है नवग्रह तुमसे करुँ, विनती बारम्बार ।
में तो सेवक आपका रक्खो कृपा अपार ॥

॥ पंचदेव पूजन ॥

प्रत्येक मांगलिक कार्य या पूजा आदि में पंच देव की पूजा का विधान है। इनके बगैर पूजा अधूरी मानी जाती है। इन पंचदेवों की पूजा से ही सभी कार्य निर्विघ्न संपन्न होते हैं।
बाएं हाथ में अक्षत लेकर निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुए दाएं हाथ से अक्षत पूजा की चौकी पर नवग्रह और षोडश मातृका के बीच में चावल की पांच ढ़ेरी पर अर्पित करते हुए पंच देव – सूर्य, गणेश, दुर्गा, शिव और विष्णु जी महाराज का आह्वान करे

ॐ श्री सूर्याय नमः, ॐ श्री गणेशाय नमः, ॐ श्री दुर्गायै नमः,
ॐ श्री शिवाय नमः, ॐ श्री विष्णवे नमः

अब पंचदेवों पर

  • पहले जल छिड़कें और बोलें – स्नानं समर्पयामि
  • मौली चढ़ायें और बोलें – वस्त्रम समर्पयामि
  • रौली के छींटे दें बोलें – गन्धकं समर्पयामि
  • अक्षत चढ़ायें बोलें – अक्षतान समर्पयामि
  • पुष्प, फूल और माला चढ़ायें बोलें – पुष्पं समर्पयामि
  • धूप दिखाएँ बोलें – धूपम समर्पयामि
  • दीपक दिखाएँ बोलें – दीपम दर्शयामि
  • गुड़ या मिठाई चढ़ाएं बोलें – नैवेद्यम समर्पयामि
  • जल के छींटे देकर आचमन कराएँ बोलें – आचमन समर्पयामि
  • पान चढ़ाएं बोलें – ताम्बूलं समर्पयामि
  • सुपारी या पैसे चढ़ाएं बोलें – दक्षिणा समर्पयामि

अब हाथ जोड़कर पंचदेव महाराज को नमस्कार कर यह दोहा बोले –

हे पंचलोकपाल देवता, करुँ विनय पुकार।
लज्जा मेरी राखिये, भरो धन भंडार ॥

॥ श्री महालक्ष्मी पूजन ॥

परमपूज्या भगवती महालक्ष्मी सहस्र दलवाले कमल की कर्णिकाओं पर विराजमान हैं। इनकी कांति शरद पूर्णिमा के करोड़ों चंद्रमाओं की शोभा को हरण कर लेती है।
ये परम साध्वी देवी स्वयं अपने तेज से प्रकाशित हो रही हैं। इस परम मनोहर देवी का दर्शन पाकर मन आनंद से खिल उठता है। वे मूर्तमति होकर संतप्त सुवर्ण की शोभा को धारण किए हुए हैं।
रत्नमय आभूषण इनकी शोभा बढ़ा रहे हैं। उन्होंने पीतांबर पहन रखा है। ये सदा युवावस्था से संपन्न रहती हैं। इनकी कृपा से संपूर्ण संपत्तियाँ सुलभ हो जाती हैं।
ऐसी कल्याणस्वरूपिणी भगवती महालक्ष्मी की हम उपासना करते हैं।

अब नीचे लिखे दोहे को पढ़कर श्री महालक्ष्मी की तरफ अक्षत अर्पित करते हुए महालक्ष्मी का आह्वान करते हुए ये दोहा बोले

जय जग जननी जय रमा, विष्णु प्रिया जगदम्ब।
बेग पधारो गेह मम, करो न मातु विलम्ब॥
पाट बिराजो मुदितमन, भरो अखंड भण्डार।
भक्ति सहित पूजन करुँ, करो मात स्वीकार॥

हे माता ! महालक्ष्मी पूजन हेतु मैं आपका आह्वान करता हूँ। आप यहाँ पधारकर पूजन स्वीकार करें।

अब श्री महालक्ष्मी जी पर

  • पहले जल छिड़कें और बोलें – स्नानं समर्पयामि
  • मौली चढ़ायें और बोलें – वस्त्रम समर्पयामि
  • रौली के छींटे दें बोलें – गन्धकं समर्पयामि
  • अक्षत चढ़ायें बोलें – अक्षतान समर्पयामि
  • पुष्प, फूल और माला चढ़ायें बोलें – पुष्पं समर्पयामि
  • धूप दिखाएँ बोलें – धूपम समर्पयामि
  • दीपक दिखाएँ बोलें – दीपम दर्शयामि
  • गुड़ या मिठाई चढ़ाएं बोलें – नैवेद्यम समर्पयामि
  • जल के छींटे देकर आचमन कराएँ बोलें – आचमन समर्पयामि
  • पान चढ़ाएं बोलें – ताम्बूलं समर्पयामि
  • सुपारी या पैसे चढ़ाएं बोलें – दक्षिणा समर्पयामि

हाथ जोड़कर श्री महालक्ष्मी जी को नमस्कार कर यह दोहा बोले –

विष्णु प्रिया सागर, सुता जन जीवन आधार।
गेह वास मेरे करो, नमस्कार शत बार ॥

॥ देहरी, कलम-दवात, बही-खाता, तिजोरी-सिक्कों, तुला एवं दीपमाला पूजन ॥

॥ देहरी (विनायक) पूजन ॥

अपने व्यापारिक प्रतिष्ठान के मुख्य द्वार, घर के प्रवेश द्वार के ऊपर घी में घुले हुए सिंदूर से – ”स्वास्तिक चिन्ह”, ”शुभ-लाभ”, ”श्री गणेशाय नमः”
इत्यादि मंगलसूचक शब्द लिखें। एवं निम्न प्रार्थना करें-

‘ॐ देहली विनायक आपको नमस्कार है।’

प्रार्थना के पश्चात स्वस्तिक चिन्हों पर रोली, अक्षत, गंध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य से पूजन करें।

॥ कलम-दवात पूजन ॥

लेखनी (काली स्याही का पेन) व दवात पर मौली बाँधकर सामने रखें। एवं निम्न प्रार्थना करें-

ॐ लेखनी-स्थायै देवी आपको नमस्कार है।
जल के छींटे डालें, प्रणाम करें, पश्चात्‌ गंध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य से पूजन कर प्रणाम करें व निम्न प्रार्थना करें-
‘परम पिता ब्रह्मा ने आपको लोक हितार्थ निर्मित किया है। आप मेरे हाथों में स्थिर भाव से स्थित रहें।’

प्रार्थना के पश्चात रोली, अक्षत, गंध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य से पूजन करें।

॥ बही-खाता पूजन ॥

नवीन बहियों एवं खाता पुस्तकों पर केसर युक्त चंदन से अथवा लाल रोली से “स्वस्तिक चिन्ह” बनाएँ। ऊपर ”श्री गणेशाय नमः” लिखें।

यहाँ पर भगवती महासरस्वती जी का ध्यान करे एवं पश्चात निम्न प्रार्थना करें-
हे सर्वस्वरूपिणी ! आपको नमस्कार है। हे मूल प्रकृति स्वरूपा एवं अखिल ज्ञान-सागर आप हमें सद्बुद्धि प्रदान करें।

प्रार्थना के पश्चात रोली, अक्षत, गंध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य से पूजन करें।

॥ तिजोरी-सिक्कों का पूजन ॥

तिजोरी अथवा सिक्कों, कीमती आभूषण व नकद द्रव्य रखे जाने वाली संदूक पर स्वस्तिक चिन्ह बनाकर शुभ लाभ लिखें एवं धनपति कुबेर का ध्यान करे एवं पश्चात निम्न प्रार्थना करें-

‘हे धन प्रदान करने वाले कुबेर ! आपको नमस्कार है, निधि के अधिपति भगवान कुबेर ! आपकी कृपा से मुझे धन, धान्य संपत्ति प्राप्त हो।’

प्रार्थना के पश्चात रोली, अक्षत, गंध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य से पूजन करें।

॥ तुला पूजन ॥

सिंदूर से तराजू पर स्वस्तिक बनाएँ, मौली लपेटें एवं प्रार्थना करें-

‘तुला-अधिष्ठात्र देवता आपको नमस्कार है’
‘शक्ति एवं सत्य के देवता आपकी प्रसन्नता से हमें धन-धान्य संपत्ति की प्राप्ति हो।’

प्रार्थना के पश्चात रोली, अक्षत, गंध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य से पूजन करें।

॥ दीपमाला (दीपावली) पूजन ॥

दीपक वाली थाली पर ग्यारह या इक्कीस दीपक प्रज्वलित कर महालक्ष्मी के सम्मुख रखें एवं एवं पश्चात निम्न प्रार्थना करें-
‘ॐ दीपावल्यै नमः’
प्रार्थना के पश्चात रोली, अक्षत, गंध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य से पूजन करें।
श्री गणेश, महालक्ष्मी एवं अन्य देवताओं को दीपमाला अर्पित करें।

इसके पश्चात श्री लक्ष्मीजी जी एवं श्री गणेश जी की आरती करे बाद में पूजित दीपकों को दुकान, घर के विभिन्न हिस्सों में सजाएँ।

॥ क्षमा प्रार्थना व विसर्जन ॥

इसके बाद सारे कुटुंब के लोग मिलकर सभी देवी देवताओ को प्रणाम करे एवं कहे की, हे सभी देवी देवताओ, मैं आह्वान, पूजा कर्म नहीं जानता, मुझे क्षमा करना।
यथा संभव सामग्री के साथ, यथा संभव मन्त्र और विधि से जो पूजन किया है कृपया स्वीकार करना। एवं प्रसन्न होकर आशीर्वाद बनाये रखना। एवं हमारे धन के भंडार भरना।

अब सभी देवी देवताओ को प्रणाम करे एवं कहे की, आप सब अपने-अपने स्थानों को प्रस्थान कीजिये एवं भविष्ये में आह्वान करने पर आप पधारने की कृपा करे तथा
श्री महालक्ष्मी जी से कहे कि- हे मातेश्वरी महालक्ष्मी जी, आप सदैव हमारे घर में ही विराजमान रहिये एवं अपनी कृपा बनाये रखना।

इसके पश्चात् पूरी रात भर दीपक महा लक्ष्मी के सामने जलता हुआ रखे और गोपाल सहस्रनाम, लक्ष्मी चालीसा, लक्ष्मी स्त्रोत तथा कनकधारा स्त्रोत का पाठ करे तो घर परिवार व व्यवसाय के लिए अति उत्तम है ।

ओम आनंद ! ओम आनंद !! ओम आनंद !!!

इति श्री महालक्ष्मी जी पूजन

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