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धन तेरस, यम दीपदान व कुबेर पूजन विधि | Dhan Teras, Yam Deepdan and Kuber Poojan Vidhi

दीपावली-लक्ष्मीपूजन

God-Kuber

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लक्ष्मीपूजन

गोवर्धन पूजा

भाई दूज

॥ पूजा का महत्व ॥

पूजन शुरू करने के पूर्व पूजन पद्धति को एक बार शुरू से आखिरी तक पढ़कर दोहरा लेना चाहिए उससे आप पूजन में आनंद का अनुभव करेंगे।

धनतेरस का त्योहार दीपावली के पाँच दिवसीय उत्सव का पहला दिन है। इसे ‘धन त्रयोदशी’ भी कहा जाता है। ‘धन’ का अर्थ है धन-संपत्ति, और ‘तेरस’ का अर्थ है त्रयोदशी, जो कि हिन्दू पंचांग के अनुसार कार्तिक मास की त्रयोदशी तिथि को आता है। इस दिन भगवान धन्वंतरि का जन्म हुआ था, जो आयुर्वेद के देवता और स्वास्थ्य के संरक्षक माने जाते हैं। इसलिए धनतेरस पर आरोग्य, लंबी उम्र और धन-समृद्धि की कामना की जाती है। इस दिन नए बर्तन, सोना-चांदी या अन्य बहुमूल्य चीजें खरीदने का भी रिवाज है, जिससे जीवन में शुभता और समृद्धि बनी रहे।

इस दिन धन्वंतरी देवता के साथ कुबेर, माता लक्ष्मी भगवान गणेश और यम की पूजा की जाती हैं।
यदि आप भगवान धन्वंतरि को प्रसन्न कर अपने घर में सुख-समृद्धि पाना चाहते हैं, तो उस दिन यहां बताएं गए तरीके से धन्वंतरि देवता की पूजा करें। यहां आप धनतेरस पूजा विधि के बारे में जान सकते है।

॥ पूजन सामग्री ॥

पूजन सामग्री को व्यवस्थित रूप से (पूजन शुरू करने के पूर्व) पूजा स्थल पर जमा कर रख लें, जिससे पूजन में अनावश्यक व्यवधान न हो।
यदि इनमे से कुछ सामग्री ना जुटा सकें तो कोई बात नहीं, जितनी सामग्री सहर्ष जुटा सकें उसी से भक्ति भावना से पूजा करें। क्योंकि कहा जाता है भगवान भावना से प्रसन होते है, सामग्री से नहीं।

• फल, मेवे, पुष्प, लाल-गुलाबी या पीले रंग का रेशमी वस्त्र है।
• सुगंध में केवड़ा, गुलाब, चंदन के इत्र का प्रयोग इनकी पूजा में अवश्य करें।
• मिठाई में, पांच प्रकार की मिठाई, घर में बनी शुद्धता पूर्ण केसर की मिठाई, हलवा, खीर तथा शिरा का नैवेद्य उपयुक्त है।
• प्रकाश के लिए गाय का घी, मूँगफली या तिल्ली का तेल इनको शीघ्र प्रसन्न करता है।
अन्य सामग्री में
• लाल कपड़ा, चौकी, दूर्वा, पंचामृत, जनेऊ, खील-बताशे, पंचामृत, गंगाजल, ऊन का आसन।
• रुई, धूपबत्ती, फूल, अष्टगंध, रोली, मौली, अक्षत ( साबुत चावल ), फूल माला, सुपारी, लौंग, इलायची, साबुत धनिया, पान के पत्ते, कपूर ,
• अगरबत्ती, मिट्टी के दीपक, पंचामृत, जनेऊ, चांदी के सिक्के, तांबे का लोटा, जल का कलश।

॥ पूजन की तैयारी ॥

पूजन को शुरु करने से पहले मंडप तैयार कर लें।

• सबसे पहले पूजा के स्थान को साफ कर लें।
• पूजन करते समय आपका मुँह पूर्व या उत्तर दिशा में होना चाहिए। सूर्य के रहते हुए अर्थात दिन में पूर्व की तरफ मुँह करके एवं सूर्यास्त के पश्चात उत्तर की तरफ मुँह करके पूजन करना चाहिए।
• पूजा वाले स्थान को साफ करके चौकी स्थापित करनी चाहिए।
• चौकी पर शुभ चिह्न स्वस्तिक बनाएं।
• चौकी पर साफ सुन्दर लाल रंग का कपड़ा बिछाएं।
• धनवंतरी देव और कुबेर यन्त्र या कुबेर मूर्ति की पूजा की जाती है। कुछ लोग तिजोरी या आभूषण की कुबेर के रूप में पूजा करते है।

• चौकी के सामने दो थाली व जल भरकर कलश रखें। थालियों की निम्नानुसार व्यवस्था करें-
• पहली थाली में, फूल, मिठाई, लौंग, इलायची, जनेऊ, मेवे।
• दूसरी थाली (पूजन की थाली) में, रोली, मौली, सुपारी, पान, चावल, कपूर, धूप, अगरबत्ती, एक दीपक, जल कलश ।
• पूजन की थाली में ही रोली से एक स्वास्तिक बनाते है।
• इसी स्वास्तिक के बीच में सुपारी पर मौली लपेटकर रोली लगाकर स्वास्तिक पर स्थापित करें। ये श्री गणेश जी का प्रतीक है। इसी पर श्री गणेश पूजन होता है
• स्वास्तिक एक तरफ रोली से नौ बिंदी बनायें। ये नवग्रह का प्रतीक हैं।
• स्वास्तिक के दूसरी तरफ रोली से सोलह बिंदी बनायें। ये शोडष मातृका का प्रतीक है।
• स्वास्तिक के नीचे की तरफ रोली से पांच बिंदी बनायें। ये पंचदेव के प्रतीक हैं।

इन थालियों के सामने यजमान लाल ऊनी आसन अथवा कुशा के आसन पर बैठे। आपके परिवार के सदस्य आपकी बाईं ओर बैठें। कोई आगंतुक हो तो वह आपके या आपके परिवार के सदस्यों के पीछे बैठे।

    धन तेरस, यम दीपदान व कुबेर पूजन विधि | Dhan Teras, Yam Deepdan and Kuber Poojan Vidhi

    ॥ पूजन प्रारंभ ॥

    ॥ पवित्रीकरण ॥

    सबसे पहले पवित्रीकरण करें।

    पवित्रकरण हेतु बाएँ हाथ में जल लेकर, दाहिने हाथ की अनामिका से स्वयं पर एवं समस्त पूजन सामग्री और अपने आसन पर निम्न दोहा बोलते हुए जल छिड़कें –

    वरुण विष्णु सबसे बड़े, देवन में सरताज ।
    बाहर भीतर देह मम, करो शुद्ध महाराज ॥

    ‘भगवान पुण्डरीकाक्ष का नाम उच्चारण करने से पवित्र अथवा अपवित्र व्यक्ति, बाहर एवं भीतर से पवित्र हो जाता है। भगवान पुण्डरीकाक्ष मुझे पवित्र करें।’

    ॥ आचमन ॥

    इसके बाद दाहिने हाथ में जल लेकर तीन बार आचमन करें

    ॐ केशवाय नमः स्वाहा, (आचमन करें)
    ॐ नारायणाय नमः स्वाहा, (आचमन करें)
    ॐ माधवाय नमः स्वाहा। (आचमन करें)

    निम्न मंत्र बोलकर हाथ धो लें।
    ॐ गोविन्दाय नमः हस्तं प्रक्षालयामि ।

    ॥ दीपक ॥

    शुद्ध घृत युक्त दीपक जलाएँ (हाथ धो लें)। निम्न वाक्यांश बोलते हुए दीप-देवता की पूजा करें-
    ‘हे दीप ! तुम देवरूप हो, हमारे कर्मों के साक्षी हो, विघ्नों के निवारक हो, हमारी इस पूजा के साक्षीभूत दीप देव, पूजन कर्म के समापन तक सुस्थिर भाव से आप हमारे निकट प्रकाशित होते रहें।’
    अब चौकी पर रखे सभी दीपक जगाये।

    ॥ श्री गणेश पूजन प्रारंभ ॥

    अब हाथ जोड़कर तथा यह दोहा बोलते हुए श्री गणेश जी महाराज का ध्यान व आह्वान कर नमस्कार करे।

    सिद्धि सदन गजवदनवर, प्रथम पूज्य गणराज ।
    प्रथम वंदना आपको, आय सुधारो काज ॥

    श्री गणेशजी ! आपको नमस्कार है। आप संपूर्ण विघ्नों की शांति करने वाले हैं।
    अपने गणों में गणपति, क्रांतदर्शियों में श्रेष्ठ कवि, शिवा-शिव के प्रिय ज्येष्ठ पुत्र और सुख आदि के प्रदाता, हम आपका इस पूजन कर्म में आह्वान करते हैं।
    हमारी स्तुतियों को सुनते हुए पालनकर्ता के रूप में आप इस सदन में आसीन हों क्योंकि आपकी आराधना के बिना कोई भी कार्य प्रारंभ नहीं किया जा सकता है।
    आप यहाँ पधारकर पूजा ग्रहण करें और हमारे इस पूजन कर्म की रक्षा भी करें।

    अब श्री गणेश की मूर्ति अथवा छोटी चौकी पर स्वस्तिक पर रखी सुपारी पर श्री गणेश जी महाराज का पूजन इस प्रकार करे

    • पहले जल छिड़कें और बोलें – स्नानं समर्पयामि
    • मौली चढ़ायें और बोलें – वस्त्रम समर्पयामि ( गणेश जी को जनेऊ अर्पित करें )
    • रौली के छींटे दें बोलें – गन्धकं समर्पयामि
    • अक्षत चढ़ायें बोलें – अक्षतान समर्पयामि
    • पुष्प, फूल और माला चढ़ायें बोलें – पुष्पं समर्पयामि
    • धूप दिखाएँ बोलें – धूपम समर्पयामि
    • दीपक दिखाएँ बोलें – दीपम दर्शयामि
    • गुड़ या मिठाई चढ़ाएं बोलें – नैवेद्यम समर्पयामि
    • जल के छींटे देकर आचमन कराएँ बोलें – आचमन समर्पयामि
    • पान चढ़ाएं बोलें – ताम्बूलं समर्पयामि
    • सुपारी या पैसे चढ़ाएं बोलें – दक्षिणा समर्पयामि

    प्रार्थना- हे गणेश ! यथाशक्ति आपका पूजन किया, मेरी त्रुटियों को क्षमा कर आप इसे स्वीकार करें। अब हाथ जोड़कर श्री गणेश जी महाराज को नमस्कार कर यह दोहा बोले

    जय गणपति गिरजा सुवन, रिद्धि सिद्धि दातार
    कष्ट हरो मंगल करो, नमस्कार सत बार

    ॥ धन्वन्तरि पूजन॥

    अब हाथ जोड़कर धन्वन्तरि जी महाराज का ध्यान व आह्वान कर नमस्कार करे।
    अब धन्वन्तरि जी पर

    • पहले जल छिड़कें और बोलें – स्नानं समर्पयामि
    • मौली चढ़ायें और बोलें – वस्त्रम समर्पयामि
    • रौली के छींटे दें बोलें – गन्धकं समर्पयामि
    • अक्षत चढ़ायें बोलें – अक्षतान समर्पयामि
    • धूप दिखाएँ बोलें – धूपमाघ्रापयामी
    • दीपक दिखाएँ बोलें – दीपम दर्शयामि
    • गुड़ या मिठाई चढ़ाएं बोलें – नैवेद्यम समर्पयामि
    • जल के छींटे देकर आचमन कराएँ बोलें – आचमनियां समर्पयामि
    • पान चढ़ाएं बोलें – ताम्बूलं समर्पयामि
    • सुपारी या पैसे चढ़ाएं बोलें – दक्षिणा समर्पयामि

    धन्वन्तरि जी से यह प्रार्थना करें – हे आयुर्वेद के जनक धन्वन्तरि देव समस्त जगत को निरोग कर मानव समाज को दीर्घायुष्य प्रदान करें। हमें सपरिवार आरोग्य का वरदान प्रदान करें।

    ॥ कुबेर, तिजोरी-सिक्कों का पूजन ॥

    तिजोरी अथवा सिक्कों, कीमती आभूषण व नकद द्रव्य रखे जाने वाली संदूक पर स्वस्तिक चिन्ह बनाकर शुभ लाभ लिखें एवं धनपति कुबेर का ध्यान करे एवं पश्चात निम्न प्रार्थना करें-
    ‘हे धन प्रदान करने वाले कुबेर ! आपको नमस्कार है, निधि के अधिपति भगवान कुबेर ! आपकी कृपा से मुझे धन, धान्य संपत्ति प्राप्त हो।’

    अब कुबेर जी महाराज पर

    • पहले जल छिड़कें और बोलें – स्नानं समर्पयामि
    • मौली चढ़ायें और बोलें – वस्त्रम समर्पयामि
    • रौली के छींटे दें बोलें – गन्धकं समर्पयामि
    • अक्षत चढ़ायें बोलें – अक्षतान समर्पयामि
    • धूप दिखाएँ बोलें – धूपमाघ्रापयामी
    • दीपक दिखाएँ बोलें – दीपम दर्शयामि
    • गुड़ या मिठाई चढ़ाएं बोलें – नैवेद्यम समर्पयामि
    • जल के छींटे देकर आचमन कराएँ बोलें – आचमनियां समर्पयामि
    • पान चढ़ाएं बोलें – ताम्बूलं समर्पयामि
    • सुपारी या पैसे चढ़ाएं बोलें – दक्षिणा समर्पयामि

    ॥ यम दीपदान विधि ॥

    धनतेरस के दिन यम के नाम से विशेष रूप से दीपदान की परंपरा हैं। सायंकाल मिट्टी का कोरा दीपक लेते हैं।
    उसमें तिल का तेल डालकर नवीन रूई की बत्ती रखते हैं और फिर उसे प्रकाशित कर, दक्षिण की तरह मुंह करके मृत्यु के देवता यम को समर्पित करते हैं।
    तत्पश्चात इसे दरवाजे के बगल में अनाज की ढेरी पर रख देते हैं। प्रयास यह रहता है कि यह रातभर जलता रहे, बुझे नहीं।

    दक्षिण दिशा की तरफ मुंह करके इस श्लोक का उच्चारण करते हुए दीपदान किया जाता है।

    मृत्युना पाशदंडाभ्याम कालेन श्यामया सह,
    त्रयोदश्याम दीपदानात सुर्यजः प्रीयताम मम।
    ( अर्थात इस दीपदान से सूर्यपुत्र यम खुश हों तथा हमें मृत्यु , पाश , दण्ड और काल से मुक्त करें )

    प्रार्थना के पश्चात रोली, अक्षत, गंध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य से पूजन करें।

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