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गोवर्धन पूजा अन्नकूट पूजन विधि | Gordhan Pooja Annkut Poojan Vidhi

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॥ पूजा का महत्व ॥

पूजन शुरू करने के पूर्व पूजन पद्धति को एक बार शुरू से आखिरी तक पढ़कर दोहरा लेना चाहिए उससे आप पूजन में आनंद का अनुभव करेंगे।

गोवर्धन पूजा व अन्नकूट पूजा कार्तिक शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि के दिन की जाती है। धन तेरस, रूप चौदस और दीपावली के बाद गोवर्धन पूजा या अन्न कूट पूजा का दिन होता है।
गोवर्धन पूजा या अन्नकूट पूजा असल में गोवर्धन पर्वत की पूजा है। यह पर्वत बृज में स्थित है। इसे गिर्राज पर्वत के नाम से भी जाना जाता है ।
मूलतः यह प्रकृति की पूजा है, जिसका आरम्भ भगवान कृष्ण ने किया था ।

मंदिरों में छप्पन भोग बना कर भगवान को भोग लगाया जाता है। जिसमें छप्पन प्रकार खाने की वस्तुएँ बनाई जाती है।
यह भोग गोवर्धन पूजा का ही प्रतीक होता है। यह अन्न कूट कहलाता है। भोग लगाने के बाद इसे प्रसाद के रूप में बांटा जाता है।

॥ पूजन सामग्री ॥

पूजन सामग्री को व्यवस्थित रूप से ( पूजन शुरू करने के पूर्व ) पूजा स्थल पर जमा कर रख लें, जिससे पूजन में अनावश्यक व्यवधान न हो।
यदि इनमे से कुछ सामग्री ना जुटा सकें तो कोई बात नहीं, जितनी सामग्री सहर्ष जुटा सकें उसी से भक्ति भावना से पूजा करें। क्योंकि कहा जाता है भगवान भावना से प्रसन होते है, सामग्री से नहीं।

• इस पूजा के लिए लक्ष्मी पूजन वाली थाली, बड़ा दीपक , कलश व बची हुई सामग्री काम में लेना शुभ मानते है।
• गाय के गोबर
• रोली, मौली, अक्षत ( साबुत चावल )।
• दीपक, तेल, रुई, धूपबत्ती, अष्टगंध।
• पूजा के पुष्प, फूल माला रखे।
• पंचामृत, पंचामृत दूध, दही, शहद, घी और शक्कर मिलाकर बनाया जाता है।
• प्रसाद के लिए फल, मिठाई।
• दक्षिणा ।

॥ पूजन की तैयारी ॥

पूजन को शुरु करने से पहले मंडप तैयार कर लें।

पूजन को शुरु करने से पहले मंडप तैयार कर लें।

• गोवर्धन के दिन सबसे पहले स्नान करे एंव सभी समाग्री एकत्रित करे।
• अब साफ़ सुथरे वस्त्र को धारण करे और पवित्र होकर पूजा स्थान पर पूजा समग्री के साथ बैठ जाए।
• घर के आंगन में गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत बनायें। इसे लेटे हुए पुरुष की आकृति में बनाया जाता है ।
• गोवर्धन पर्वत की आकृति तैयार कर उनके मध्य में भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति रखी जाती है
• नाभि के स्थान पर एक कटोरी जितना गड्डा बना लें। नाभि के स्थान पर एक कटोरी जितना गड्डा बना लें।
• फूल , पत्तियों , टहनियों व गाय की आकृतियों से या अपनी सुविधानुसार सजायें ।

• पूजन की थाली में, रोली, मौली, सुपारी, पान, चावल, कपूर, धूप, अगरबत्ती, एक दीपक, जल कलश ।
• पूजन की थाली में ही रोली से एक स्वास्तिक बनाते है।
• इसी स्वास्तिक के बीच में सुपारी पर मौली लपेटकर रोली लगाकर स्वास्तिक पर स्थापित करें। ये श्री गणेश जी का प्रतीक है। इसी पर श्री गणेश पूजन होता है

    गोवर्धन पूजा अन्नकूट पूजन विधि | Gordhan Pooja Annkut Poojan Vidhi

    ॥ गोवर्धन पूजन प्रारंभ ॥

    ॥ पवित्रीकरण ॥

    सबसे पहले पवित्रीकरण करें।

    पवित्रकरण हेतु बाएँ हाथ में जल लेकर, दाहिने हाथ की अनामिका से स्वयं पर एवं समस्त पूजन सामग्री और अपने आसन पर निम्न दोहा बोलते हुए जल छिड़कें –

    वरुण विष्णु सबसे बड़े, देवन में सरताज ।
    बाहर भीतर देह मम, करो शुद्ध महाराज ॥

    ‘भगवान पुण्डरीकाक्ष का नाम उच्चारण करने से पवित्र अथवा अपवित्र व्यक्ति, बाहर एवं भीतर से पवित्र हो जाता है। भगवान पुण्डरीकाक्ष मुझे पवित्र करें।’

    ॥ आचमन ॥

    इसके बाद दाहिने हाथ में जल लेकर तीन बार आचमन करें

    ॐ केशवाय नमः स्वाहा, (आचमन करें)
    ॐ नारायणाय नमः स्वाहा, (आचमन करें)
    ॐ माधवाय नमः स्वाहा। (आचमन करें)

    निम्न मंत्र बोलकर हाथ धो लें।
    ॐ गोविन्दाय नमः हस्तं प्रक्षालयामि ।

    ॥ दीपक ॥

    शुद्ध घृत युक्त दीपक जलाएँ (हाथ धो लें)। निम्न वाक्यांश बोलते हुए दीप-देवता की पूजा करें-
    ‘हे दीप ! तुम देवरूप हो, हमारे कर्मों के साक्षी हो, विघ्नों के निवारक हो, हमारी इस पूजा के साक्षीभूत दीप देव, पूजन कर्म के समापन तक सुस्थिर भाव से आप हमारे निकट प्रकाशित होते रहें।’
    अब चौकी पर रखे सभी दीपक जगाये।

    ॥ श्री गणेश पूजन प्रारंभ ॥

    अब हाथ जोड़कर तथा यह दोहा बोलते हुए श्री गणेश जी महाराज का ध्यान व आह्वान कर नमस्कार करे।

    सिद्धि सदन गजवदनवर, प्रथम पूज्य गणराज ।
    प्रथम वंदना आपको, आय सुधारो काज ॥

    श्री गणेशजी ! आपको नमस्कार है। आप संपूर्ण विघ्नों की शांति करने वाले हैं।
    अपने गणों में गणपति, क्रांतदर्शियों में श्रेष्ठ कवि, शिवा-शिव के प्रिय ज्येष्ठ पुत्र और सुख आदि के प्रदाता, हम आपका इस पूजन कर्म में आह्वान करते हैं।
    हमारी स्तुतियों को सुनते हुए पालनकर्ता के रूप में आप इस सदन में आसीन हों क्योंकि आपकी आराधना के बिना कोई भी कार्य प्रारंभ नहीं किया जा सकता है।
    आप यहाँ पधारकर पूजा ग्रहण करें और हमारे इस पूजन कर्म की रक्षा भी करें।

    अब श्री गणेश की मूर्ति अथवा छोटी चौकी पर स्वस्तिक पर रखी सुपारी पर श्री गणेश जी महाराज का पूजन इस प्रकार करे

    • पहले जल छिड़कें और बोलें – स्नानं समर्पयामि
    • मौली चढ़ायें और बोलें – वस्त्रम समर्पयामि ( गणेश जी को जनेऊ अर्पित करें )
    • रौली के छींटे दें बोलें – गन्धकं समर्पयामि
    • अक्षत चढ़ायें बोलें – अक्षतान समर्पयामि
    • पुष्प, फूल और माला चढ़ायें बोलें – पुष्पं समर्पयामि
    • धूप दिखाएँ बोलें – धूपम समर्पयामि
    • दीपक दिखाएँ बोलें – दीपम दर्शयामि
    • गुड़ या मिठाई चढ़ाएं बोलें – नैवेद्यम समर्पयामि
    • जल के छींटे देकर आचमन कराएँ बोलें – आचमन समर्पयामि
    • पान चढ़ाएं बोलें – ताम्बूलं समर्पयामि
    • सुपारी या पैसे चढ़ाएं बोलें – दक्षिणा समर्पयामि

    प्रार्थना- हे गणेश ! यथाशक्ति आपका पूजन किया, मेरी त्रुटियों को क्षमा कर आप इसे स्वीकार करें। अब हाथ जोड़कर श्री गणेश जी महाराज को नमस्कार कर यह दोहा बोले

    जय गणपति गिरजा सुवन, रिद्धि सिद्धि दातार
    कष्ट हरो मंगल करो, नमस्कार सत बार

    ऊँ वक्रतुण्ड़ महाकाय सूर्य कोटि समप्रभ ।
    निर्विघ्नं कुरू मे देव, सर्व कार्येषु सर्वदा ॥

    ॥ श्री कृष्ण पूजन ॥

    श्री कृष्ण भगवान का ध्यान व आह्वान कर नमस्कार करे।

    अब श्री कृष्ण भगवान पर

    • मौली चढ़ायें और बोलें – वस्त्रम समर्पयामि
    • रौली के छींटे दें बोलें – गन्धकं समर्पयामि
    • अक्षत चढ़ायें बोलें – अक्षतान समर्पयामि
    • धूप दिखाएँ बोलें – धूपमाघ्रापयामी
    • दीपक दिखाएँ बोलें – दीपम दर्शयामि
    • गुड़ या मिठाई चढ़ाएं बोलें – नैवेद्यम समर्पयामि
    • जल के छींटे देकर आचमन कराएँ बोलें – आचमनियां समर्पयामि
    • पान चढ़ाएं बोलें – ताम्बूलं समर्पयामि
    • सुपारी या पैसे चढ़ाएं बोलें – दक्षिणा समर्पयामि

    ॥ गोवर्धन पूजन ॥

    गोवर्धन महाराज का ध्यान व आह्वान कर नमस्कार करे।
    अब गोवर्धन महाराज पर

    • पहले जल छिड़कें और बोलें – स्नानं समर्पयामि
    • मौली चढ़ायें और बोलें – वस्त्रम समर्पयामि ( गणेश जी को जनेऊ अर्पित करें )
    • रौली के छींटे दें बोलें – गन्धकं समर्पयामि
    • अक्षत चढ़ायें बोलें – अक्षतान समर्पयामि
    • धूप दिखाएँ बोलें – धूपमाघ्रापयामी
    • दीपक दिखाएँ बोलें – दीपम दर्शयामि
    • तुलसी का पत्ता डालकर पंचामृत, फल, मिठाई चढ़ाएं बोलें – नैवेद्यम समर्पयामि
    • नाभि के स्थान पर, दूध, दही, गंगाजल, शहद, बताशे, गुड़ या मिठाई चढ़ाएं बोलें – नैवेद्यम समर्पयामि
    • जल के छींटे देकर आचमन कराएँ बोलें – आचमनियां समर्पयामि
    • पान चढ़ाएं बोलें – ताम्बूलं समर्पयामि
    • सुपारी या पैसे चढ़ाएं बोलें – दक्षिणा समर्पयामि

    गोवर्धन की सात बार परिक्रमा लगाएं। और इसके बाद कथा कहे और आरती करें।

    ॥ गोवर्धन अन्नकूट की कहानी ॥

    गोवर्धन पर्वत की कहानी या अन्नकूट की कहानी भगवान श्री कृष्ण की लीलाओं का एक हिस्सा है। इसमें किसे कितना महत्त्व दिया जाना चाहिए यह समझाया गया है।

    एक दिन भगवान कृष्ण ने देखा कि पूरे बृज में तरह तरह के मिष्ठान और पकवान बनाये जा रहे है। पूछने पर पता चला यह सब मेघ देवता इंद्र की पूजा के लिए तैयार हो रहा है।
    इंद्र प्रसन्न होंगे तभी वर्षा होगी। गायों को चारा मिलेगा, तभी वे दूध देंगी और हमारा काम चलेगा।

    यह सुनकर भगवान श्री कृष्ण ने इंद्र की निंदा करते हुए कहा कि पूजा उसी देवता की करनी चाहिए जो प्रत्यक्ष आकर पूजन सामग्री स्वीकार करे।
    इंद्र मे क्या शक्ति है जो पानी बरसाकर हमारी सहायता करेगा। उससे तो शक्तिशाली यह गोवर्धन पर्वत है, जो वर्षा का मूल कारण है, हमें इसकी पूजा करनी चाहिए।

    इस बात की धूम मचने लगी। नन्दजी ने एक सभा बुलवाई और सबके सामने कृष्ण से पूछा कि इंद्र की पूजा से तो दुर्भिक्ष उत्पीड़न समाप्त होगा।
    चौमासे के सुन्दर दिन आयेंगे। गोवर्धन पूजा से क्या लाभ होगा। उत्तर में श्री कृष्ण ने गोवर्धन की बहुत प्रशंसा की और उसे गोप गोपियों का एकमात्र सहारा सिद्ध कर दिया।
    कृष्ण की बात से समस्त बृज मंडल प्रभावित हुआ ।

    उन्होंने घर जाकर अनेक प्रकार के व्यंजन, मिष्ठान आदि बनाये और गोवर्धन की तराई में कृष्ण द्वारा बताई विधि से भोग लगाकर पूजा की ।
    भगवान की कृपा से बृज वासियों द्वारा अर्पित समस्त पूजन सामग्री और भोग गिरिराज ने स्वीकार करके खूब आशीर्वाद दिया।
    सभी लोग अपना पूजन सफल समझकर प्रसन्न हो रहे थे।

    तभी नारद जी इंद्र महोत्सव देखने के लिए बृज आये तो उन्हें पता चला की इस बार कृष्ण के बताये अनुसार इंद्र की बजाय गोवर्धन की पूजा की जा रही है।
    यह सुनते ही नारद जी तुरंत इंद्र के पास पहुंचे और कहा–राजन, तुम तो यहाँ सुख की नींद सो रहे हो और उधर बृज मंडल में तुम्हारी पूजा बंद करके गोवर्धन की पूजा हो रही है।
    इसे इंद्र ने अपना अपमान समझा और मेघों को आज्ञा दी और कहा कि गोकुल जाकर प्रलयकारी मूसलाधार वर्षा से पूरा गांव तहस नहस कर दे ।

    पर्वताकार प्रलयकारी बादल, उनकी गर्जना और मूसलाधार बारिश से बृजवासी घबराकर कृष्ण की शरण में पहुंचे। उन्होंने पूछा कि अब क्या करें।
    कृष्ण ने कहा तुम गायों सहित गोवर्धन की शरण में चलो वह जरूर तुम्हारी रक्षा करेगा। सारे ग्वाल बाल गोवर्धन की तराई में पहुँच गये।
    श्री कृष्ण ने गोवर्धन को कनीष्ठा अंगुली पर उठा लिया। सभी बृज वासी सात दिन तक उसके नीचे सुख पूर्वक रहे। उन्हें किसी प्रकार की कोई तकलीफ नहीं हुई।

    इंद्र ने पूरा जोर लगा लिया पर वह बृज वासियों का कुछ बिगाड़ नहीं पाया।
    भगवान की महिमा को समझकर अपना गर्व त्यागकर वह स्वयं बृज में गया और भगवान कृष्ण के चरणों में गिरकर अपनी मूर्खता पर पश्चाताप करने लगा। सातवें दिन भगवान ने गोवर्धन को नीचे रख दिया।
    उन्होंने गोवर्धन पूजा करके अन्नकूट हर वर्ष मनाने की आज्ञा दी। तभी से यह उत्सव अन्नकूट के नाम से मनाया जाने लगा।
    बोलो श्री गोवर्धन महाराज की जय !!!

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