हरतालिका तीज व्रत कथा | Hartalika Teej Vrat Katha
॥ कथा का महत्त्व ॥
हिन्दू धर्म में साल में चार तीज मनाई जाती है। हर तीज का अपना अलग महत्व है, और ये सभी बड़ी धूमधाम से यहाँ मनाई जाती है।
तीज का महत्व औरतों के जीवन में बहुत अधिक होता है। देश में अलग अलग प्रान्त के लोग इसे अलग अलग नाम से बुलाते है, लेकिन सबका उद्देश्य इस व्रत का एक ही होता है,
अपने पति की लम्बी आयु , इस व्रत का एक और उद्देश्य है।
1. अखा तीज
2. हरियाली तीज/ श्रावणी तीज/ सावन की तीज/ छोटी तीज : श्रावण शुक्ल पक्ष तृतीया तिथि
3. कजली तीज/ कजरी तीज/ बड़ी तीज/सातुड़ी तीज : भाद्रपद कृष्ण पक्ष तृतीया तिथि
4. हरतालिका तीज : भाद्रपद शुक्ल पक्ष तृतीया तिथि
॥ हरतालिका तीज महत्त्व॥
हरतालिका तीज पर कुंआरी कन्याएँ अपने मन के अनुरूप पति को प्राप्त करने हेतु माँ गौरी व भगवान शंकर की पूजा एवं व्रत करती हैं।
यह त्यौहार भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को आता है, तथा हरतालिका व्रत हस्त नक्षत्र में किया जाता है। नई विधा के अनुसार कुछ सौभाग्यवती स्त्रियां भी हरतालिका व्रत का पालन करतीं हैं।
हरतालिका तीज का शाब्दिक अर्थ क्रमशः हरत अर्थात अपहरण, आलिका का अर्थ स्त्रीमित्र (सहेली) तथा तीज-तृतीया तिथि से लिया गया है।
हरतालिका तीज की कथा के अनुसार, देवी पार्वतीजी की उनकी सहेलियां अपहरण कर उन्हें घने जंगल में ले गई थीं। जिससे कि पार्वतीजी के पिता उनका विवाह, उनकी ही इच्छा के विरुद्ध भगवान विष्णु से न कर दें।
॥ पूजा विधि ॥
- हरतालिका तीज प्रदोष काल में पूजा करना काफी शुभफल दायक होती है। सूर्यास्त के बाद मुहूर्त को प्रदोषकाल कहते हैं। इसमें दिन और रात का मिलन होता है।
- हरतालिका तीज के दिन भगवान शिव, माता पार्वती और भगवान गणेश की बालू रेत व काली मिट्टी से बनी प्रतिमा की पूजा की जाती है। संभव हो तो मिट्टी की प्रतिमा घर पर ही बनानी चाहिए।
- फिर मूर्ति को फूलों से सजे चौकी पर रखें। ध्यान रहें इस चौकी में लाल कपड़ा अवश्य बिछा हुआ होना चाहिए। भगवान शिव और माता पार्वती की प्रतिमा के साथ भगवान गणेश को भी स्थापित करें।
- पूजा स्थल को फूलों से सजाकर एक चौकी रखें और उस चौकी पर केले के पत्ते रखकर भगवान शंकर, माता पार्वती और भगवान गणेश की प्रतिमा स्थापित करें।
- पूजा के लिए शाम के समय नहाकर शुद्ध वस्त्र धारण करें।
- पहले गणेश जी , नवग्रह और षोड़श माता की पूजा करें। इसके बाद भगवान शिव और माता पार्वती की प्रतिमा की पूजा करें।
- इसके लिए शुद्ध जल , पंचामृत , रोली , मौली , अक्षत , चन्दन , सिन्दूर , फ़ल फूल , बील पत्र से पूजा करें।
- सुहाग की पिटारी में सुहाग की सारी वस्तु रखकर माता पार्वती को चढ़ाना इस व्रत की मुख्य परंपरा है ।
- शिवजी को धोती गमछा चढ़ायें , पार्वती जी को लहंगा ओढ़नी और सुहाग पिटारी चढ़ाएं। आरती करें ।
- हरतालिका तीज की कहानी सुने। हो सके तो रात्रि जागरण करें।
- अगले दिन शिव पार्वती की प्रतिमा जलाशय में या पीपल में विसर्जित करें। ब्राह्मण –ब्राह्मणी के एक जोड़े को भोजन करायें।
- धोती गमछा ब्रह्मण को दें , ब्राह्मणी को लहंगा , ओढ़नी , सुहाग पिटारी तथा दक्षिणा देकर विदा करें।
हरतालिका तीज व्रत कथा
मान्यता है कि भगवान शिव ने पार्वती जी को उनका पूर्व जन्म याद दिलाने के लिए इस व्रत की माहात्म्य कथा कही थी।
हे गौरी ! पर्वतराज हिमालय पर गंगा के तट पर तुमने अपनी बाल्यावस्था में अधोमुखी होकर घोर तप किया था। इस अवधि में तुमने अन्न ना खाकर केवल हवा का ही सेवन के साथ तुमने सूखे पत्ते चबाकर काटी थी।
माघ की शीतलता में तुमने निरंतर जल में प्रवेश कर तप किया था। वैशाख की जला देने वाली गर्मी में पंचाग्नि से शरीर को तपाया। श्रावण की मूसलाधार वर्षा में खुले आसमान के नीचे बिना अन्न जल ग्रहण किए व्यतीत किया।
तुम्हारी इस कष्टदायक तपस्या को देखकर तुम्हारे पिता बहुत दुःखी और नाराज़ होते थे। तब एक दिन तुम्हारी तपस्या और पिता की नाराज़गी को देखकर नारदजी तुम्हारे घर पधारे।
तुम्हारे पिता द्वारा आने का कारण पूछने पर नारदजी बोले –हे गिरिराज ! मैं भगवान् विष्णु के भेजने पर यहां आया हूं। आपकी कन्या की घोर तपस्या से प्रसन्न होकर वह उससे विवाह करना चाहते हैं।
इस बारे में – मैं आपके विचार जानना चाहता हूं। नारदजी की बात सुनकर पर्वतराज अति प्रसन्नता के साथ बोले – श्रीमान ! यदि स्वयं विष्णुजी मेरी कन्या का वरण करना चाहते हैं तो मुझे क्या आपत्ति हो सकती है।
वे तो साक्षात ब्रह्म हैं। यह तो हर पिता की इच्छा होती है कि उसकी पुत्री सुख-सम्पदा से युक्त पति के घर की लक्ष्मी बने।
नारदजी तुम्हारे पिता की स्वीकृति पाकर विष्णुजी के पास गए और उन्हें विवाह तय होने का समाचार सुनाया। परंतु जब तुम्हें इस विवाह के बारे में पता चला तो तुम्हारे दुःख का ठिकाना ना रहा।
तुम्हे इस प्रकार से दुःखी देखकर, तुम्हारी एक सहेली ने तुम्हारे दुःख का कारण पूछने पर तुमने बताया कि –मैंने सच्चे मन से भगवान् शिव का वरण किया है, किन्तु मेरे पिता ने मेरा विवाह विष्णुजी के साथ तय कर दिया है।
मैं विचित्र धर्मसंकट में हूँ। अब मेरे पास प्राण त्याग देने के अलावा कोई और उपाय नहीं बचा।
तुम्हारी सखी बहुत ही समझदार थी। उसने कहा –प्राण छोड़ने का यहाँ कारण ही क्या है? संकट के समय धैर्य से काम लेना चाहिए।
भारतीय नारी के जीवन की सार्थकता इसी में है कि जिसे मन से पति रूप में एक बार वरण कर लिया, जीवनपर्यन्त उसी से निर्वाह करे। सच्ची आस्था और एकनिष्ठा के समक्ष तो भगवान् भी असहाय हैं।
मैं तुम्हे घनघोर वन में ले चलती हूँ जो साधना थल भी है और जहाँ तुम्हारे पिता तुम्हे खोज भी नहीं पायेंगे। मुझे पूर्ण विश्वास है कि ईश्वर अवश्य ही तुम्हारी सहायता करेंगे। तुमने ऐसा ही किया।
तुम्हारे पिता तुम्हे घर में न पाकर बड़े चिंतित और दुःखी हुए। वह सोचने लगे कि मैंने तो विष्णुजी से अपनी पुत्री का विवाह तय कर दिया है।
यदि भगवान् विष्णु बारात लेकर आ गये और कन्या घर पर नहीं मिली तो बहुत अपमान होगा, ऐसा विचार कर पर्वतराज ने चारों ओर तुम्हारी खोज शुरू करवा दी।
इधर तुम्हारी खोज होती रही उधर तुम अपनी सहेली के साथ नदी के तट पर एक गुफा में मेरी आराधना में लीन रहने लगी।
भाद्रपद तृतीय शुक्ल को हस्त नक्षत्र था। उस दिन तुमने रेत के शिवलिंग का निर्माण किया। रात भर मेरी स्तुति में गीत गाकर जागरण किया।
तुम्हारी इस कठोर तपस्या के प्रभाव से मेरा आसन हिल उठा और मैं शीघ्र ही तुम्हारे पास पहुँचा और तुमसे वर मांगने को कहा।
तब अपनी तपस्या के फलीभूत मुझे अपने समक्ष पाकर तुमने कहा –मैं आपको सच्चे मन से पति के रूप में वरण कर चुकी हूँ।
यदि आप सचमुच मेरी तपस्या से प्रसन्न होकर यहाँ पधारे हैं तो मुझे अपनी अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार कर लीजिये। तब ‘तथास्तु’कहकर मैं कैलाश पर्वत पर लौट गया।
प्रातः होते ही तुमने पूजा की समस्त सामग्री नदी में प्रवाहित करके अपनी सखी सहित व्रत का वरण किया।
उसी समय गिरिराज अपने बंधु–बांधवों के साथ तुम्हे खोजते हुए वहाँ पहुंचे। तुम्हारी दशा देखकर अत्यंत दुःखी हुए और तुम्हारी इस कठोर तपस्या का कारण पूछा।
तब तुमने कहा –पिताजी, मैंने अपने जीवन का अधिकांश वक़्त कठोर तपस्या में बिताया है। मेरी इस तपस्या के केवल उद्देश्य महादेवजी को पति के रूप में प्राप्त करना था।
आज मैं अपनी तपस्या की कसौटी पर खरी उतर चुकी हूँ।
चूंकि आप मेरा विवाह विष्णुजी से करने का निश्चय कर चुके थे, इसलिये मैं अपने आराध्य की तलाश में घर से चली गयी। अब मैं आपके साथ घर इसी शर्त पर चलूंगी कि आप मेरा विवाह महादेवजी के साथ ही करेंगे।
पर्वतराज ने तुम्हारी इच्छा स्वीकार कर ली और तुम्हे घर वापस ले गये। कुछ समय बाद उन्होंने पूरे विधि –विधान के साथ हमारा विवाह किया।
भगवान् शिव ने आगे कहा –हे पार्वती! भाद्र पद कि शुक्ल तृतीया को तुमने मेरी आराधना करके जो व्रत किया था, उसी के परिणाम स्वरूप हम दोनों का विवाह संभव हो सका।
इस व्रत का महत्त्व यह है कि मैं इस व्रत को पूर्ण निष्ठा से करने वाली प्रत्येक स्त्री को मन वांछित फल देता हूँ।
भगवान् शिव ने पार्वतीजी से कहा कि इस व्रत को जो भी स्त्री पूर्ण श्रद्धा से करेगी उसे तुम्हारी तरह अचल सुहाग प्राप्त होगा।
शिव पार्वती की … जय !!!