इंदिरा एकादशी व्रत कथा | Indira Ekadashi Vrat Katha

॥ एकादशी का महत्त्व ॥
आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को इंदिरा एकादशी कहा जाता है। इस एकादशी की खास बात यह है कि यह पितृपक्ष में आती है जिसकारण इसका महत्व बहुत अधिक हो जाता है।मान्यता है कि यदि कोई पूर्वज़ जाने-अंजाने हुए अपने पाप कर्मों के कारण यमराज के पास अपने कर्मों का दंड भोग रहे हैं ।तो इस एकादशी पर विधिपूर्वक व्रत कर इसके पुण्य को उनके नाम पर दान कर दिया जाये तो उन्हें मोक्ष मिल जाता है और मृत्युपर्यंत व्रती भी बैकुण्ठ में निवास करता है।
एकादशी व्रत का व्रत जब किसी कामना के लिए किया जाता है तो उसे काम्य एकादशी व्रत कहते हैं। ऐसा व्रत धन, संपत्ति, संतान, आयु, स्वास्थ्य आदि की कामना से किया जाता है। यदि निष्काम भावना से यह व्रत किया जाता है तो इसे नित्य एकादशी व्रत कहा जाता है।
इस व्रत में भगवान की भक्ति ही मुख्य ध्येय होता है। पुराणों की व्याख्या करने वाले ब्रह्मज्ञानी श्री सूत जी महाराज ने एकादशी के महत्त्व और उनसे सम्बंधित कथाओं का वर्णन किया है।
उनके अनुसार इन्द्रियों पर नियमन यानि संयम करना आवश्यक होता है। इसलिए इसे नियम भी कहते हैं।एकादशी के व्रत नियम पूर्वक करने से बुद्धि निर्मल होने लगती है। विचारों में सत्व गुणों का आगमन होने लगता है। विवेक शक्ति आती है तथा सत असत का निर्णय स्वतः ही होने लगता है।
॥ पूजन सामग्री ॥
पूजन सामग्री को व्यवस्थित रूप से ( पूजन शुरू करने के पूर्व ) पूजा स्थल पर जमा कर रख लें, जिससे पूजन में अनावश्यक व्यवधान न हो।
यदि इनमे से कुछ सामग्री ना जुटा सकें तो कोई बात नहीं, जितनी सामग्री सहर्ष जुटा सकें उसी से भक्ति भावना से पूजा करें। क्योंकि कहा जाता है भगवान भावना से प्रसन होते है, सामग्री से नहीं।
- चौकी, रोली, मौली, अक्षत ( साबुत चावल )
- दीपक, शुद्ध देशी घी, रुई, धूपबत्ती, फूल, अष्टगंध
- अगरबत्ती, कपूर, तुलसीदल, जनेऊ, जल का कलश।
- प्रसाद के लिए गेंहू के आटे की पंजीरी, फल, दूध, मिठाई, नारियल, पंचामृत, सूखे मेवे, शक्कर, पान में से जो भी हो सवाया लें।
- दक्षिणा।
॥ पूजन का मंडप ॥
पूजन को शुरु करने से पहले मंडप तैयार कर लें।
- सबसे पहले पूजा के स्थान को साफ कर लें।
- अब पूर्व या उत्तर की ओर मुख कर बैठे।
- पूजा वाले स्थान को साफ करके चौकी स्थापित करनी चाहिए।
- चौकी पर शुभ चिह्न स्वस्तिक बनाएं।
- चौकी पर साफ लाल रंग का कपड़ा बिछाएं।
- अब भगवान श्री गणेश एवं भगवान विष्णु की तस्वीर रखें। श्री कृष्ण या सत्यनारायण की प्रतिमा की भी स्थापना कर सकते है।
- अब बायी ओर दीपक रखें।
- चौकी के सामने पूजन की थाली व जल भरकर कलश रखें।
- पूजन की थाली में रोली से एक स्वास्तिक बनाते है। इस थाली में ही, फूल, मिठाई, रोली, मौली, सुपारी, पान, चावल, कपूर, धूप, अगरबत्ती, एक दीपक, जल कलश रखे ।
इंदिरा एकादशी व्रत कथा | Indira Ekadashi Vrat Katha
धर्मराज युधिष्ठिर कहने लगे कि हे भगवान ! मैंने भाद्रपद शुक्ल एकादशी अर्थात पार्श्व एकादशी का सविस्तार वर्णन सुना। अब आप कृपा करके मुझे आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी के विषय में भी बतलाइये। इस एकादशी का क्या नाम है तथा इसके व्रत का क्या विधान है? इसका व्रत करने से किस फल की प्राप्ति होती है?
भगवान श्रीकृष्ण कहने लगे कि आश्विन कृष्ण एकादशी का नाम इंदिरा एकादशी है। यह एकादशी पापों को नष्ट करने वाली तथा पितरों को अधोगति से मुक्ति देने वाली होती है। इस एकादशी से सम्बंधित जो कथा प्रचलित है, उसे मैं तुम्हें सुनाता हूँ, श्रद्धा पूर्वक श्रवण करो।
प्राचीनकाल में सतयुग में एक महिष्मती नामक नगरी जिस पर इन्द्रसेन नाम का राजा राज्य करता था। वह राजा बड़ा ही दयालु व प्रतापी था। जिस कारण उसके किसी भी वस्तु की कमी नही थी और उसकी प्रजा भी बहुत सुखी पूर्वक जीवन व्यतीत कर रही थी। एक दिन राजा अपने दरबार में बैठा हुआ था तो उसी समय देवर्षि नारद जी वहाँ आ पहुचे।
नारद जी को देखकर राजा अपने आसन से उठे और उनका भव्य स्वागत करके प्रणाम किया और उन्हे आसन ग्रहण करने को कहा। इसके बाद देवर्षि नारद जी ने राजा इन्द्रसेन से कहा-हे राजन ! आपके राज्य में सभी सुख भोग रहे है। प्रजा को किसी प्रकार का कोई कष्ट या दुख नही है। मैं आपकी इस उदारता को देखकर अति प्रसन्न हूॅ।
नारद जी की बात सुनकर राजा ने कहा ये सब तो आपकी कृपा है। जो मेरे राज्य में हर प्राणी सुख भोग रहा है। इसके बाद राजा इन्द्रसेन ने महर्षि नारद जी से आने का कारण पूछा और कहा की मैं आपकी क्या सेवा करू जिससे आप प्रसन्न हो जाऐ। राजा की बात सुनकर नारद जी बोले हे राजन–मैं एक बार यमलोक गया तो देखा की तुम्हारे पिता भी वहाँ बैठ हुऐ थे।
हे राजा तुम्हारे पिता भी तुम्हारी तरह ही बड़े ज्ञानी, धर्माता थे किन्तु एकादशी का व्रत नही करने के कारण मरने के बाद वो यमलोक में गए। जिस कारण वो बहुत दुखी है। उन्होने तुम्हारे लिए एक संदेश भेजा है। राजा ने पूछा वह क्या संदेश है। देवर्षि कृपा करके मुझे बताऐ।
आपके पिता ने कहा हे देवर्षि ! आप मेरे पुत्र इन्द्रसेन जो इस समय पृथ्वी पर महिष्मती नामक नगरी का राजा है। उसके पास जाना और कहना की मैने पूर्व जन्म में कुछ बुरे कर्म किए है जिससे मुझे यह लोक मिला है। यदि मेरा पुत्र मेरे लिए आश्विन महीन की कृष्णपक्ष में आने वाली इंदिरा एकादशी का व्रत पूरे विधि–विधान व श्रद्धा पूर्वक करेगा। तो मुझे इस लोक से मुक्ति मिल जाएगी।
जिसके बाद मैं स्वर्गलोक में वास करूगा। यह सुनकर राजा ने देवर्षि नारद जी से पूछा की कृपा करके आप मुझे इस इंदिरा एकादशी व्रत का विधान बताऐ जिससे मेरे पिताजी को स्वर्गलोक प्राप्त हो। नारद जी ने कहा इस व्रत के लिए तुम दशमी के दिन प्रात: जल्दी उठकर स्नान आदि से मुक्त होकर किसी नदी पर अपने पितरो के नाम का श्राद्ध करे। और रात्रि को पृथ्वी पर शयन करे।
जिसके बाद एकादशी वाले दिन प्रात:काल जल्दी उठकर सूर्य भगवान को पानी चढ़ाने के एक लौटे में जल, धूप, दीप, पुष्प आदि डालकर भगवान विष्णु जी को चढाऐ। और इस व्रत का संकल्प ले “मैं आज पूरे दिन व्रत का निराहार करूगा और सभी भोगो का त्याग करूगा।”
इंदिरा एकादशी व्रत की सभी विधि बतारक नारद जी वहाँ से चले गए और कुछ दिनो के बाद इंदिरा एकादशी आई। राजा ने इस एकादशी का व्रत किया और पूरे विधि–विधानो से श्रद्धा भाव से पूजा–अर्चना करी। और अपने पिता के नाम का श्राद्ध किया। तथा दूसरे दिन ब्राह्मणो का भोजन करवाकर दान–दक्षिण देकर उन्हे विदा किया। उसके बाद स्वयं ने भोजन किया।
राजा इन्द्रसेन के इंदिरा एकादशी व्रत के प्रभाव से उसने पिता को यमलोक से मुक्ति मिल गई और वो सदा के लिए स्वर्ग लोक को चले गए।
हे युधिष्ठिर ! यह इंदिरा एकादशी के व्रत का माहात्म्य मैंने तुमसे कहा। इसके पढ़ने और सुनने से मनुष्य सब पापों से छूट जाते हैं और सब प्रकार के भोगों को भोगकर बैकुंठ को प्राप्त होते हैं।