कालरात्रि माता व्रत कथा | Kaalratri Mata Vrat Katha

नवदुर्गा और नवरात्रि

नवदुर्गा | सातवें दिन

नवदुर्गा सनातन धर्म में माता दुर्गा अथवा माता पार्वती के नौ रूपों को एक साथ कहा जाता है।
इन नवों दुर्गा को पापों की विनाशिनी कहा जाता है, हर देवी के अलग अलग वाहन हैं, अस्त्र शस्त्र हैं परन्तु यह सब एक हैं।

दुर्गा सप्तशती ग्रन्थ के अन्तर्गत देवी कवच स्तोत्र में निम्नाङ्कित श्लोक में नवदुर्गा के नाम क्रमश: दिये गए हैं–

प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी
तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम् ।।
पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।
सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम् ।।
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा: प्रकीर्तिता:।
उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना ।।

देवी दुर्गा के नौ रूप होते हैं जिन्हें नवदुर्गा कहा जाता है।

प्रथम दिन: शैलपुत्री
दूसरा दिन: ब्रह्मचारिणी
तीसरा दिन: चंद्रघंटा
चौथा दिन: कुष्मांडा
पाँचवाँ दिन: स्कंदमाता
छठे दिन: कात्यायनी
सातवें दिन: कालरात्रि
आठवें दिन: महागौरी
नौवें दिन: मां सिद्धिदात्री

॥ कालरात्रि माता ॥

माँ दुर्गा की सातवीं शक्ति कालरात्रि के नाम से जानी जाती हैं। दुर्गा पूजा के सातवें दिन माँ कालरात्रि की उपासना का विधान है।
इस दिन साधक का मन ‘सहस्रार’ चक्र में स्थित रहता है। इसके लिए ब्रह्मांड की समस्त सिद्धियों का द्वार खुलने लगता है।

देवी कालात्रि को व्यापक रूप से माता देवी – काली, महाकाली, भद्रकाली, भैरवी, मृित्यू, रुद्रानी, चामुंडा, चंडी और दुर्गा के कई विनाशकारी रूपों में से एक माना जाता है। रौद्री और धुमोरना देवी कालात्री के अन्य कम प्रसिद्ध नामों में हैं |

॥ शोभा-स्वरूप ॥

इनके शरीर का रंग घने अंधकार की तरह एकदम काला है। सिर के बाल बिखरे हुए हैं। गले में विद्युत की तरह चमकने वाली माला है। इनके तीन नेत्र हैं। ये तीनों नेत्र ब्रह्मांड के सदृश गोल हैं। इनसे विद्युत के समान चमकीली किरणें निःसृत होती रहती हैं।
माँ की नासिका के श्वास-प्रश्वास से अग्नि की भयंकर ज्वालाएँ निकलती रहती हैं।

इनका वाहन गर्दभ (गदहा) है। ये ऊपर उठे हुए दाहिने हाथ की वरमुद्रा से सभी को वर प्रदान करती हैं। दाहिनी तरफ का नीचे वाला हाथ अभयमुद्रा में है। बाईं तरफ के ऊपर वाले हाथ में लोहे का काँटा तथा नीचे वाले हाथ में खड्ग (कटार) है।

॥ पूजा विधि ॥

  • सर्वप्रथम नवदुर्गा पूजन हेतु घटस्थापना करें।
  • अब देवी माँ का आवाहन करें।
  • देवी माँ को पुष्प, चन्दन, अक्षत आदि अर्पित करें।
  • तत्पश्चात कालरात्रि माता की कथा पढ़ें।
  • अब देवी कालरात्रि माता की आरती करें।
  • अंत में सपरिवार माँ का आशीर्वाद ग्रहण करें।

कालरात्रि माता व्रत कथा

पौराणिक कथा के अनुसार रक्तबीज जब सभी देवताओं को पराजित कर उनके राज्य को छीन लिया, तब सभी देवता दानों की शिकायत लेकर महादेव जी के पास गए।
भगवान शिव शंकर ने अपने पास आए हुए सभी देवतागण से उनके आने का कारण पूछा। तब देवता ने रक्तबीज के किए गए अत्याचारों को त्रिलोकीनाथ से कह सुनाया।

यह सुनकर भगवान शिव शंकर ने माता पार्वती से अनुरोध किया कि हे देवी तुम तुरंत उस राक्षस का संहार करके देवताओं को उनके राजभोग वापस दिलाओं।
तब देवी पार्वती ने वहां साधना किया। माता के साधना की तेज से कालरात्रि उत्पन्न हुई।

जब मां दुर्गा रक्तबीज का वध कर रहे थी, उस वक्त रक्तबीज के शरीर से जितना खून धरती पर गिरता था, उससे वैसे ही सैकड़ों दानव उत्पन्न हो जाते थे।
तब मां दुर्गा ने कालरात्रि से उन राक्षसों को खा जाने का निवेदन किया।

तब मां कालिका ने रक्तबीज के रक्त को जमीन पर गिरने से पहले ही उसे अपने मुंह में लेना शुरू कर दिया।
इस तरह से मां कालिका रणभूमि में असुरों का गला काटते हुए गले में मुंड की माला पहनने लगी। इस तरह से रक्तबीज युद्ध में मारा गया।

मां दुर्गे का यह स्वरूप कालरात्रि कहलाता है।

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