करवा चौथ व्रत कथा | Karwa Chauth Vrat Katha

Oct 26, 2023 | चौथ माता व्रत कथाएँ

॥ व्रत का महत्त्व ॥

इस दिन गणेश जी तथा चौथ माता की पूजा की जाती है। भगवान को भोग लगाया जाता है। शाम के समय चाँद निकलने पर चाँद को अर्ध्य दिया जाता है। उसके बाद व्रत खोल जाता है।

करवा चौथ का व्रत और पूजन कार्तिक महीने की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को किया जाता है। इसे करक चतुर्थी भी कहते है। करवा या करक मिट्टी के छोटे घड़े को कहते है जिसके द्वारा चाँद को अर्ध्य दिया जाता है।
यह चौथ शरद पूर्णिमा के बाद आने वाली चौथ होती है। करवा चौथ महज एक व्रत नहीं है, बल्कि सूत्र है, विश्चास का, कि पति पत्नी हमेशा साथ रहेंगे, आधार है जीने का कि उनका साथ कभी ना छूटे।

॥ सरगी ॥

इस दिन सुबह सूर्योदय से पहले उठकर नाश्ता करते है जिसे सरगी कहते है। सरगी में सूत फीणी जरूर शामिल होती है। इसे दूध के साथ लेते है। इसे खाने से पानी नहीं पीने के कारण होने वाली परेशानी कम हो जाती है।
कुछ जगह सरगी में सात, नौ या ग्यारह प्रकार की चीजें लेते है। सरगी में खाने में बादाम, काजू, किशमिश, अंजीर, आदि मेवे तथा फल, पराठे, मठरी, दूध व छेने से बनी मिठाइयाँ आदि शामिल किये जाते है।
रिवाज के अनुसार सरगी बहु के लिए सासु माँ द्वारा भेजी जाती है। सासु माँ घर पर हो तो बहु के लिए वे ही सरगी तैयार करती है।
कुछ लोग करवा में चूड़ियां, काजल, बिंदी, सोलह श्रृंगार के सामान, मिठाई, कपड़े आदि रखते है तथा एक दूसरे के घर जाकर उपहार के तौर पर देते है।

॥ पूजन सामग्री ॥

  • चौकी, रोली, मौली, मेहंदी, अक्षत ( साबुत चावल )
  • दीपक, शुद्ध देशी घी, रुई, धूपबत्ती, फूल, अष्टगंध
  • अगरबत्ती, कपूर, जल का कलश।
  • प्रसाद के लिए गुड़, फल, दूध, मिठाई, नारियल, पंचामृत, सूखे मेवे, शक्कर, पान में से जो भी हो लें।
  • दक्षिणा।

॥ पूजन का मंडप ॥

पूजन को शुरु करने से पहले मंडप तैयार कर लें।

  • सबसे पहले पूजा के स्थान को साफ कर लें।
  • अब पूर्व या उत्तर की ओर मुख कर बैठे।
  • पूजा वाले स्थान को साफ करके चौकी स्थापित करनी चाहिए।
  • चौकी पर शुभ चिह्न स्वस्तिक बनाएं।
  • चौकी पर साफ लाल रंग का कपड़ा बिछाएं।
  • चौकी पर थोड़े चावल पर एक लोटा पानी से भरकर रखें। लोटे पर स्वस्तिक बना दें और कुमकुम से तेरह बिंदी लगा दें।
  • फिर गेंहू रख कर उस पर चौथ माता रखें। यदि चौथ माता बनवाई हुए नहीं हो तो चाँदी की कोई वस्तु जैसे अंगूठी या सिक्का आदि को चौथ माता के रूप में रखकर पूजा की जा सकती है।
  • चौकी पर मां पार्वती व विनायक जी की स्थापना कर बायी ओर दीपक रखें।
  • एक पूजा की थाली तैयार करें। पूजन की थाली में रोली से एक स्वास्तिक बनाते है। इस थाली में ही, फूल, मिठाई, रोली, मौली, सुपारी, पान, चावल, कपूर, धूप, अगरबत्ती, एक दीपक, जल कलश रखे।
  • इस व्रत में शिव-पार्वती, कार्तिकेय, गणेशजी और चाँद का पूजन किया जाता है। पूजा के लिए पाना या चित्र बाजार में मिल जाता है।
  • एक मिट्टी के करवे पर मौली बांधकर रोली से एक स्वस्तिक बनाएँ । उस पर रोली से तेरह बिंदी लगाकर चाँद को अर्ध्य देने के लिए जल भर दें ।

॥ पूजा विधि ॥

  1. पहले गणेश जी की पूजा करें।
  2. जल का छींटा देकर स्नान कराएं।
  3. फिर रोली का टीका लगाकर अक्षत अर्पित करें, लच्छा चढ़ायें।
  4. पुष्प या फूल माला अर्पित करें। दक्षिणा के रूप में कुछ पैसे चढ़ाएं।
  5. गणेश जी को भोग लगाये। श्रद्धा पूर्वक नमन करें।
  6. इसी प्रकार चौथ माता की पूजा करें। नमन करें।
  7. जल का छींटा देकर स्नान कराएं।
  8. फिर रोली का टीका लगाकर, मेहंदी व अक्षत अर्पित करें, लच्छा चढ़ायें।
  9. पुष्प या फूल माला अर्पित करें। दक्षिणा के रूप में कुछ पैसे चढ़ाएं।
  10. फिर हाथ में आखे (साबुत गेंहू ) लेकर चौथ की कहानी सुने।
  11. फिर गणेशजी की कहानी सुने ।
  12. चौथ माता का गीत गाएँ।
  13. गणेश जी और अपने इष्ट देव की आरती गाएँ।
  14. इस प्रकार पूजा संपन्न होती है। अब थोड़ा प्रसाद खाएं।
  15. कथा सुनते समय हाथ में लिए गए आखे से तथा लोटे के पानी से चाँद उगे तब अर्घ्य देना चाहिए।
  16. प्रसाद पर रूपये रख कर बायना निकाल कर सासू माँ को दें। पैर छूकर उनका आशीर्वाद लें। उनकी अनुपस्थिति में बायना जेठानी या ननद को दिया जा सकता है। इसके बाद पहले प्रसादऔर फिर खाना खाएँ।
  17. दूसरे दिन गणेश जी, चौथ माता या चाँदी की वस्तु जो भी आपने पूजा में रखी थी, वह संभालकर अपने पास रख लें तथा बाकि सभी सामान मंदिर में या ब्राह्मण को दे दें।

॥ करवा चौथ व्रत कथा ॥

यहाँ भारत की सभी प्रसिद्व करवा चौथ कथाओ को विस्तार पूर्वक लिखा गया है। आप अपने स्थान में प्रसिद्व किसी भी कथा को पढ़ सकते है। चौथ के दिन चौथ की कथा सुनने के साथ विनायक जी की कहानी भी कही और सुनी जाती है।

॥ करवा चौथ व्रत कथा | सात भाई और बहन -1 ॥

एक गाँव में एक साहुकार के सात बेटे और एक बेटी थी। सातों भाई और बहन में बहुत प्यार था। करवा चौथ के दिन सेठानी ने सातों बहुओं और बेटी के साथ करवा चौथ का व्रत रखा।
सातों भाई हमेशा अपनी बहन के साथ ही भोजन करते थे। उस दिन भी भाईयो ने बहन को खाने के लिए बोला तो बहन बोली मेरा आज करवा चौथ का व्रत है इसीलिए चाँद उगेगा तब ही खाना खाऊँगी।

भाईयों ने सोचा कि बहन भूखी रहेगी इसलिए एक भाई ने दिया लिया और एक भाई चलनी लेकर पहाड़ी पर चढ़ गया। दिया जलाकर चलनी से ढक कर कहा कि बहन चाँद उग गया है अर्घ्य देकर खाना खा लो।
बहन ने भाभीयों से कहा कि भाभी चाँद देख लो। भाभी बोली कि ये चाँद तो आपके लिए उगा हैं आप ही देख लो हमारा चाँद तो देर रात को उगेगा। बहन भाईयों के साथ खाना खाने बैठ गयी।

भोजन का पहला कौर खाने लगी तो उसमें बाल आ गया, दूसरा कौर खाने लगी तो उसमें कंकर आ गया तीसरा कौर खाने लगी तो ससुराल से संदेशा आ गया की-बेटा बहुत बीमार है, बहु को जल्दी भेजो।

माँ ने जब लड़की को विदा किया। तो कहा कि रास्ते में जो भी मिले। उसके पांव लगाती जाना और जो कोई सुहाग की आशीश दे तो पल्ले में गांठ लगाकर उसे कुछ रूपए देना।
बहन जब भाइयों से विदा हुई तो रास्ते में जो भी मिला उसने यह आशीश दी कि तुम सात भाइयों की बहन हो तुम्हारे भाई सुखी रहें और तुम उनका सुख देखो। सुहाग का आशीश किसी ने भी नहीं दी।

जब वह ससुराल पहुँची तो दरवाजे पर उसकी छोटी ननद खड़ी थी। वह उसके पांव लगी तो उसने कहा कि सदा सुहागन रहो, सदा खुश रहो तो उसने यह सुनकर पल्ले में गांठ बांध और ननद को सोने का सिक्का दिया।

घर के अंदर प्रवेश किया तो कमरे में पति को बीमार अवस्था में पाया। तो वह उसके पास जाकर उसकी सेवा करने के लिए बैठ गई।
इस प्रकार से समय बीतते-बीतते, कुछ दिन बाद माघ महीने की तिल चौथ आई तो उसने माता से प्रार्थना की और कहा-माता, मुझे मेरी गलती का पश्चाताप है। मुझे माफ़ कर दो। हे चौथ माता ! मेरे दुःखो का अंत कर दो।

माता ने कहा, ये मेरे हाथ में नहीं वैशाखी चौथ माता तुम्हारी मदद करेगी।

वैशाखी चौथ पर उसने फिर प्रार्थना की तो माँ ने कहा-भादुड़ी चौथ माता तुम्हारी मदद करेगी ।
भादुड़ी चौथ माता से प्रार्थना करने पर उन्होंने कहा, सबसे बड़ी कार्तिक चौथ माता तुम्हारी मदद करेगी। उन्हें प्रसन्न करने पर ही तुम्हे जो चाहिए वह मिलेगा

कार्तिक महीने में चौथ माता स्वर्ग से उतरी तो उसने चौथ माता के पैर पकड़ लिए और विलाप करने लगी, हे चौथ माता ! मैं नासमझ थी इसलिए मुझसे भूल हुई।
मुझे इतना बड़ा दंड मत दो। आप जग की माता है। सबकी इच्छा पूरी करने वाली है। मेरी बिगड़ी बनाओ माँ, मेरी खुशिया लोटा दो माँ। मेरे पति को स्वस्थ कर दो ।

माता ने खुश होकर उसे अमर सुहाग का आशीर्वाद दे दिया, उसका पति उठा और बोला मुझे तो बहुत नींद आयी। तब उसने अपने पति को बताया कि वह बारह महीने से उसकी सेवा कर रही थी और चौथ माता ने उन्हें स्वस्थ किया है ।

पति ने कहा-हमें चौथ माता का उद्यापन करना चाहिए। उसने चौथ माता की कहानी सुनी और उद्यापन कर चूरमा बनाया। दोनों खा पीकर चौपड़ खेलने लगे।

नौकरानी खाना लेकर आई तो यह देखकर तुरंत जाकर उसकी सासु को बताया। सासु ने आकर देखा तो बहुत खुश हुई। बहु से पूछा यह सब कैसे हुआ। बहु ने सास के पैर छुए और बताया की यह चौथ माता का आशीर्वाद है।
सभी लोग चौथ माता की कृपा देखकर बहुत खुश हुए। सभी स्त्रियों ने पति की दीर्घायु के लिए चौथ माता का व्रत करने का निश्चय किया।

हे चौथ माता ! जैसा साहूकार की बेटी का सुहाग अमर किया वैसा सभी का करना। कथा कहने सुनने वालों को सभी को अमर सुहाग देना।
बोलो, मंगल करणी दुःख हरणी चौथ माता की…जय !!!

॥ करवा चौथ व्रत कथा | पतिव्रता करवा धोबिन की कथा -2 ॥

पुराणों के अनुसार करवा नाम की एक पतिव्रता धोबिन अपने पति के साथ तुंगभद्रा नदी के किनारे स्थित गांव में रहती थी। उसका पति बूढ़ा और निर्बल था।
एक दिन जब वह नदी के किनारे कपड़े धो रहा था तभी अचानक एक मगरमच्छ वहां आया, और धोबी के पैर अपने दांतों में दबाकर यमलोक की ओर ले जाने लगा।

वृद्ध पति यह देख घबराया और जब उससे कुछ कहते नहीं बना तो वह करवा ! करवा ! कहकर अपनी पत्नी को पुकारने लगा।
पति की पुकार सुनकर धोबिन करवा वहां पहुंची, तो मगरमच्छ उसके पति को यमलोक पहुंचाने ही वाला था। तब करवा ने मगरमच्छ को कच्चे धागे से बांध दिया और मगरमच्छ को लेकर यमराज के द्वार पहुंची।

उसने यमराज से अपने पति की रक्षा करने की गुहार लगाई और बोली- हे भगवन् ! मगरमच्छ ने मेरे पति के पैर पकड़ लिए है। आप मगरमच्छ को इस अपराध के दंड-स्वरूप नरक भेज दें।
करवा की पुकार सुन यमराज ने कहा, अभी मगरमच्छ की आयु शेष है, मैं उसे अभी यमलोक नहीं भेज सकता।

इस पर करवा ने कहा, अगर आपने मेरे पति को बचाने में मेरी सहायता नहीं कि तो मैं आपको श्राप दूंगी और नष्ट कर दूंगी।
करवा का साहस देख यमराज भी डर गए और मगरमच्छ को यमपुरी भेज दिया। साथ ही करवा के पति को दीर्घायु होने का वरदान दिया।

तब से कार्तिक कृष्ण की चतुर्थी को करवा चौथ व्रत का प्रचलन में आया। जिसे इस आधुनिक युग में भी महिलाएं अपने पूरी भक्ति भाव के साथ करती है और भगवान से अपनी पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं।
हे चौथ माता ! जैसे आप ने करवा के सुहाग को अमर किया वैसा सभी का करना। कथा कहने सुनने वालों को सभी को अमर सुहाग देना।

बोलो, मंगल करणी दुःख हरणी चौथ माता की…जय !!!

॥ करवा चौथ व्रत कथा | राजकुमारी वीरवती -3 ॥

बहुत समय पहले की बात हैं वीरवती नाम की एक राजकुमारी थी। जब वह बड़ी हुई तो उसकी शादी एक राजा से हुई।
शादी के बाद वह करवा चौथ का व्रत करने के लिए माँ के घर आई। वीरवती ने भोर होने के साथ ही करवा चौथ का व्रत शुरू कर दिया।

वीरवती बहुत ही कोमल व नाजुक थी। वह व्रत की कठोरता सहन नहीं कर सकी। शाम होते होते उसे बहुत कमजोरी महसूस होने लगी और वह बेहोश सी हो गई।
उसके सात भाई थे और उसका बहुत ध्यान रखते थे। उन्होंने उसका व्रत तुड़वा देना ठीक समझा। उन्होंने पहाड़ी पर आग लगाई और उसे चाँद निकलना बता कर वीरवती का व्रत तुड़वाकर भोजन करवा दिया ।

जैसे ही वीरवती ने खाना खाया उसे अपने पति की मृत्यु का समाचार मिला। उसे बड़ा दुःख हुआ और वह पति के घर जाने के लिए रवाना हुई ।
रास्ते में उसे शिवजी और माता पार्वती मिले। माता ने उसे बताया कि उसने झूठा चाँद देखकर चौथ का व्रत तोड़ा है। इसी वजह से उसके पति की मृत्यु हुई है।

वीरवती अपनी गलती के लिए क्षमा मांगने लगी। तब माता ने वरदान दिया कि उसका पति जीवित तो हो जायेगा लेकिन पूरी तरह स्वस्थ नहीं होगा।
वीरवती जब अपने महल में पहुंची तो उसने देखा राजा बेहोश था और शरीर में बहुत सारी सुइयां चुभी हुई थी। वह राजा की सेवा में लग गई।

सेवा करते हुए रोज एक एक करके सुई निकालती गई। एक वर्ष बीत गया। अब करवा चौथ के दिन बेहोश राजा के शरीर में सिर्फ एक सुई बची थी।
रानी वीरवती ने करवा चौथ का कड़ा व्रत रखा। वह अपनी पसंद का करवा लेने बाजार गई।

पीछे से एक दासी ने राजा के शरीर से आखिरी सुई निकाल दी। राजा को होश आया तो उसने दासी को ही रानी समझ लिया। जब रानी वीरवती वापस आई तो उसे दासी बना दिया गया।

तब भी रानी ने चौथ के व्रत का पालन पूरे विश्वास से किया।
वीरवती के श्रद्धा भाव से किये व्रत से चौथ माता प्रसन हुई और स्वप्न में राजा को सारी कहानी सुना दी। राजा समझ गया और उसे बहुत पछतावा हुआ। उसने वीरवती को वापस रानी बना लिया और उसे वही शाही मान सम्मान लौटाया।

माता पार्वती के आशीर्वाद से और रानी के विश्वास और भक्ति पूर्ण निष्ठा के कारण उसे अपना पति और मान सम्मान वापस मिला।

हे चौथ माता ! जैसे आप ने वीरवती को पति और मान सम्मान वापिस दिया वैसा सभी को देना। कथा कहने सुनने वालों को सभी को अमर सुहाग देना।

बोलो, मंगल करणी दुःख हरणी चौथ माता की…जय !!!

॥ गणेश जी की कथा ॥

एक बार गणेश जी एक छोटे बालक के रूप में चिमटी में चावल और चमचे में दूध लेकर निकले। वो हर किसी से कह रहे थे कि कोई मेरी खीर बना दो, कोई मेरी खीर बना दो।
कोई भी उनपर ध्यान नहीं दे रहा था बल्कि लोग उन पर हँस रहे थे। वे लगातार एक गांव के बाद, दूसरे गांव इसी तरह चक्कर लगाते हुए पुकारते रहे, पर कोई खीर बनाने के लिए तैयार नहीं था। सुबह से शाम हो गई गणेश जी लगातार घूमते रहे।

शाम के वक्त एक बुढ़िया अपनी झोपड़ी के बाहर बैठी हुई थी, तभी गणेश जी वहां से पुकारते हुए निकले कि “कोई मेरी खीर बना दे, कोई मेरी खीर बना दे”, बुढ़िया बहुत कोमल ह्रदय वाली स्त्री थी।
उसने कहा, बेटा, मैं तेरी खीर बना देती हूं। वह छोटा सा बर्तन चढ़ाने लगी तब गणेश जी ने कहा कि दादी मां छोटा सा बर्तन मत चढ़ाओ तुम्हारे घर में जो सबसे बड़ा बर्तन हो वही चढ़ा दो।
बुढ़िया ने वही चढ़ा दिया। वह देखती रह गई कि वह जो थोड़े से चावल उस बड़े बर्तन में डाली थी वह तो पूरा भर गया है। गणेश जी ने कहा, दादी मां मैं स्नान करके आता हूं तब तक तुम खीर बना लो। मैं वापस आकर खाऊँगा।

खीर तैयार हो गई तो बुढ़िया के पोते पोती खीर खाने के लिए रोने लगे बुढ़िया ने कहा गणेश जी तेरे भोग लगना कहकर चूल्हे में थोड़ी सी खीर डाली और कटोरी भर भरकर बच्चों को दे दी।
अभी भी गणेश जी नहीं आए थे। बुढ़िया को भी भूख लग रही थी वह भी एक कटोरा खीर का भरकर के कीवाड़ के पीछे बैठकर एक बार फिर कहा कि गणेश जी आपके भोग लगे कहकर खाना शुरु कर दिया तभी गणेश जी आ गए।

बुढ़िया ने कहा, आजा रे बेटा खीर खा ले मैं तो तेरी ही राह देख रही थी, गणेश जी ने कहा – दादी मां मैंने तो खीर पहले ही खा ली।
बुढ़िया ने कहा, कब खाई ? गणेश जी ने कहा, जब तेरे पोते पोती ने खाई तब खाई थी और अब तूने खाई तो मेरा पेट पूरा ही भर गया।

बुढ़िया ने पूछा, मैं इतनी सारी खीर का क्या करूंगी ? इस पर गणपति जी बोले, सारे गांव को दावत दे दो।
बुढ़िया ने बड़े प्यार से, मन लगाकर खीर बनाई थी, खीर की भीनी-भीनी, मीठी-मीठी खुशबू चारों दिशाओं में फैल गई थी।
वह हर घर में जाकर खीर खाने का न्योता देने लगी। लोग उस पर हँस रहे थे। बुढ़िया के घर में खाने को दाना नहीं और यह सारे गांव को खीर खाने की दावत दे रही है।
लोगों को कुतूहल हुआ और खीर की खुशबू से लोग खिंचे चले आए। सारा गाँव बुढ़िया के घर में इकट्ठा हो गया।

बुढ़िया ने पूरी नगरी जीमा दी फिर भी बर्तन पूरा ही भरा था, राजा को पता लगा तो बुढ़िया को बुलाया और कहा क्यों री बुढ़िया ऐसा बर्तन तेरे घर पर अच्छा लगे या हमारे घर पर अच्छा लगे ।
बुढ़िया ने कहा, राजा जी आप ले लो। राजा जी ने खीर का बर्तन महल में मंगा लिया, लाते ही खीर में कीड़े, मकोड़े, बिच्छू हो गए और दुर्गंध आने लगी।

यह देखकर राजा ने बुढ़िया से कहा, बुढ़िया बर्तन वापस ले जा, जा तुझे हमने दिया।
बुढ़िया ने कहा, राजा जी आप देते तो पहले ही कभी दे देते यह बर्तन तो मुझे मेरे गणेश जी ने दिया है। बुढ़िया ने बर्तन वापस लिया, लेते ही सुगंधित की हो गई ।
घर आकर बुढ़िया ने गणेश जी से कहा, बची हुई खीर का क्या करें ?
गणेश जी ने कहा, झोपड़ी के कोने में खड़ा खोदकर गाड़ दो। उसी जगह सुबह उठकर वापस खोदेगी तो धन के दो चरे मिलेंगे।

ऐसा कहकर गणेश जी अंतर्ध्यान हो गए जाते समय झोपड़ी के लात मारते हुए गये तो झोपड़ी के स्थान पर महल हो गया। सुबह बुढ़िया ने फावड़ा लेकर घर को खोद ने लगी तो टन टन करते दो धन के चरे निकल आए।

वह बहुत खुश थी। उसकी सारी दरिद्रता दूर हो गई और वह आराम से रहने लगी। उसने गणपति जी का एक भव्य मंदिर बनवाया और साथ में एक बड़ा सा तालाब भी खुदवाया।
इस तरह उसका नाम दूर-दूर तक प्रसिद्ध हो गया। उस जगह वार्षिक मेले लगने लगे। लोग गणेश जी की कृपा प्राप्त करने के लिए, उस स्थान पर पूजा करने और मान्यताएं मानने के लिए आने लगे।
गणेश जी सब की मनोकामनाएं पूरी करने लगे।

गणेश जी जैसा आपने बुढ़िया को दिया वैसा सबको देना विनायक जी की कहानी कहने वाले और आसपास के सुनने वाले सब को देना।

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