मंगला गौरी व्रत कथा | Mangla Gauri Vrat Katha

Oct 29, 2023 | व्रत कथाएँ

॥ व्रत का महत्त्व ॥

मंगला गौरी व्रत सावन महीने के मंगलवार को किया जाता है।
यह व्रत सुहागिन महिलाएं अखंड सौभाग्यवती की कामना के लिए करती हैं। मान्यता है कि मंगला गौरी व्रत में विधि पूर्वक करने से अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद प्राप्त होता है और दांपत्य जीवन में अथाह प्रेम बना रहता है।
संतान प्राप्ति की कामना रखने वाली स्त्रियों के लिए भी यह व्रत बहुत शुभफलदायी रहता है।

इस व्रत की शुरुआत सावन महीने के शुक्ल पक्ष के पहले मंगलवार से की जाती है।
इसके बाद चार या पांच साल तक लगातार सावन महीने के प्रत्येक मंगलवार को व्रत किया जाता है। सावन महीने में ही व्रत का उद्यापन भी किया जाता है।
सोलह मंगलवार के बाद वें सत्रह मंगलवार को या बीस मंगलवार के बाद इक्कीस वें मंगलवार को उद्यापन किया जा सकता है। उद्यापन सावन महीने के शुक्ल पक्ष में किया जाता है।

॥ पूजा विधि ॥

  • नित्य कर्मों से निवृत होकर स्वच्छ और सुन्दर वस्त्र पहनें।
  • एक साफ चौकी पर लाल और सफ़ेद कपड़ा इस प्रकार लगायें की आधे चौकी पर सफ़ेद और आधे पर लाल कपड़ा हो।
  • अब सफेद कपड़े पर चावल से नौ छोटी ढ़ेरी बना दें। ये नवग्रह होते हैं।
  • लाल कपड़े पर गेहूं से सोलह ढ़ेरी बना दें। ये सोडष मातृका होते हैं। एक जगह थोड़े चावल रखकर वहां गणेश जी को बिठायें।
  • चौकी पर एक अन्य जगह गेहूं की एक ढ़ेरी बना कर उस पर जल कलश रखें। जल कलश में आम की या अशोक की पांच पत्तियां एक सुपारी व दक्षिणा के लिए सिक्का डालें।
  • कलश पर ढक्कन लगाकर इस पर थोड़े चावल रखें। थोड़ी सी दूब लाल कपड़े में बांध कर इस पर रखें।
  • आटे से बना चार मुख वाला दीपक बत्ती और घी लगाकर जलायें और सोलह अगरबत्ती जलायें। अथवा चौकी पर चौमुखी दीपक व उसमे, सोलह तार की बत्ती लगाकर प्रज्वलित करे।
  • पूजा का संकल्प लें।
  • सबसे पहले गणेश जी का पूजन षोडशोपचार विधि से करें।
  • पंचामृत, जनेऊ, चन्दन, रोली, मोली, सिन्दूर, सुपारी, लौंग, पान, चावल, पुष्प, इलायची, मिष्ठान, बिलपत्र, फल, नैवेद्य, दक्षिणा आदि अर्पित करें। आरती करें।
  • अब कलश की पूजा करें। कलश पर सिन्दूर और बीलपत्र ना चढ़ायें।
  • नवग्रह का पूजन षोडशोपचार विधि से करें।
  • पंचामृत, जनेऊ, चन्दन, रोली, मोली, सिन्दूर, सुपारी, लौंग, पान, चावल, पुष्प, इलायची, मिष्ठान, बिलपत्र, फल, नैवेद्य, दक्षिणा आदि अर्पित करें। आरती करें।
  • और षोडश मातृका का पूजन षोडशोपचार विधि से करें।
  • पंचामृत, चन्दन, रोली, मोली, सिन्दूर, सुपारी, लौंग, पान, चावल, पुष्प, इलायची, मिष्ठान, बिलपत्र, फल, नैवेद्य, दक्षिणा आदि अर्पित करें। आरती करें। षोडश मातृका के पूजन में जनेऊ ना चढ़ायें, हल्दी, मेहंदी, सिन्दूर चढ़ायें।
  • अब माँ मंगला गौरी के पूजन की तैयारी करें।
  • एक थाली में चकला रखें। चकले पर मिट्टी से मंगला गौरी बनाकर रखें।
  • माँ मंगला गौरी को जल , दूध , दही , घी , शहद , चीनी , पंचामृत से स्नान करायें। माता को लाल वस्त्र, श्रृंगार और आभूषण पहनायें। रोली , अक्षत ,चन्दन , सिन्दूर , हल्दी , मेहंदी , काजल अर्पित करें। सोलह पुष्प अर्पित करें।
  • अब माला , आटे के लड़डू , फल , मेवा , धान , जीरा , धनिया , पान , सुपारी , लौंग , इलायची , चूड़ियाँ आदि सभी चीजें सोलह सोलह चढ़ायें।
  • एक सुहाग पिटारी चढ़ायें जिसमे लाल वस्त्र, श्रृंगार का सामान तथा दक्षिणा रखें।
  • इसके बाद मंगला गौरी व्रत की कथा सुनें।
  • इसके बाद सोलह तार की बत्ती वाला दीपक और कपूर जला कर आरती करें। परिक्रमा लगायें।
  • सोलह आटे के लड़डू का बायना सासु माँ को देकर पैर छुएँ और आशीर्वाद लें। फिर खाना खा लें।
  • व्रत के दूसरे दिन बुधवार को देवी मंगला गौरी की प्रतिमा को नदी अथवा पोखर में विसर्जित किया जाता है।
  • अंत में माँ गौरी के सामने हाथ जोड़कर अपने समस्त अपराधों के लिए एवं पूजा में हुई त्रुटियों के लिए क्षमा अवश्य मांगें। इस व्रत एवं पूजा के अनुष्ठा को परिवार की खुशी के लिए लगातार 5 वर्षों तक किया जाता है।

॥ मंगला गौरी व्रत की कथा ॥

॥ महागौरी का मंत्र॥

मंगला गौरी की पूजा के समय महागौरी मंत्र का उच्चारण जरूर करें ।

मंत्र:- सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सवार्थ साधिके। शरण्येत्र्यंबके गौरी नारायणी नमोस्तुते॥

पौराणिक कथा के अनुसार, एक समय की बात है एक शहर में धरमपाल नाम का एक व्यापारी रहता था।
उसकी पत्नी बहुत खूबसूरत थी और उसके पास धन संपत्ति की भी कोई कमी नहीं थी लेकिन संतान न होने के कारण वे दोनों बहुत ही दु:खी रहा करते थे।

कुछ समय के बाद ईश्वर की कृपा से उनको एक पुत्र की प्राप्ति हुई परंतु वह अल्पायु था। उसे श्राप मिला था कि सोलह वर्ष की आयु में सर्प के काटने से उसकी मृत्यु हो जाएगी।
संयोग से उसकी शादी सोलह वर्ष की आयु पूर्ण होने से पहले ही हो गई। जिस कन्या से उसका विवाह हुआ था उस कन्या की माता मंगला गौरी व्रत किया करती थी।

मां गौरी के इस व्रत की महिमा के प्रभाव से चलते उस महिला की कन्या को आशीर्वाद प्राप्त था कि वह कभी विधवा नहीं हो सकती।
कहा जाता है कि अपनी माता के इसी व्रत के प्रताप से धरमपाल की बहु को अखंड सौभाग्य की प्राप्ति हुई और उसके पति को लंबी आयु प्राप्त हुई।

तभी से ही मंगला गौरी व्रत की शुरुआत मानी गई है। मान्यता है कि यह व्रत करने से महिलाओं को अखंड सौभाग्य की प्राप्ति तो होती ही है साथ ही दांपत्य जीवन में सदैव ही प्रेम भी बना रहता है।
इस कारण से सभी नवविवाहित महिलाएं इस पूजा को करती हैं तथा गौरी व्रत का पालन करती हैं तथा अपने लिए एक लंबी, सुखी तथा स्थायी वैवाहिक जीवन की कामना करती हैं।

जो महिला इस मंगला गौरी व्रत का पालन नहीं कर सकतीं, उस महिला को श्री मंगला गौरी पूजा को तो कम से कम करना ही चाहिए।

॥ उद्यापन विधि ॥

सोलह या बीस मंगलवार के व्रत करने के बाद मंगला गौरी व्रत का उद्यापन मंगलवार के दिन किया जाता है। उद्यापन के दिन उपवास रखा जाता है। गठजोड़े से पूजा पर बैठना चाहिए।

  • सबसे पहले मंगला गौरी व्रत का उद्यापन करने वाली महिला या कन्या को सुबह जल्दी उठना चाहिए उसके बाद नहाकर लाल वस्त्र धारण करने चाहिए।
  • इसके बाद पुराहित और सोलह सुहागन स्त्रियों को भोजन के लिए आमंत्रित करें।
  • अगर कोई सुहागन महिला मंगला गौरी व्रत का उद्यापन कर रही है तो उसे अपने पति के साथ हवन करना चाहिए।
  • इस व्रत की उद्यापन विधि अगर कोई कन्या पूरी कर रही है तो उसे अपने माता- पिता के साथ हवन करना चाहिए।
  • इसके बाद मां गौरी का मंगला गौरी व्रत की तरह ही विधिवत पूजन करें और मां को लाल वस्त्र और श्रृंगार का सभी समान अर्पित करें।
  • मां मंगला गौरी के हवन में पूरे परिवार को सम्मिलित होना चाहिए। हवन के बाद माता मंगला गौरी की आरती उतारें।
  • मां मंगला की आरती उतारने के बाद सभी में प्रसाद वितरण करें।
  • सभी पूजा विधि संपन्न करने के बाद मां गौरी से किसी भी प्रकार की भूल के लिए श्रमा मांगे।
  • इसके बाद पुरोहित जी और सभी सोलह स्त्रियों को भोजन कराएं।
  • भोजन कराने के बाद सभी स्त्रियों को सुहाग की चीजें उपहार में दें।
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