नवरात्री घट स्थापना | कलश स्थापना | Navratri Ghat Sthapana | Kalash Sthapana

नवदुर्गा और नवरात्रि

॥ घट स्थापना का महत्व ॥

घट स्थापना और नवरात्री पूजा माँ दुर्गा की भक्ति और साधना के सरल माध्यम हैं।
नवरात्री वर्ष में दो बार आती है। कलश स्थापना के साथ ही माँ के नौ रूप की पूजा की जाती है। दोनों नवरात्री की पूजा समान रूप से नौ दिन की जाती है।
इस पूजा में माँ दुर्गा के विभिन्न नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है । नवदुर्गा सनातन धर्म में माता दुर्गा अथवा माता पार्वती के नौ रूपों को एक साथ कहा जाता है। इन नवों दुर्गा को पापों की विनाशिनी कहा जाता है, हर देवी के अलग अलग वाहन हैं, अस्त्र शस्त्र हैं परन्तु यह सब एक हैं।

नवरात्रा के पहले दिन कलश स्थापना यानि घटस्थापना की जाती है तथा माँ दुर्गा का आवाहन कर स्थापना की जाती है।
नौ दिनों तक देवी माँ के अलग स्वरूपों की भक्ति भाव से पूजा की जाती है।

नवरात्री के इसी काल में देवी माँ ने महा बलशाली दैत्यों का वध करके मानव तथा देवताओं को अभयदान दिया था। देवी मां के आशीर्वाद से नवरात्रि के इन नौ दिनों में संसार में सत्त्वगुण का प्रभाव बढ़ता है तथा तमोगुण का प्रभाव घटता है ।
नवरात्रि में श्रद्धा पूर्वक यह पूजा करने से शक्ति तत्त्व का लाभ पूरे परिवार को वर्ष भर मिलता रहता है।

नवरात्री में घट स्थापना का बहुत महत्त्व होता है। नवरात्री की शुरुआत घट स्थापना से की जाती है। शुभ मुहूर्त में कलश स्थापित किया जाता है। घट स्थापना प्रतिपदा तिथि के पहले एक तिहाई हिस्से में कर लेनी चाहिए।
इसे कलश स्थापना भी कहते है। कलश को सुख समृद्धि , ऐश्वर्य देने वाला तथा मंगलकारी माना जाता है।

कलश के मुख में भगवान विष्णु, गले में रूद्र, मूल में ब्रह्मा तथा मध्य में देवी शक्ति का निवास माना जाता है।
नवरात्री के समय ब्रह्माण्ड में उपस्थित शक्तियों का घट में आह्वान करके उसे कार्यरत किया जाता है। इससे घर की सभी विपदादायक तरंगें नष्ट हो जाती है तथा घर में सुख शांति तथा समृद्धि बनी रहती है।

॥ घट स्थापना | कलश स्थापना की सामग्री ॥

  • जौ बोने के लिए मिट्टी का पात्र। यह वेदी कहलाती है।
  • जौ बोने के लिए शुद्ध साफ़ की हुई मिटटी जिसमे कंकर आदि ना हो।
  • पात्र में बोने के लिए जौ ( गेहूं भी ले सकते है )
  • घट स्थापना के लिए मिट्टी का कलश ( सोने, चांदी या तांबे का कलश भी ले सकते है )
  • कलश में भरने के लिए शुद्ध जल
  • गंगाजल, रोली , मौली, इत्र, पूजा में काम आने वाली साबुत सुपारी
  • दूर्वा, कलश में रखने के लिए सिक्का ( किसी भी प्रकार का , कुछ लोग चांदी या सोने का सिक्का भी रखते है )
  • पंचरत्न ( हीरा , नीलम , पन्ना , माणक और मोती )
  • पीपल , बरगद , जामुन , अशोक और आम के पत्ते ( सभी ना मिल पायें तो कोई भी दो प्रकार के पत्ते ले सकते है )
  • कलश ढकने के लिए ढक्कन ( मिट्टी का या तांबे का )
  • ढक्कन में रखने के लिए साबुत चावल, नारियल, लाल कपड़ा, फूल माला, फल तथा मिठाई, दीपक , धूप , अगरबत्ती

घट स्थापना | कलश स्थापना की विधि

  • सबसे पहले जौ बोने के लिए एक ऐसा पात्र लें जिसमे कलश रखने के बाद भी आस पास जगह रहे। यह पात्र मिट्टी की थाली जैसा कुछ हो तो श्रेष्ठ होता है।
  • इस पात्र में जौ उगाने के लिए मिट्टी की एक परत बिछा दें। मिट्टी शुद्ध होनी चाहिए । पात्र के बीच में कलश रखने की जगह छोड़कर बीज डाल दें।
  • फिर एक परत मिटटी की बिछा दें। एक बार फिर जौ डालें। फिर से मिट्टी की परत बिछाएं। अब इस पर जल का छिड़काव करें।
  • कलश तैयार करें। कलश पर स्वस्तिक बनायें। कलश के गले में मौली बांधें। अब कलश को थोड़े गंगा जल और शुद्ध जल से पूरा भर दें। कलश में साबुत सुपारी , फूल और दूर्वा डालें।
  • कलश में इत्र, पंचरत्न तथा सिक्का डालें। अब कलश में पांचों प्रकार के पत्ते डालें। कुछ पत्ते थोड़े बाहर दिखाई दें इस प्रकार लगाएँ। चारों तरफ पत्ते लगाकर ढ़क्कन लगा दें। इस ढ़क्कन में अक्षत यानि साबुत चावल भर दें।
  • नारियल तैयार करें। नारियल को लाल कपड़े में लपेट कर मौली बांध दें। इस नारियल को कलश पर रखें।
  • अब यह कलश जौ उगाने के लिए तैयार किये गये पात्र के बीच में रख दें। अब देवी देवताओं का आह्वान करते हुए प्रार्थना करें कि – ” हे समस्त देवी देवता आप सभी नौ दिन के लिए कृपया कलश में विराजमान हों “।
  • आह्वान करने के बाद ये मानते हुए कि सभी देवता गण कलश में विराजमान है। कलश की पूजा करें।
  • कलश को टीका करें , अक्षत चढ़ाएं , फूल माला अर्पित करें , इत्र अर्पित करें , नैवेद्य यानि फल मिठाई आदि अर्पित करें।
  • घट स्थापना या कलश स्थापना के बाद देवी माँ की चौकी स्थापित करें।

देवी माँ की चौकी की स्थापना और पूजा विधि

  • लकड़ी की एक चौकी को गंगाजल और शुद्ध जल से धोकर पवित्र करें।
  • साफ कपड़े से पोंछ कर उस पर लाल कपड़ा बिछा दें।
  • इसे कलश के दायी तरफ रखें।
  • चौकी पर माँ दुर्गा की मूर्ति अथवा फ्रेम युक्त फोटो रखें।
  • माँ को चुनरी ओढ़ाएँ। धूप, दीपक आदि जलाएँ।
  • नौ दिन तक जलने वाली माता की अखंड ज्योत जलाएँ।
  • देवी मां को तिलक लगाए । माँ दुर्गा को वस्त्र, चंदन, सुहाग के सामान यानि हलदी, कुमकुम, सिंदूर, अष्टगंध आदि अर्पित करें ।
  • काजल लगाएँ । मंगलसूत्र, हरी चूडियां, फूल माला, इत्र, फल, मिठाई आदि अर्पित करें।
  • श्रद्धानुसार दुर्गा सप्तशती के पाठ, देवी माँ के स्रोत, सहस्रनाम आदि का पाठ करें।
  • देवी माँ की आरती करें।
  • पूजन के उपरांत वेदी पर बोए अनाज पर जल छिड़कें।
  • रोजाना देवी माँ का पूजन करें तथा जौ वाले पात्र में जल का हल्का छिड़काव करें। जल बहुत अधिक या कम ना छिड़के । जल इतना हो कि जौ अंकुरित हो सके। ये अंकुरित जौ शुभ माने जाते है।
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