पापांकुशा एकादशी व्रत कथा | Papankusha Ekadashi Vrat Katha

॥ एकादशी का महत्त्व ॥
आश्विन शुक्ल एकादशी के दिन इच्छित फल की प्राप्ति के लिए भगवान विष्णु का पूजन करना चाहिए। इस पूजन के द्वारा मनुष्य को स्वर्ग लोक की प्राप्ति होती है। मनुष्य कठिन तपस्याओं के द्वारा जो फल की प्राप्ति करते हैं, वह फल इस एकादशी के दिन क्षीर-सागर में शेषनाग पर शयन करने वाले भगवान विष्णु को नमस्कार कर देने से मिल जाता है और मनुष्य को यम के दुख नहीं भोगने पड़ते।मनुष्य को पापों से बचने का दृढ़-संकल्प करना चाहिए। भगवान विष्णु का ध्यान-स्मरण किसी भी रूप में सुखदायक और पापनाशक है, परंतु पापांकुशा एकादशी के दिन प्रभु का स्मरण-कीर्तन सभी क्लेशों व पापों का शमन कर देता है।
एकादशी व्रत का व्रत जब किसी कामना के लिए किया जाता है तो उसे काम्य एकादशी व्रत कहते हैं। ऐसा व्रत धन, संपत्ति, संतान, आयु, स्वास्थ्य आदि की कामना से किया जाता है। यदि निष्काम भावना से यह व्रत किया जाता है तो इसे नित्य एकादशी व्रत कहा जाता है।
इस व्रत में भगवान की भक्ति ही मुख्य ध्येय होता है। पुराणों की व्याख्या करने वाले ब्रह्मज्ञानी श्री सूत जी महाराज ने एकादशी के महत्त्व और उनसे सम्बंधित कथाओं का वर्णन किया है।
उनके अनुसार इन्द्रियों पर नियमन यानि संयम करना आवश्यक होता है। इसलिए इसे नियम भी कहते हैं।एकादशी के व्रत नियम पूर्वक करने से बुद्धि निर्मल होने लगती है। विचारों में सत्व गुणों का आगमन होने लगता है। विवेक शक्ति आती है तथा सत असत का निर्णय स्वतः ही होने लगता है।
॥ पूजन सामग्री ॥
पूजन सामग्री को व्यवस्थित रूप से ( पूजन शुरू करने के पूर्व ) पूजा स्थल पर जमा कर रख लें, जिससे पूजन में अनावश्यक व्यवधान न हो।
यदि इनमे से कुछ सामग्री ना जुटा सकें तो कोई बात नहीं, जितनी सामग्री सहर्ष जुटा सकें उसी से भक्ति भावना से पूजा करें। क्योंकि कहा जाता है भगवान भावना से प्रसन होते है, सामग्री से नहीं।
- चौकी, रोली, मौली, अक्षत ( साबुत चावल )
- दीपक, शुद्ध देशी घी, रुई, धूपबत्ती, फूल, अष्टगंध
- अगरबत्ती, कपूर, तुलसीदल, जनेऊ, जल का कलश।
- प्रसाद के लिए गेंहू के आटे की पंजीरी, फल, दूध, मिठाई, नारियल, पंचामृत, सूखे मेवे, शक्कर, पान में से जो भी हो सवाया लें।
- दक्षिणा।
॥ पूजन का मंडप ॥
पूजन को शुरु करने से पहले मंडप तैयार कर लें।
- सबसे पहले पूजा के स्थान को साफ कर लें।
- अब पूर्व या उत्तर की ओर मुख कर बैठे।
- पूजा वाले स्थान को साफ करके चौकी स्थापित करनी चाहिए।
- चौकी पर शुभ चिह्न स्वस्तिक बनाएं।
- चौकी पर साफ लाल रंग का कपड़ा बिछाएं।
- अब भगवान श्री गणेश एवं भगवान विष्णु की तस्वीर रखें। श्री कृष्ण या सत्यनारायण की प्रतिमा की भी स्थापना कर सकते है।
- अब बायी ओर दीपक रखें।
- चौकी के सामने पूजन की थाली व जल भरकर कलश रखें।
- पूजन की थाली में रोली से एक स्वास्तिक बनाते है। इस थाली में ही, फूल, मिठाई, रोली, मौली, सुपारी, पान, चावल, कपूर, धूप, अगरबत्ती, एक दीपक, जल कलश रखे ।
पापांकुशा एकादशी व्रत कथा
पापांकुशा एकादशी व्रत कथा | Papankusha Ekadashi Vrat Katha
धर्मराज युधिष्ठिर कहने लगे कि हे भगवान ! मैंने आश्विन कृष्ण एकादशी अर्थात इंदिरा एकादशी का सविस्तार वर्णन सुना। अब आप कृपा करके मुझे आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी के विषय में भी बतलाइये। इस एकादशी का क्या नाम है तथा इसके व्रत का क्या विधान है? इसका व्रत करने से किस फल की प्राप्ति होती है? कृपया यह सब विधानपूर्वक कहिए।
भगवान श्रीकृष्ण कहने लगे कि आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी का नाम पापांकुशा एकादशी है। इसका व्रत करने से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं तथा व्रत करने वाला अक्षय पुण्य का भागी होता है।इस एकादशी से सम्बंधित जो कथा प्रचलित है, उसे मैं तुम्हें सुनाता हूँ, श्रद्धा पूर्वक श्रवण करो।
प्राचीन समय में विंध्य पर्वत पर क्रोधन नामक एक बहेलिया रहता था, वह बड़ा क्रूर था। उसका सारा जीवन हिंसा, लूटपाट, मद्यपान और गलत संगति पाप कर्मों में बीता।
जब उसका अंतिम समय आया तब यमराज के दूत बहेलिये को लेने आए और यमदूत ने बहेलिये से कहा कि कल तुम्हारे जीवन का अंतिम दिन है हम तुम्हें कल लेने आएंगे। यह बात सुनकर बहेलिया बहुत भयभीत हो गया और महर्षि अंगिरा के आश्रम में पहुंचा और महर्षि अंगिरा के चरणों पर गिरकर प्रार्थना करने लगा। हे ऋषिवर ! मैंने जीवन भर पाप कर्म ही किए हैं। कृपा कर मुझे कोई ऐसा उपाय बताएं, जिससे मेरे सारे पाप मिट जाएं और मोक्ष की प्राप्ति हो जाए।
क्रोधन की इस दया पूर्वक प्रार्थना पर ऋषि को दया आ गई और उसके निवेदन पर महर्षि अंगिरा ने उसे आश्विन शुक्ल की पापांकुशा एकादशी का विधि पूर्वक व्रत करके को कहा।
महर्षि अंगिरा के कहे अनुसार उस बहेलिए ने यह व्रत किया और किए गए सारे पापों से छुटकारा पा लिया और इस व्रत पूजन के बल से भगवान की कृपा से वह विष्णु लोक को गया। जब यमराज के यमदूत ने इस चमत्कार को देखा तो वह बहेलिया को बिना लिए ही यमलोक वापस लौट गए।
हे युधिष्ठिर ! यह पापांकुशा एकादशी के व्रत का माहात्म्य मैंने तुमसे कहा। इसके पढ़ने और सुनने से मनुष्य सब पापों से छूट जाते हैं और सब प्रकार के भोगों को भोगकर बैकुंठ को प्राप्त होते हैं।