सभी पूर्णिमा व्रत कथा | Purnima Vrat Katha

Oct 29, 2023 | व्रत कथाएँ

॥ सभी प्रसिद्ध पूर्णिमा ॥

फाल्गुन पूर्णिमा – फाल्गुन की पूर्णिमा के दिन होली का पर्व मनाया जाता है।
चैत्र पूर्णिमा – चैत्र की पूर्णिमा के दिन हनुमान जयंती मनाई जाती है। चैत्र की पूर्णिमा के दिन प्रेम पूर्णिमा पति व्रत मनाया जाता है।
वैशाख पूर्णिमा – वैशाख की पूर्णिमा के दिन बुद्ध जयंती मनाई जाती है।
ज्येष्ठ पूर्णिमा – ज्येष्ठ की पूर्णिमा के दिन वट सावित्री मनाया जाता है।
आषाढ़ पूर्णिमा – आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरू-पूर्णिमा कहते हैं। इस दिन गुरु पूजा का विधान है। इसी दिन कबीर जयंती मनाई जाती है। व्यास पूर्णिमा
श्रावण पूर्णिमा – श्रावण की पूर्णिमा के दिन रक्षाबन्धन का पर्व मनाया जाता है। नारली पूर्णिमा
भाद्रपद पूर्णिमा – भाद्रपद की पूर्णिमा के दिन उमा माहेश्वर व्रत मनाया जाता है।
आश्विन पूर्णिमा – अश्विन की पूर्णिमा के दिन शरद पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है। कोजागरी लक्ष्मी पूजा, टेसू पूनै, वाल्मीकि जयंती
कार्तिक पूर्णिमा – कार्तिक की पूर्णिमा के दिन पुष्कर मेला और गुरुनानक जयंती पर्व मनाए जाते हैं। देव दिवाली
मार्गशीर्ष पूर्णिमा – मार्गशीर्ष की पूर्णिमा के दिन श्री दत्तात्रेय जयंती मनाई जाती है।
पौष पूर्णिमा – पौष की पूर्णिमा के दिन शाकंभरी जयंती मनाई जाती है। जैन धर्म के मानने वाले पुष्यभिषेक यात्रा प्रारंभ करते हैं। बनारस में दशाश्वमेध तथा प्रयाग में त्रिवेणी संगम पर स्नान को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है।
माघ पूर्णिमा – माघ की पूर्णिमा के दिन संत रविदास जयंती, श्री ललित और श्री भैरव जयंती मनाई जाती है। माघी पूर्णिमा के दिन संगम पर माघ-मेले में जाने और स्नान करने का विशेष महत्व है।

॥ व्रत का महत्व॥

हर माह के अंत में आने वाली पूर्णिमा का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है। कहते हैं कि पूर्णिमा तिथि देवताओं की तिथि होती है। इसका विशेष महत्व होता है।
धार्मिक मान्यता है कि इस पूरे दिन में देवी-देवता मनुष्य रूप में धरती पर मौजूद रहते हैं।

पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान, दान, पुण्य आदि का विशेष महत्व है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन श्री हरि भगवान विष्णु गंगा नदी में विद्यमान होते हैं।
इसलिए पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान को मोक्षदायी माना गया है। बता दें कि पूर्णिमा के व्रत को शास्त्रों में श्रेष्ठ व्रत माना गया है। इस दिन पूजन के दौरान श्रीसत्यनारायण व्रत कथा करने से भगवान श्री हरि की कृपा प्राप्त होते हैं।

॥ श्रीसत्यनारायण व्रत कथा का महत्व ॥

भारत में हिंदू धर्मावलंबियो के बीच सबसे प्रतिष्ठित व्रत कथा के रूप में भगवान विष्णु के सत्य स्वरूप की सत्यनारायण व्रत कथा है। भगवान की पूजा कई रूपों में की जाती है।
इस कथा के दो प्रमुख विषय हैं। जिनमें एक है संकल्प को भूलना और दूसरा है प्रसाद का अपमान।

व्रत कथा के अलग-अलग अध्यायों में छोटी कहानियों के माध्यम से बताया गया है कि सत्य को नारायण के रूप में पूजना ही सत्यनारायण की पूजा है। जिसे आप पूर्णमासी के दिन कह और सुन सकते है।
इसलिए जीवन में सत्य व्रत का पालन पूरी निष्ठा और सुदृढ़ता के साथ करना चाहिए। इसका दूसरा अर्थ यह है कि संसार में एकमात्र नारायण ही सत्य हैं, बाकी सब माया है। सत्य में ही सारा जगत समाया हुआ है। सत्य के सहारे ही शेष भगवान पृथ्वी को धारण करते हैं।

॥ पूजन सामग्री ॥

  • चौकी, रोली, मौली, मेहंदी, अक्षत ( साबुत चावल )
  • दीपक, शुद्ध देशी घी, रुई, धूपबत्ती, फूल, अष्टगंध
  • अगरबत्ती, कपूर, जल का कलश।
  • प्रसाद के लिए गुड़, फल, दूध, मिठाई, नारियल, पंचामृत, सूखे मेवे, शक्कर, पान में से जो भी हो लें।
  • दक्षिणा।

॥ पूजा विधि ॥

  • जिस दिन व्यक्ति पूर्णिमा का व्रत करता है उस दिन उसे प्रातः जल्दी उठकर ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करना चाहिए। यदि आप इस दिन उपवास करते हैं तो पूरे दिन फलाहर व्रत का पालन करें और उपवास रखें।
  • स्नान करके साफ़ वस्त्र धारण करें और घर के मंदिर की सफाई करें। मंदिर के सभी भगवानों को स्नान कराकर साफ़ वस्त्र पहनाएं और चंदन तिलक लगाएं।
  • अगर पवित्र नदियों में स्नान करना संभव नहीं है, तो घर में ही गंगाजल युक्त पानी से स्नान ध्यान कर सकते हैं।
  • सर्वप्रथम भगवान भास्कर के ‘ॐ नमो नारायणाय’ मंत्र का जाप करते हुए अर्घ्य दें।
  • पूजा के लिए एक चौकी रखनी चाहिए । चौकी को गंगाजल छिड़क कर स्वच्छ करना चाहिए।
  • चौकी के चारों पायों के पास केले के पत्ते लगाने चाहिए। फिर चौकी पर कपड़ा बिछाकर उसमें सत्यनारायण जी की फोटो या प्रतिमा स्थापित करनी चाहिए।
  • भगवान सत्यनारायण को स्नान कराएं। जनेऊ अर्पित करें। गधं, पुष्प,अक्षत अर्पित करें।
  • प्रतिमा के आगे फल, फूल और पंचामृत रखना चाहिए। इसके साथ ही भगवान के लिए तैयार किया हुआ भोग भी उनको अर्पित करना चाहिए।
  • इसके बाद धूप और दीपक जलाकर, भगवान को भोग में चरणामृत, पान, मोली, रोली, कुमकुम, फल, फूल, पंचगव्य, सुपारी, दूर्वा आदि अर्पित करें।
  • विधि-विधान पूर्वक भगवान सत्यनारायण की पूजा अर्चना करनी चाहिए।
  • भगवान सत्यनारायण की कथा पढ़नी या सुननी चाहिए। इसके बाद उनकी आरती करनी चाहिए।
  • फिर भगवान सत्यनारायण को पंचामृत और प्रसाद का भोग लगाना चाहिए। इसके बाद घर के सभी सदस्यों को पंचामृत और प्रसाद देना चाहिए।
  • पूर्णिमा के दिन किसी जरूरतमंद व्यक्ति या ब्राह्मण को भोजन कराना चाहिए या श्रद्धा अनुसार दान दक्षिणा अवश्य देनी चाहिए

॥ श्री सत्यनारायण व्रत कथा का सार॥

यहाँ हम सिर्फ उन सभी अध्यायों का सार दे रहे है। श्री सत्यनारायण कथा का विस्तार पूर्वक वर्णन ‘ श्री सत्यनारायण कथा ‘ श्रेणी में दिया गया है।

॥ पूर्णिमा व्रत कथा – श्रीसत्यनारायण व्रत कथा का सार॥

एक बार योगी नारद जी ने भ्रमण करते हुए मृत्युलोक के प्राणियों को अपने-अपने कर्मों के अनुसार तरह-तरह के दुखों से परेशान होते देखा।
इससे उनका संतहृदय द्रवित हो उठा और वे वीणा बजाते हुए अपने परम आराध्य भगवान श्रीहरि की शरण में हरि कीर्तन करते क्षीरसागर पहुंच गये और स्तुतिपूर्वक बोले, हे नाथ ! यदि आप मेरे ऊपर प्रसन्न हैं तो मृत्युलोक के प्राणियों की व्यथा हरने वाला कोई छोटा-सा उपाय बताने की कृपा करें।

तब भगवान ने कहा, हे वत्स ! तुमने विश्वकल्याण की भावना से बहुत सुंदर प्रश्न किया है। अत: तुम्हें साधुवाद है।
आज मैं तुम्हें ऐसा व्रत बताता हूं जो स्वर्ग में भी दुर्लभ है और महान पुण्यदायक है तथा मोह के बंधन को काट देने वाला है और वह है श्री सत्यनारायण व्रत।

इसे विधि-विधान से करने पर मनुष्य सांसारिक सुखों को भोगकर परलोक में मोक्ष प्राप्त कर लेता है। जिसने पहले समय में इस व्रत को किया था उसका इतिहास कहता हूँ, ध्यान से सुनो !

काशीपुर नगर के एक निर्धन ब्राह्मण को भिक्षावृत्ति करते देख भगवान विष्णु स्वयं ही एक बूढ़े ब्राह्मण के रूप में उस निर्धन ब्राह्मण के पास जाकर कहते हैं, हे विप्र ! श्री सत्यनारायण भगवान मनोवांछित फल देने वाले हैं।
तुम उनके व्रत-पूजन करो जिसे करने से मुनष्य सब प्रकार के दुखों से मुक्त हो जाता है। इस व्रत में उपवास का भी अपना महत्व है किंतु उपवास से मात्र भोजन न लेना ही नहीं समझना चाहिए।

उपवास के समय हृदय में यह धारणा होनी चाहिए कि आज श्री सत्यनारायण भगवान हमारे पास ही विराजमान हैं। अत: अंदर व बाहर शुचिता बनाये रखनी चाहिए और श्रद्धा-विश्वासपूर्वक भगवान का पूजन कर उनकी मंगलमयी कथा का श्रवण करना चाहिए।
सायंकाल में यह व्रत-पूजन अधिक प्रशस्त माना जाता है।

श्री सत्यनारायण की कथा बताती है कि व्रत-पूजन करने में मानव मात्र का समान अधिकार है। चाहे वह निर्धन, धनवान, राजा हो या व्यवसायी, ब्राह्मण हो या अन्य वर्ग, स्त्री हो या पुरुष।
यही स्पष्ट करने के लिए इस कथा में निर्धन ब्राह्मण, गरीब लकड़हारा, राजा उल्कामुख, धनवान व्यवसायी, साधु वैश्य, उसकी पत्नी लीलावती, पुत्री कलावती, राजा तुङ्गध्वज एवं गोपगणों की कथा का समावेश किया गया है.

कथासार ग्रहण करने से यह निष्कर्ष निकलता है कि जिस किसी ने सत्य के प्रति श्रद्धा-विश्वास किया, उन सबके कार्य सिद्ध हो गये।
जैसे लकड़हारा, गरीब ब्राह्मण, उल्कामुख, गोपगणों ने सुना कि यह व्रत सुख, सौभाग्य, संतति, संपत्ति सब कुछ देने वाला है तो सुनते ही श्रद्धा, भक्ति तथा प्रेम के साथ सत्यव्रत का आचरण करने में लग गये और फलस्वरूप इहलौकिक सुख भोगकर परलोक में मोक्ष के अधिकारी हुए।

साधु वैश्य ने भी यही प्रसंग राजा उल्कामुख से विधि-विधान के साथ सुना, किंतु उसका विश्वास अधूरा था। श्रद्धा में कमी थी।
वह कहता था कि संतान प्राप्ति पर सत्यव्रत-पूजन करूंगा। समय बीतने पर उसके घर एक सुंदर कन्या ने जन्म लिया। उसकी श्रद्धालु पत्नी ने व्रत की याद दिलायी तो उसने कहा कि कन्या के विवाह के समय करेंगे।

समय आने पर कन्या का विवाह भी हो गया किंतु उस वैश्य ने व्रत नहीं किया। वह अपने दामाद को लेकर व्यापार के लिए चला गया।
उसे चोरी के आरोप में राजा चन्द्रकेतु द्वारा दामाद सहित कारागार में डाल दिया गया। पीछे घर में भी चोरी हो गयी। पत्नी लीलावती व पुत्री कलावती भिक्षावृत्ति के लिए विवश हो गयीं।

एक दिन कलावती ने किसी विप्र के घर श्री सत्यनारायण का पूजन होते देखा और घर आकर मां को बताया। तब मां ने अगले दिन श्रद्धा से व्रत-पूजन कर भगवान से पति और दामाद के शीघ्र वापस आने का वरदान मांगा।
श्रीहरि प्रसन्न हो गये और स्वप्न में राजा को दोनों बंदियों को छोडऩे का आदेश दिया। राजा ने उनका धन-धान्य तथा प्रचुर द्रव्य देकर उन्हें विदा किया।

घर आकर पूर्णिमा और संक्रांति को सत्यव्रत का जीवन पर्यन्त आयोजन करता रहा, फलत: सांसारिक सुख भोगकर उसे मोक्ष प्राप्त हुआ।

इसी प्रकार राजा तुङ्गध्वज ने वन में गोपगणों को श्री सत्यनारायण भगवान का पूजन करते देखा, किंतु प्रभुता के मद में चूर राजा न तो पूजास्थल पर गया, न दूर से ही प्रणाम किया और न ही गोपगणों द्वारा दिया प्रसाद ग्रहण किया।
परिणाम यह हुआ कि राजा के पुत्र, धन-धान्य, अश्व-गजादि सब नष्ट हो गये। राजा को अकस्मात् यह आभास हुआ कि विपत्ति का कारण सत्यदेव भगवान का निरादर है।

उसे बहुत पश्चाताप हुआ। वह तुरंत वन में गया। गोपगणों को बुलाकर काफी समय लगाकर सत्यनारायण भगवान की पूजा की। फिर उसने उनसे ही प्रसाद ग्रहण किया तथा घर आ गया।
उसने देखा कि विपत्ति टल गयी और उसकी सारी संपत्ति तथा जन सुरक्षित हो गये। राजा प्रसन्नता से भर गया और सत्यव्रत के आचरण में निरत हो गया तथा अपना सर्वस्व भगवान को अर्पित कर दिया।

श्री सत्यनारायण व्रत से हमें शिक्षा मिलती है कि सत्यरूप ब्रह्म जीवात्मा रूप में हमारे अंदर विद्यमान है। हम सब सत्य के ही स्वरूप हैं, पर माया के वश में आकर नष्ट होने वाली वस्तुओं को संग्रह करने की सोचकर संसार में मग्न हो रहे हैं।
इस अज्ञान को दूर करके सत्य को स्वीकार करना और प्रभु की भक्ति करना ही मानव का धर्म है। यही सत्यनारायण व्रत और कथा का सार है।

। इति श्री सत्यनारायण व्रत कथा सार सम्पूर्णम्।।

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