रूप चौदस, नरक चतुर्दशी, काली चौदस, छोटी दीपावली | Roop Chaudas, Narak Chaturdashi, Kali Chaudas, Choti Deepawali

॥ पूजा का महत्व ॥
पूजन शुरू करने के पूर्व पूजन पद्धति को एक बार शुरू से आखिरी तक पढ़कर दोहरा लेना चाहिए उससे आप पूजन में आनंद का अनुभव करेंगे।
रूप चतुर्दशी, जिसे छोटी दिवाली या नरक चतुर्दशी भी कहा जाता है, दीपावली के त्योहार का एक महत्वपूर्ण दिन है। यह मुख्य दिवाली से एक दिन पहले मनाया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने नरकासुर नामक असुर का वध किया था और 16,000 कन्याओं को उसकी कैद से मुक्त किया था। इसे बुराई पर अच्छाई की विजय के रूप में देखा जाता है।
रूप चतुर्दशी पर विशेष रूप से स्नान और पूजा का महत्व होता है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन सूर्योदय से पहले स्नान करने से शरीर की शुद्धि होती है और पापों का नाश होता है। इसे “अभ्यंग स्नान” कहा जाता है। साथ ही, इस दिन को रूप और सौंदर्य से भी जोड़ा जाता है, इसलिए महिलाएं अपने सौंदर्य का विशेष ध्यान रखती हैं और भगवान से सुंदरता और स्वास्थ्य की कामना करती हैं।
इस दिन दीप जलाने की परंपरा भी है, जिससे नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है और घर में सकारात्मकता आती है।
॥ नरक चतुर्दशी हनुमान जयंती ॥
एक मान्यता हैं कि इस दिन कार्तिक मास कृष्ण पक्ष की चौदस के दिन हनुमान जी ने माता अंजना के गर्भ से जन्म लिया था।
इस प्रकार इस दिन दुखों एवम कष्टों से मुक्ति पाने के लिए हनुमान जी की भक्ति की जाती हैं, जिसमे कई लोग हनुमान चालीसा, हनुमान अष्टक जैसे पाठ करते हैं।
कहते हैं कि आज के दिन हनुमान जयंती होती हैं। यह उल्लेख वाल्मीकि रामायण में मिलता हैं।
इस प्रकार देश में दो बार हनुमान जयंती का अवसर मनाया जाता हैं। एक बार चैत्र की पूर्णिमा और दूसरी बार कार्तिक मास कृष्ण पक्ष की चौदस के दिन।
॥ छोटी दीपावली ॥
इस दिन सूर्योदय से पहले आटा, तेल, हल्दी आदि का उबटन मलकर स्नान करे। फिर एक थाली में एक चौमुखी दीपकर तथा 16 छोटे दीपक लेकर उनमें तेल बाती डालकर जलावें।
फिर रोली, खील, गुड़, धूप, अबीर, गुलाल, फल, फूल आदि से पूजा करे।
पूजा के बाद सब दीपको को घर के अन्दर प्रत्येक स्थान पर रखे दे।
॥ यम दीपदान विधि ॥
धनतेरस के दिन यम के नाम से विशेष रूप से दीपदान की परंपरा हैं। सायंकाल मिट्टी का कोरा दीपक लेते हैं।
उसमें तिल का तेल डालकर नवीन रूई की बत्ती रखते हैं और फिर उसे प्रकाशित कर, दक्षिण की तरह मुंह करके मृत्यु के देवता यम को समर्पित करते हैं।
तत्पश्चात इसे दरवाजे के बगल में अनाज की ढेरी पर रख देते हैं। प्रयास यह रहता है कि यह रातभर जलता रहे, बुझे नहीं।
दक्षिण दिशा की तरफ मुंह करके इस श्लोक का उच्चारण करते हुए दीपदान किया जाता है।
मृत्युना पाशदंडाभ्याम कालेन श्यामया सह,
त्रयोदश्याम दीपदानात सुर्यजः प्रीयताम मम।
( अर्थात इस दीपदान से सूर्यपुत्र यम खुश हों तथा हमें मृत्यु , पाश , दण्ड और काल से मुक्त करें )
प्रार्थना के पश्चात रोली, अक्षत, गंध, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य से पूजन करें।
॥ पूजन सामग्री ॥
पूजन सामग्री को व्यवस्थित रूप से ( पूजन शुरू करने के पूर्व ) पूजा स्थल पर जमा कर रख लें, जिससे पूजन में अनावश्यक व्यवधान न हो।
यदि इनमे से कुछ सामग्री ना जुटा सकें तो कोई बात नहीं, जितनी सामग्री सहर्ष जुटा सकें उसी से भक्ति भावना से पूजा करें। क्योंकि कहा जाता है भगवान भावना से प्रसन होते है, सामग्री से नहीं।
• रोली, मौली, अक्षत ( साबुत चावल )।
• दीपक, तेल, रुई, धूपबत्ती, अष्टगंध।
• पूजा के पुष्प, फूल माला रखे।
• पंचामृत, पंचामृत दूध, दही, शहद, घी और शक्कर मिलाकर बनाया जाता है।
• प्रसाद के लिए फल, मिठाई।
• दक्षिणा ।
॥ पूजन की तैयारी ॥
पूजन को शुरु करने से पहले मंडप तैयार कर लें।
• रूप चौदस के दिन इन छह देवो की, यमराज, श्रीकृष्ण, काली माता, भगवान शिव, रामदूत हनुमान और भगावन वामन की पूजा की जाती है।
• पूजा के लिए सबसे पहले स्नान करे एंव सभी समाग्री एकत्रित करे।
• अब साफ़ सुथरे वस्त्र को धारण करे और पवित्र होकर पूजा गृह को शुध्द करे इसके बाद पूजा स्थान पर पूजा समग्री के साथ बैठ जाए।
• चौकी पर लाल कपडे का वस्त्र बिछा दे।
• चौकी पर पछह देवो की मूर्ति इस पर स्थापित कर देना है।
• चौकी के सामने दो थाली व जल भरकर कलश रखें। थालियों की निम्नानुसार व्यवस्था करें-
• पहली थाली में, फूल, मिठाई, लौंग, इलायची, जनेऊ, मेवे।
• दूसरी थाली (पूजन की थाली) में, रोली, मौली, सुपारी, पान, चावल, कपूर, धूप, अगरबत्ती, एक दीपक, जल कलश ।
• पूजन की थाली में ही रोली से एक स्वास्तिक बनाते है।
• इसी स्वास्तिक के बीच में सुपारी पर मौली लपेटकर रोली लगाकर स्वास्तिक पर स्थापित करें। ये श्री गणेश जी का प्रतीक है। इसी पर श्री गणेश पूजन होता है
• स्वास्तिक एक तरफ रोली से नौ बिंदी बनायें। ये नवग्रह का प्रतीक हैं।
• स्वास्तिक के दूसरी तरफ रोली से सोलह बिंदी बनायें। ये शोडष मातृका का प्रतीक है।
• स्वास्तिक के नीचे की तरफ रोली से पांच बिंदी बनायें। ये पंचदेव के प्रतीक हैं।
रूप चौदस, नरक चतुर्दशी, काली चौदस, छोटी दीपावली | Roop Chaudas, Narak Chaturdashi, Kali Chaudas, Choti Deepawali
॥ पूजन प्रारंभ ॥
॥ पवित्रीकरण ॥
सबसे पहले पवित्रीकरण करें।
पवित्रकरण हेतु बाएँ हाथ में जल लेकर, दाहिने हाथ की अनामिका से स्वयं पर एवं समस्त पूजन सामग्री और अपने आसन पर निम्न दोहा बोलते हुए जल छिड़कें –
वरुण विष्णु सबसे बड़े, देवन में सरताज ।
बाहर भीतर देह मम, करो शुद्ध महाराज ॥
‘भगवान पुण्डरीकाक्ष का नाम उच्चारण करने से पवित्र अथवा अपवित्र व्यक्ति, बाहर एवं भीतर से पवित्र हो जाता है। भगवान पुण्डरीकाक्ष मुझे पवित्र करें।’
॥ आचमन ॥
इसके बाद दाहिने हाथ में जल लेकर तीन बार आचमन करें
ॐ केशवाय नमः स्वाहा, (आचमन करें)
ॐ नारायणाय नमः स्वाहा, (आचमन करें)
ॐ माधवाय नमः स्वाहा। (आचमन करें)
निम्न मंत्र बोलकर हाथ धो लें।
ॐ गोविन्दाय नमः हस्तं प्रक्षालयामि ।
॥ दीपक ॥
शुद्ध घृत युक्त दीपक जलाएँ (हाथ धो लें)। निम्न वाक्यांश बोलते हुए दीप-देवता की पूजा करें-
‘हे दीप ! तुम देवरूप हो, हमारे कर्मों के साक्षी हो, विघ्नों के निवारक हो, हमारी इस पूजा के साक्षीभूत दीप देव, पूजन कर्म के समापन तक सुस्थिर भाव से आप हमारे निकट प्रकाशित होते रहें।’
अब चौकी पर रखे सभी दीपक जगाये।
॥ स्वस्ति-वाचन ॥
निम्न मंगल वाक्यांश का पाठ करें।
ॐ ! हे पूजनीय परब्रह्म परमेश्वर ! हम अपने कानों से शुभ सुनें। अपनी आँखों से शुभ ही देखें, आपके द्वारा प्रदत्त हमारी आयु में हमारे समस्त अंग स्वस्थ व कार्यशील रहें। हम लोकहित का कार्य करते रहें।
ॐ ! हे परब्रह्म परमेश्वर ! गगन मंडल व अंतरिक्ष हमारे लिए शांति प्रदाता हो। भू-मंडल शांति प्रदाता हो। जल शांति प्रदाता हो, औषधियाँ आरोग्य प्रदाता हों, अन्न पुष्टि प्रदाता हो।
हे विश्व को शक्ति प्रदान करने वाले परमेश्वर ! प्रत्येक स्रोत से जो शांति प्रवाहित होती है। हे विश्व नियंत्रा ! आप वही शांति मुझे प्रदान करें।
श्री महागणपति को नमस्कार, लक्ष्मी-नारायण को नमस्कार, उमा-महेश्वर को नमस्कार, माता-पिता के चरण कमलों को नमस्कार, इष्ट देवताओं को नमस्कार, कुल देवता को नमस्कार, सब देवों को नमस्कार।
॥ पूजन का सकंल्प ॥
संकल्प करने से पहले हाथों मे जल, फूल व चावल लें। सकंल्प में अपना नाम, जिस दिन पूजन कर रहे हैं उस वर्ष, तिथि, उस वार और उस जगह को लेकर अपनी इच्छा बोले।
तो इस प्रकार संकल्प लें। मैं…………..विक्रम संवत्को………….., कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की अमावस्या, तिथि …………..को…………..वार के दिन,
भारत देश के …………..राज्य के…………..शहर में, इस मनोकामना से …………..श्री महालक्ष्मी का पूजन कर रही / रहा हूं।
शुभ पर्व की इस शुभ बेला में हे, धन वैभव प्रदाता महालक्ष्मी, आपकी प्रसन्नतार्थ यथा उपलब्ध वस्तुओं से आपका पूजन करने का संकल्प करता हूँ।
इस पूजन कर्म में महासरस्वती, महाकाली, कुबेर आदि देवों का पूजन करने का भी संकल्प लेता हूँ। इस कर्म की निर्विघ्नता हेतु श्री गणेश का पूजन करता हूँ।’
अब हाथों में लिए गए जल को जमीन पर छोड़ दें।
अब अपनी रक्षा के लिए चावल के दाने हाथ में लेकर दशों दिशाओ में थोड़े-थोड़े अर्पित करते हुए, ये दोहा बोले-
पूरब में श्री कृष्ण जी, दक्षिण में बाराह ।
पश्चिम केशव दुख हरे, उत्तर श्रीधर शाह ॥
ऊपर गिरधर श्री कृष्ण जी, शेषनाग पाताल ।
दशों दिशा रक्षा करे, मेरी नित गोपाल ॥
॥ श्री गणेश पूजन प्रारंभ ॥
अब हाथ जोड़कर तथा यह दोहा बोलते हुए श्री गणेश जी महाराज का ध्यान व आह्वान कर नमस्कार करे।
सिद्धि सदन गजवदनवर, प्रथम पूज्य गणराज ।
प्रथम वंदना आपको, आय सुधारो काज ॥
श्री गणेशजी ! आपको नमस्कार है। आप संपूर्ण विघ्नों की शांति करने वाले हैं।
अपने गणों में गणपति, क्रांतदर्शियों में श्रेष्ठ कवि, शिवा-शिव के प्रिय ज्येष्ठ पुत्र और सुख आदि के प्रदाता, हम आपका इस पूजन कर्म में आह्वान करते हैं।
हमारी स्तुतियों को सुनते हुए पालनकर्ता के रूप में आप इस सदन में आसीन हों क्योंकि आपकी आराधना के बिना कोई भी कार्य प्रारंभ नहीं किया जा सकता है।
आप यहाँ पधारकर पूजा ग्रहण करें और हमारे इस पूजन कर्म की रक्षा भी करें।
अब श्री गणेश की मूर्ति अथवा छोटी चौकी पर स्वस्तिक पर रखी सुपारी पर श्री गणेश जी महाराज का पूजन इस प्रकार करे
- पहले जल छिड़कें और बोलें – स्नानं समर्पयामि
- मौली चढ़ायें और बोलें – वस्त्रम समर्पयामि ( गणेश जी को जनेऊ अर्पित करें )
- रौली के छींटे दें बोलें – गन्धकं समर्पयामि
- अक्षत चढ़ायें बोलें – अक्षतान समर्पयामि
- पुष्प, फूल और माला चढ़ायें बोलें – पुष्पं समर्पयामि
- धूप दिखाएँ बोलें – धूपम समर्पयामि
- दीपक दिखाएँ बोलें – दीपम दर्शयामि
- गुड़ या मिठाई चढ़ाएं बोलें – नैवेद्यम समर्पयामि
- जल के छींटे देकर आचमन कराएँ बोलें – आचमन समर्पयामि
- पान चढ़ाएं बोलें – ताम्बूलं समर्पयामि
- सुपारी या पैसे चढ़ाएं बोलें – दक्षिणा समर्पयामि
प्रार्थना- हे गणेश ! यथाशक्ति आपका पूजन किया, मेरी त्रुटियों को क्षमा कर आप इसे स्वीकार करें। अब हाथ जोड़कर श्री गणेश जी महाराज को नमस्कार कर यह दोहा बोले
जय गणपति गिरजा सुवन, रिद्धि सिद्धि दातार
कष्ट हरो मंगल करो, नमस्कार सत बार
॥ वरुण देव कलश पूजन॥
पूजा के थाल में रखे जल के कलश पर ही वरुण देव की पूजा होगी, अब अक्षत चढ़ा कर वरुण देवता का आह्वान इस दोहे को बोल करे
जल जीवन है जगत का, वरुण देव का वास ।
सकल देव निशदिन करे, कलशे मांहि निवास ॥
गंगादिक नदियाँ बसे, सागर सप्त निवास ।
पूजा हेतु पधारिये, पाप शाप हो नाश ॥
अब पूजा के थाल में रखे जल के कलश पर
- पहले जल छिड़कें और बोलें – स्नानं समर्पयामि
- मौली चढ़ायें और बोलें – वस्त्रम समर्पयामि
- रौली के छींटे दें बोलें – गन्धकं समर्पयामि
- अक्षत चढ़ायें बोलें – अक्षतान समर्पयामि
- पुष्प, फूल और माला चढ़ायें बोलें – पुष्पं समर्पयामि
- धूप दिखाएँ बोलें – धूपम समर्पयामि
- दीपक दिखाएँ बोलें – दीपम दर्शयामि
- गुड़ या मिठाई चढ़ाएं बोलें – नैवेद्यम समर्पयामि
- जल के छींटे देकर आचमन कराएँ बोलें – आचमन समर्पयामि
- पान चढ़ाएं बोलें – ताम्बूलं समर्पयामि
- सुपारी या पैसे चढ़ाएं बोलें – दक्षिणा समर्पयामि
अब हाथ जोड़कर वरुण देव को नमस्कार करे
॥ षोडश मातृका पूजन॥
बाएं हाथ में अक्षत लेकर निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुए दाएं हाथ से अक्षत पूजा की चौकी पर गेंहू की सोलह ढ़ेरी पर अर्पित करते हुए षोडश मातृकाओं का आह्वान करे
गौरी, पद्या, शची, मेधा, सावित्री, विजया, जया, देवसेना,
स्वधा, स्वाहा, मातृः, लोकमातृः, धृतिः, पुष्टिः, तुष्टिः, आत्मनः, कुलदेवता आह्वान समर्पयामि
अब षोडश मातृकाओं पर
- पहले जल छिड़कें और बोलें – स्नानं समर्पयामि
- मौली चढ़ायें और बोलें – वस्त्रम समर्पयामि
- रौली के छींटे दें बोलें – गन्धकं समर्पयामि
- अक्षत चढ़ायें बोलें – अक्षतान समर्पयामि
- पुष्प, फूल और माला चढ़ायें बोलें – पुष्पं समर्पयामि
- धूप दिखाएँ बोलें – धूपम समर्पयामि
- दीपक दिखाएँ बोलें – दीपम दर्शयामि
- गुड़ या मिठाई चढ़ाएं बोलें – नैवेद्यम समर्पयामि
- जल के छींटे देकर आचमन कराएँ बोलें – आचमन समर्पयामि
- पान चढ़ाएं बोलें – ताम्बूलं समर्पयामि
- सुपारी या पैसे चढ़ाएं बोलें – दक्षिणा समर्पयामि
अब हाथ जोड़कर षोडश मातृका को नमस्कार कर यह दोहा बोले –
सोलह माता आपको, नमस्कार शतबार ।
पुष्टि तुष्टि मंगल करो, भरो अखंड भंडार ॥
॥ नवग्रह पूजन ॥
बाएं हाथ में अक्षत लेकर निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुए दाएं हाथ से अक्षत पूजा की चौकी पर चावल की नौ ढ़ेरी पर अर्पित करते हुए नवग्रहों का आह्वान करे
रवि, शशि, मंगल, बुध, गुरु (बृहस्पति), शुक्र, शनि महाराज ।
राहु एवं केतु नव ग्रह नमो, सकल सवारों काज ॥
अब नवग्रहों पर
- पहले जल छिड़कें और बोलें – स्नानं समर्पयामि
- मौली चढ़ायें और बोलें – वस्त्रम समर्पयामि
- रौली के छींटे दें बोलें – गन्धकं समर्पयामि
- अक्षत चढ़ायें बोलें – अक्षतान समर्पयामि
- पुष्प, फूल और माला चढ़ायें बोलें – पुष्पं समर्पयामि
- धूप दिखाएँ बोलें – धूपम समर्पयामि
- दीपक दिखाएँ बोलें – दीपम दर्शयामि
- गुड़ या मिठाई चढ़ाएं बोलें – नैवेद्यम समर्पयामि
- जल के छींटे देकर आचमन कराएँ बोलें – आचमन समर्पयामि
- पान चढ़ाएं बोलें – ताम्बूलं समर्पयामि
- सुपारी या पैसे चढ़ाएं बोलें – दक्षिणा समर्पयामि
अब हाथ जोड़कर नवग्रह महाराज को नमस्कार कर यह दोहा बोले –
है नवग्रह तुमसे करुँ, विनती बारम्बार ।
में तो सेवक आपका रक्खो कृपा अपार ॥
॥ पंचदेव पूजन ॥
प्रत्येक मांगलिक कार्य या पूजा आदि में पंच देव की पूजा का विधान है। इनके बगैर पूजा अधूरी मानी जाती है। इन पंचदेवों की पूजा से ही सभी कार्य निर्विघ्न संपन्न होते हैं।
बाएं हाथ में अक्षत लेकर निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुए दाएं हाथ से अक्षत पूजा की चौकी पर नवग्रह और षोडश मातृका के बीच में चावल की पांच ढ़ेरी पर अर्पित करते हुए पंच देव – सूर्य, गणेश, दुर्गा, शिव और विष्णु जी महाराज का आह्वान करे
ॐ श्री सूर्याय नमः, ॐ श्री गणेशाय नमः, ॐ श्री दुर्गायै नमः,
ॐ श्री शिवाय नमः, ॐ श्री विष्णवे नमः
अब पंचदेवों पर
- पहले जल छिड़कें और बोलें – स्नानं समर्पयामि
- मौली चढ़ायें और बोलें – वस्त्रम समर्पयामि
- रौली के छींटे दें बोलें – गन्धकं समर्पयामि
- अक्षत चढ़ायें बोलें – अक्षतान समर्पयामि
- पुष्प, फूल और माला चढ़ायें बोलें – पुष्पं समर्पयामि
- धूप दिखाएँ बोलें – धूपम समर्पयामि
- दीपक दिखाएँ बोलें – दीपम दर्शयामि
- गुड़ या मिठाई चढ़ाएं बोलें – नैवेद्यम समर्पयामि
- जल के छींटे देकर आचमन कराएँ बोलें – आचमन समर्पयामि
- पान चढ़ाएं बोलें – ताम्बूलं समर्पयामि
- सुपारी या पैसे चढ़ाएं बोलें – दक्षिणा समर्पयामि
अब हाथ जोड़कर पंचदेव महाराज को नमस्कार कर यह दोहा बोले –
हे पंचलोकपाल देवता, करुँ विनय पुकार।
लज्जा मेरी राखिये, भरो धन भंडार ॥
॥ यमराज, श्रीकृष्ण, काली माता, भगवान शिव, रामदूत हनुमान और भगावन वामन की पूजा॥
बाएं हाथ में अक्षत लेकर, दाएं हाथ से अक्षत छह देवो पर अर्पित करते हुए छह देवो – यमराज, श्रीकृष्ण, काली माता, भगवान शिव, रामदूत हनुमान और भगावन वामन का आह्वान करे
अब सब पर
• पहले जल छिड़कें और बोलें – स्नानं समर्पयामि
• मौली चढ़ायें और बोलें – वस्त्रम समर्पयामि
• रौली के छींटे दें बोलें – गन्धकं समर्पयामि
• अक्षत चढ़ायें बोलें – अक्षतान समर्पयामि
• धूप दिखाएँ बोलें – धूपमाघ्रापयामी
• दीपक दिखाएँ बोलें – दीपम दर्शयामि
• गुड़ या मिठाई चढ़ाएं बोलें – नैवेद्यम समर्पयामि
• जल के छींटे देकर आचमन कराएँ बोलें – आचमनियां समर्पयामि
• पान चढ़ाएं बोलें – ताम्बूलं समर्पयामि
• सुपारी या पैसे चढ़ाएं बोलें – दक्षिणा समर्पयामि
॥ नरक चतुर्दशी व्रत कथा ॥
***आप अपनी श्रद्धा के अनुसार और भी पूजित देवता की आरती कर सकते है। ***
***पौराणिक मान्यताओ के अनुसार इस दिन को लेकर काफी व्रत कथाएँ प्रचलित है जिसके बारे में नीचे बताया गया है। ***
॥ नरक चतुर्दशी व्रत कथा ॥
प्राचीन समय में रन्तिदेव नामक राजा हुऐ करता थे। वह राजा अपने पूर्व जन्म में एक बड़े ही धर्मात्मा व ज्ञानी विद्धान थे। और इस जन्म में भी वह दान-पुण्य आदि करता था।
जब वह राजा बूढ़ा हो गया और मृत्यु का समय निकट आया तो यमदूत उसे नरक में ले जाने के लिए आऐ। राजा ने उन सभी यमदूतो से कहा की मैं तो दान दक्षिणा तथा सत्कर्म करता हॅू।
फिर भी मुझे नरक ही क्यों ले जा रहे हो।
राजा की बात सुनकर यमदूतो ने कहा की हे राजन एक बार तुम्हारे द्वार से भूख से व्याकुल ब्राह्मण लौट गया था। इसलिए तुम्हें नरक में जाना पड़ रहा है।
यमदूतो की बात सुनकर वह राजा उनके विनती करते हुऐ बोला की आप सभी मेरी आयु एक वर्ष और बढ़ा दीजिऐ।
यमदूतो ने बिना सोचे समझे राजा की प्रार्थना को स्वीकार करते हुऐ उसे एक वर्ष की आयु और प्रदान कर दी। जिसके बाद यमदूत तो यमलोक चले गऐ।
फिर राजा ने ऋषियों व मुनियों के पास जाकर इस पाप से मुक्ति पाने का उपाय पूछा। तो ऋषियों ने बताया की हे राजन यदि तुम कार्तिक मास की कृष्णपक्ष की चतुर्दशी का व्रत पूरे विधि-विधान से करोगे।
तथा भगवान कृष्ण जी की पूजा अर्चना करके ब्राह्मणों को भोजन कराकर यथा शक्ति दक्षिणा देकर अपने अपराध की क्षमा याचना करोगे। तो तुम्हे इस पाप से छुटकारा मिल जाऐगा।
जिसके बाद राजा ने कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी (चौदस) का व्रत पूरे विधिवत रूप से किया। और वह अपने जीवन में सुख भोगता हुआ मृत्यु के बाद वैकुंठ लोक को चला गया।
॥ रूप चतुर्दशी व्रत कथा॥
आपको बता दे की इस चतुर्दशी के व्रत वाले दिन सौन्दर्य रूप श्री कृष्ण जी की पूजा की जाती है।
पौराणिक मान्यताओ के अनुसार ऐसा करने से भगवान उस व्यक्ति को सुन्दरता प्रदान करते है।
एक समय भारतवर्ष में “हिरण्यगभ” नामक नगर में एक योगीराज रहते थे। एक दिन वह योगीराज अपने मन को एकाग्र करके भगवान की तपस्या में लीन होना चाहा।
और तपस्या के लिए समाधि में बैठ गऐ किन्तु कुछ दिनो के बाद ही उनके शरीर में कीड़े पड़ गऐ। उनके शरीर के अंग बहुत ज्यादा कुरूप हो गऐ।
इससे परेशान योगी की समाधी जल्द ही टूट गई। अपने शरीर की दुर्दशा देखकर योगी को बड़ा दुःख हुआ।
उसी समय नारदमुनि वहॉ से जा रहे थे तो उस योगिराज ने नारद जी से पूछा की मैं समाधि मैं था तब मेरी दशा ऐसी क्यों हो गई।
नारद जी बोले – हे योगिराज, आपने प्रभु चिंतन तो किया लेकिन देह आचार नहीं किया। क्योंकि यह कैसे करते है आपको पता ही नहीं है।
समाधी में लीन होने से पहले देह आचार कर लेते तो आपकी यह दशा नहीं होती।
तब योगीराज ने इसका देह आचार के विषय में नारदजी से पूछा।
नारदजी बोले देह आचार के विषय में जानने से अब कोई लाभ नही है। पहले तुम्हे जो मैं बताता हॅू तुम उसे करो, फिर देह आचार के बारे में बताऊगा।
हे योगीराज तुम इस बार आने वाली कार्तिक मास की कृष्णपक्ष की चतुर्दशी को व्रत रखकर भगवान विष्णु जी की पूजा करना। यदि तुम ऐसा करोगे तो तुम्हारा शरीर पहले जैसा हो जाऐगा।
ऐसा कहकर नारद जी तो वहा से चले गऐ। जिससे बाद वह योगीराज कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष की चौदस को पूरे विधिवत रूप से व्रत किया।
तथा पूरे श्रद्धा भाव से भगवान विष्णु (कृष्णजी) की पूजा अर्चना करी। ऐसा करने से उस योगी का शरीर पहले की भांति हो गया। इसी कारण इस चौदस को रूप चतुर्दशी भी कहा जाता है।
॥ वामन अवतार – यमराज की पूजा॥
जब भगवान विष्णु ने वामन अवतार लेकर दैत्यराज बलि से तीन पग धरती मांगकर तीनों लोकों को नाप लिया तो राजा बलि ने उनसे प्रार्थना की- ‘हे प्रभु ! मैं आपसे एक वरदान मांगना चाहता हूं।
यदि आप मुझसे प्रसन्न हैं तो वर देकर मुझे कृतार्थ कीजिए। तब भगवान वामन ने पूछा- क्या वरदान मांगना चाहते हो, राजन?
दैत्यराज बलि बोले- प्रभु ! आपने कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी से लेकर अमावस्या की अवधि में मेरी संपूर्ण पृथ्वी नाप ली है।
इसलिए जो व्यक्ति मेरे राज्य में चतुर्दशी के दिन यमराज के लिए दीपदान करे, उसे यम यातना नहीं होनी चाहिए और जो व्यक्ति इन तीन दिनों में दीपावली का पर्व मनाए, उनके घर को लक्ष्मीजी कभी न छोड़ें।
राजा बलि की प्रार्थना सुनकर भगवान वामन बोले- राजन ! मेरा वरदान है कि जो चतुर्दशी के दिन नरक के स्वामी यमराज को दीपदान करेंगे,
उनके पितर कभी नरक में नहीं रहेंगे और जो व्यक्ति इन तीन दिनों में दीपावली का उत्सव मनाएंगे, उन्हें छोड़कर मेरी प्रिय लक्ष्मी अन्यत्र न जाएंगी।
भगवान वामन द्वारा राजा बलि को दिए इस वरदान के बाद से ही नरक चतुर्दशी के दिन यमराज के निमित्त व्रत, पूजन और दीपदान का प्रचलन आरंभ हुआ, जो आज तक चला आ रहा है।
॥ नरकासुर वध व्रत कथा ॥
नरक चतुर्दशी का पर्व मनाने के पीछे कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। उन्हीं में से एक कथा नरकासुर वध की भी है जो इस प्रकार है-
प्रागज्योतिषपुर नगर का राजा नरकासुर नामक दैत्य था। उसने अपनी शक्ति से इंद्र, वरुण, अग्नि, वायु आदि सभी देवताओं को परेशान कर दिया। वह संतों को भी त्रास देने लगा।
महिलाओं पर अत्याचार करने लगा। जब उसका अत्याचार बहुत बढ़ गया तो देवता व ऋषिमुनि भगवान श्रीकृष्ण की शरण में गए।
भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें नरकासुर से मुक्ति दिलाने का आश्वासन दिया, लेकिन नरकासुर को स्त्री के हाथों मरने का श्राप था।
इसलिए भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा को सारथी बनाया तथा उन्हीं की सहायता से नरकासुर का वध किया।
इस प्रकार श्रीकृष्ण ने कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को नरकासुर का वध कर देवताओं व संतों को उसके आतंक से मुक्ति दिलाई।
उसी की खुशी में दूसरे दिन अर्थात कार्तिक मास की अमावस्या को लोगों ने अपने घरों में दीएं जलाए। तभी से नरक चतुर्दशी तथा दीपावली का त्योहार मनाया जाने लगा।