सकट चौथ | तिल चौथ | माघ कृष्णा चतुर्थी व्रत कथा | Sakat Chauth | Til Chauth | Magh Krishna Chaturthi Vrat Katha

Oct 25, 2023 | चौथ माता व्रत कथाएँ

॥ चौथ कथा का महत्त्व ॥

* यहाँ भारत की सभी प्रसिद्व सकट चौथ कथाओ को विस्तार पूर्वक लिखा गया है। आप अपने स्थान में प्रसिद्व किसी भी कथा को पढ़ सकते है। चौथ के दिन चौथ की कथा सुनने के साथ विनायक जी की कहानी भी कही और सुनी जाती है।
इस दिन गणेश जी तथा चौथ माता की पूजा की जाती है। भगवान को भोग लगाया जाता है। शाम के समय चाँद निकलने पर चाँद को अर्ध्य दिया जाता है। उसके बाद व्रत खोल जाता है। *

तिल चौथ व्रत हर साल हिंदू पंचांग के अनुसार माघ मास की कृष्णा चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। इसे माही चौथ व सकट चौथ के नाम से भी जाना जाता है। सकट शब्द संकट का अपभ्रंश हैं।
सकट चौथ व्रत के दिन स्त्रियां अपने संतान की दीर्घायु एवं सफलता के लिये व्रत रखती हैं। व्रत के फलस्वरूप विघ्न हरण श्री गणेश व्रती स्त्रियों के संतानों को रिद्धि-सिद्धि प्रदान करते हैं।

ऐसी मान्यता है की श्री गणेश जी ने इस दिन देवताओं का संकट दूर किया था । तब शिवजी ने प्रसन्न होकर गणेश जी को आशीर्वाद देकर कहा कि आज के दिन को लोग संकट मोचन के रूप में मनाएंगे।
जो भी इस दिन व्रत करेगा उसके सब संकट इस व्रत के प्रभाव से दूर हो जाएंगे। अतः इसे संकट चौथ भी कहते हैं।
इस दिन श्री गणेश जी व सकट चौथ माता को पूजा में नैवेद्य के रूप में तिल तथा गुड़ से बने हुए लड्डू, ईख, शकरकंद, अमरूद, गुड़ तथा घी को अर्पित करने की महिमा है, अतः सकट चौथ को तिल चौथ तथा तिलकुट चौथ के नाम से भी जाना जाता है।

॥ पूजन सामग्री ॥

पूजन सामग्री को व्यवस्थित रूप से ( पूजन शुरू करने के पूर्व ) पूजा स्थल पर जमा कर रख लें, जिससे पूजन में अनावश्यक व्यवधान न हो।
यदि इनमे से कुछ सामग्री ना जुटा सकें तो कोई बात नहीं, जितनी सामग्री सहर्ष जुटा सकें उसी से भक्ति भावना से पूजा करें। क्योंकि कहा जाता है भगवान भावना से प्रसन होते है, सामग्री से नहीं।

  • चौकी, रोली, मौली, मेहंदी, अक्षत ( साबुत चावल )
  • दीपक, शुद्ध देशी घी, रुई, धूपबत्ती, फूल, अष्टगंध
  • अगरबत्ती, कपूर, जल का कलश।
  • प्रसाद के लिए गुड़, साबुत तिल, तिल कुट्टा, फल, दूध, मिठाई, नारियल, पंचामृत, सूखे मेवे, शक्कर, पान में से जो भी हो लें।
  • दक्षिणा।

॥ पूजन का मंडप ॥

पूजन को शुरु करने से पहले मंडप तैयार कर लें।

  • सबसे पहले पूजा के स्थान को साफ कर लें।
  • अब पूर्व या उत्तर की ओर मुख कर बैठे।
  • पूजा वाले स्थान को साफ करके चौकी स्थापित करनी चाहिए।
  • चौकी पर शुभ चिह्न स्वस्तिक बनाएं।
  • चौकी पर साफ लाल रंग का कपड़ा बिछाएं।
  • अब भगवान श्री गणेश एवं चौथ माता की तस्वीर रखें। यदि चौथ माता बनवाई हुए नहीं हो तो चाँदी की कोई वस्तु जैसे अंगूठी या सिक्का आदि को चौथ माता के रूप में रखकर पूजा की जा सकती है।
  • अब बायी ओर दीपक रखें।
  • चौकी के सामने पूजन की थाली जल भरकर कलश रखें।
  • पूजन की थाली में रोली से एक स्वास्तिक बनाते है। इस थाली में ही, फूल, मिठाई, रोली, मौली, सुपारी, पान, चावल, कपूर, धूप, अगरबत्ती, एक दीपक, जल कलश रखे।

॥ पूजा विधि ॥

1. पहले गणेश जी की पूजा करें।
2. जल का छींटा देकर स्नान कराएं।
3. फिर रोली का टीका लगाकर अक्षत अर्पित करें, लच्छा चढ़ायें।
4. पुष्प या फूल माला अर्पित करें।
5. दक्षिणा के रूप में कुछ पैसे चढ़ाएं।
6. तिलकुट का लडडू बनाकर गणेश जी को भोग लगाये। श्रद्धा पूर्वक नमन करें।
7. इसी प्रकार चौथ माता की पूजा करें। नमन करें।
8. जल का छींटा देकर स्नान कराएं।
9. फिर रोली का टीका लगाकर अक्षत अर्पित करें, लच्छा चढ़ायें।
10. पुष्प या फूल माला अर्पित करें।
11. दक्षिणा के रूप में कुछ पैसे चढ़ाएं।
12. फिर हाथ में तिल , गुड़ व आखे (साबुत गेंहू ) लेकर तिल चौथ की कहानी सुने।
13. फिर गणेशजी की कहानी सुने ।
14. चौथ माता का गीत गाएँ।
15. गणेश जी और अपने इष्ट देव की आरती गाएँ।
16. इस प्रकार पूजा संपन्न होती है।

  • अब थोड़ा तिलकुट्टा प्रसाद के रूप में खाएं।
    कथा सुनते समय हाथ में लिए गए तिल , गुड़ और आखे से तथा लोटे के पानी से चाँद उगे तब अर्घ्य देना चाहिए।
  • तिलकुट्टे पर रूपये रख कर बायना निकाल कर सासू माँ को दें। पैर छूकर उनका आशीर्वाद लें। उनकी अनुपस्थिति में बायना जेठानी या ननद को दिया जा सकता है। इसके बाद पहले तिलकुट्टा और फिर खाना खाएँ ।
  • दूसरे दिन चौथ माता या चाँदी की वस्तु जो भी आपने पूजा में रखी थी , वह संभालकर अपने पास रख लें तथा बाकि सभी सामान मंदिर में या ब्राह्मण को दे दें।

तिल चौथ, माही चौथ, सकट चौथ व्रत कथा॥

॥ सकट चौथ व्रत कथा (सेठ–सेठानी)-1॥

किसी शहर में एक सेठ–सेठानी रहते थे। उनके कोई भी संतान नहीं थी। इससे दोनों बहुत दुःखी रहते थे।

एक बार सेठानी ने पड़ोसियों की स्त्रियों को तिल चौथ व्रत करते हुये देखा तो पूछा आप किस व्रत को कर रही हैं। इसके करने से क्या लाभ होता है। औरतें बोली कि यह चौथ माता का व्रत है। इसको करने से धन–वैभव, पुत्र, सुहाग आदि सब कुछ प्राप्त होता है।
घर में सुख–शांति का वास होता है। तब सेठानी बोली कि यदि मेरे पुत्र हो जाए तो मैं चौथ माता का व्रत करके सवा किलो तिल कुट्टा चढ़ाऊंगी।

कुछ दिन बाद में वह गर्भवती हो गयी, तब भी भोग नहीं लगाया और चौथ माता से बोली कि हे चौथ माता यदि मेरे पुत्र हो जाए तो मैं ढ़ाई किलो का तिल कुट्टा चढ़ाऊंगी। गौरी पुत्र गणेश जी व चौथ माता की कृपा से उसको पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। पर उसने तिल कुट्टे का भोग नहीं लगाया।
फिर जब वह लड़का बड़ा हुआ तो सेठानी बोली कि इस लड़के का विवाह तय हो जाये तो सवा पाँच किलो का तिल कुट्टा चढ़ाऊँगी। भगवान गजानन्द व तिल चौथ माता की कृपा से सेठानी के पुत्र का रिश्ता अच्छे कुल की कन्या से हो गया और लग्न मण्डप में फेरे होने लगे।
लेकिन दुर्भाग्यवश सेठानी फिर भी चौथ माता के तिल कुट्टे का भोग लगाना भूल गयी। तब चौथ माता व श्री भगवान गणेश उस पर कुपित हो गये। अभी फेरों के वक्त में तीन ही फेरे हुये कि चौथ माता आयी व दूल्हे राजा को उठा के ले गई और गांव के बाहर पीपल के पेड़ पर छिपा दिया। सब लोग अचम्भे में रह गये, कि एकाएक दूल्हा कहां चला गया ?

कुछ दिन बाद वह लड़की गणगौर पूजने जाते हुये उस पेड़ के पास से निकली तो पेड़ पर से दूल्हा बना हुआ लड़का बोला ” आओ आओ मेरी अधब्याही पत्नी आओ। ” तो वह लड़की भागी हुई अपने घर गयी और अपनी माता को सब घटना कह सुनायी।
यह समाचार सुनते ही सभी परिवार जन वहां पहुँचे और देखा कि यह तो वही जमाई राजा है, जिसने हमारी बिटिया से अधफेरे खाये थे और उसी स्वरूप में पीपल पर बैठें है।
तो सभी ने पूछा कि आप इतने दिनों से यहां क्यों बैठे हो, इसका क्या कारण है। जमाई राजा बोले मैं तो यहाँ चौथ माता के गिरवी बैठा हूँ, मेरी माता श्री से जाकर कहो कि वह मेरे जन्म से लेकर अभी तक के बोले हुये सारे तिल कुट्टे का भोग लगाकर और चौथ माता से प्रार्थना करके क्षमा याचना करें।
जिससे माता की कृपा से मुझे झुटकारा मिलेगा। तब लड़के की सास ने अपनी समधन को जाकर सारा हाल सुनाया।

तब दोनों समधनों ने सवा–सवा मण का तिल का तिल कुट्टा श्री संकट सुवन गणपति भगवान व चौथ माताजी को चढ़ाया विधि–विधान से पूजन करके तिलकुट चौथ की कहानी सुनी। तब चौथ माता ने प्रसन्न होकर हर्षित होती हुई व दूल्हे राजा को वहां से उठाकर फिर वहीं फेरों के स्थान पर लाकर बैठा दिया।
वहाँ वर–वधू के सात फेरे पूरे हुये, और वर–वधू सकुशल अपने घर के लिये विदा हुए।

चौथ माता की कृपा से दोनों परिवारों में सभी तरह से अमन–चैन व खुशहाली हुई।
हे ! चौथ माता, जैसे सेठ और सेठानी को दिया वैसे सबको देना। तिल चौथ की कहानी कहने और सुनने वाले और पूरे परिवार को देना।

॥ सकट चौथ व्रत कथा (राजा हरिश्चंद्र )-2॥

सकट चौथ की कहानी–पौराणिक कथा के अनुसार सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र के शासनकाल में कुम्हार था।
वह मिट्टी के बर्तन बनाने का कार्य करता था एक बार तमाम कोशिशों के बावजूद उससे बर्तन नहीं रहे थे और बर्तन कच्चे रह रहे थे।
उसने यह बात जाकर तांत्रिक को बताई। तांत्रिक ने कहा कि तुम्हारे बर्तन तब ही बनेंगे जब तुम एक छोटे बच्चे की बलि दोगे।

तांत्रिक के बताए अनुसार कुम्हार ने एक छोटे बच्चे को पकड़ कर भट्ठी में डाल दिया। जिस दिन कुम्हार ने बच्चे की बलि दी वह संकट चौथ का दिन था।
उस बच्चे की मां गणेश जी की भक्त थी। जब उसको उसका बालक नहीं मिला तो उसने गणेश जी के समक्ष जाकर सच्चे मन से प्रार्थना की, कि मेरा लड़का वापस आ जाए।

उधर जब कुमार ने सुबह उठकर देखा तो भट्टी में बर्तन तो पक गए थे लेकिन साथ में वह बच्चा भी सुरक्षित बैठा था। इस घटना से कुम्हार बहुत डर गया और उसने जाकर राजा को सारी बात बताई।
इसके बाद राजा ने उस बच्चे और उसकी मां को बुलवाया। तब मां ने संकटों को दूर करने वाले संकट चौथ के व्रत की महिमा का वर्णन किया और कहां की विघ्न विनायक श्री गणेश जी की कृपा से ही मेरा लड़का वापस आया है।
तभी से महिलाएं अपने संतान और परिवार के सुख सौभाग्य और लंबी आयु के लिए संकट चौथ का व्रत करती है।

हे गणेश जी महाराज ! आपने जैसे लड़के की मां पर कृपा की वैसी सब पर करना संकट चौथ की कहानी कहने और सुनने वाले सब पर करना।

॥ सकट चौथ व्रत कथा (माता लक्ष्मी विवाह)-3 ॥

एक समय भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी के विवाह की तैयारियां चल रही थीं, इसमें सभी देवताओं को निमंत्रित किया गया लेकिन विघ्नहर्ता गणेश जी को निमंत्रण नहीं भेजा गया।
सभी देवता अपनी पत्नियों के साथ विवाह में आए लेकिन गणेश जी उपस्थित नहीं थे, ऐसा देखकर देवताओं ने भगवान विष्णु से इसका कारण पूछा।

उन्होंने कहा कि भगवान शिव और पार्वती को निमंत्रण भेजा है, गणेश अपने माता-पिता के साथ आना चाहें तो आ सकते हैं। हालांकि उनको सवा मन मूंग, सवा मन चावल, सवा मन घी और सवा मन लड्डू का भोजन दिनभर में चाहिए।
यदि वे नहीं आएं तो अच्छा है। दूसरे के घर जाकर इतना सारा खाना-पीना अच्छा भी नहीं लगता।

इस दौरान किसी देवता ने कहा कि गणेश जी अगर न आएं तो उनको घर के देखरेख की जिम्मेदारी दी जा सकती है।
उनसे कहा जा सकता है कि आप चूहे पर धीरे-धीरे जाएंगे तो बारात आगे चली जाएगी और आप पीछे रह जाएंगे, ऐसे में आप घर की देखरेख करें।

योजना के अनुसार विष्णु जी के निमंत्रण पर गणेश जी वहाँ प्रकट हुए। उन्हें घर की देखभाल की जिम्मेदारी दी गई थी।
बारात घर से निकल गई और यह देखकर कि गणेश जी दरवाजे पर बैठे हैं, नारद जी ने इसका कारण पूछा, तो उन्होंने कहा कि भगवान विष्णु ने उनका अपमान किया है।

तब नारद जी ने गणेश जी को एक सुझाव दिया।
गणपति ने सुझाव के तहत अपनी चूहों की सेना को जुलूस के सामने भेजा, जिसने पूरे रास्ते को खोदा। परिणामस्वरूप देवताओं के रथों के पहिए रास्ते में फंस गए।

जुलूस आगे नहीं बढ़ रहा था। किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करें, तब नारद जी ने गणेश जी को बुलाने का उपाय दिया ताकि देवताओं के विघ्न दूर हो जाएं।
भगवान शिव के आदेश पर नंदी गजानन लेकर आए। देवताओं ने गणेश जी की पूजा की, तब गड्ढों से रथ के पहिए निकले, लेकिन कई पहिए टूट गए।

उस समय पास में एक लोहार काम कर रहा था, उसे बुलाया गया। अपना काम शुरू करने से पहले, उन्होंने अपने मन में भगवान गणेश को याद किया और सभी रथों के पहियों को ठीक कर दिया।

उन्होंने देवताओं से कहा कि ऐसा लगता है कि आप सभी ने गणेश की पूजा नहीं की है, शुभ कार्य शुरू करने से पहले बाधा, तभी ऐसा संकट आया है।
आप सभी गणेश जी का ध्यान करके आगे बढ़ें, आपके सारे काम बन जाएंगे।

देवताओं ने गणेश जी की जय-जयकार की और बारात सकुशल अपने गंतव्य पर पहुंच गई। भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी का विवाह संपन्न हुआ।

॥ सकट चौथ व्रत कथा (देवरानी-जेठानी)-4 ॥

एक शहर में देवरानी-जेठानी रहती थी। जेठानी अमीर थी और देवरानी गरीब थी। देवरानी गणेश जी की भक्त थी। देवरानी का पति जंगल से लकड़ी काट कर बेचता था और अक्सर बीमार रहता था।
देवरानी, जेठानी के घर का सारा काम करती और बदले में जेठानी बचा हुआ खाना, पुराने कपड़े आदि उसको दे देती थी। इसी से देवरानी का परिवार चल रहा था।

माघ महीने में देवरानी ने तिल चौथ का व्रत किया। 5 आने का तिल व गुड़ लाकर तिलकुट्टा बनाया।
पूजा करके तिल चौथ की कथा सुनी और तिलकुट्टा छींके में रख दिया और सोचा की चांद उगने पर पहले तिलकुट्टा और उसके बाद ही कुछ खाएगी।

कथा सुनकर वह जेठानी के यहां चली गई। खाना बनाकर जेठानी के बच्चों से खाना खाने को कहा तो बच्चे बोले मां ने व्रत किया हैं और मां भूखी हैं। जब मां खाना खायेगी हम भी तभी खाएंगे।
जेठजी को खाना खाने को कहा तो जेठजी बोले ” मैं अकेला नही खाऊंगा, जब चांद निकलेगा तब सब खाएंगे तभी मैं भी खाऊंगा। “
जेठानी ने उसे कहा कि आज तो किसी ने भी अभी तक खाना नहीं खाया तुम्हें कैसे दे दूं? तुम सुबह सवेरे ही बचा हुआ खाना ले जाना।

देवरानी के घर पर पति, बच्चे सब आस लगाए बैठे थे कि आज तो त्योहार हैं इसलिए कुछ पकवान आदि खाने को मिलेगा। परन्तु जब बच्चों को पता चला कि आज तो रोटी भी नहीं मिलेगी तो बच्चे रोने लगे।
उसके पति को भी बहुत गुस्सा आया कहने लगा सारा दिन काम करके भी दो रोटी नहीं ला सकती तो काम क्यों करती हो ? पति और अपने बच्चो की ये अवस्था देख कर । वह बेचारी गणेश जी को याद करती हुई रोते-रोते पानी पीकर सो गई।

उस दिन गणेश जी देवरानी के सपने में आए और कहने लगे “सो रही है या जाग रही है।”
वह बोली “कुछ सो रही हूं, कुछ जाग रही हूं।”
गणेश जी बोले “भूख लगी हैं, कुछ खाने को दो”
देवरानी बोली “क्या दूं , मेरे घर में तो अन्न का एक दाना भी नहीं हैं। जेठानी बचा खुचा खाना देती थी आज वह भी नहीं मिला। पूजा का बचा हुआ तिल कुट्टा छींके में पड़ा हैं वही खा लो।”

तिलकुट्टा खाने के बाद गणेश जी बोले- “हाथ कहा धोए”
वह बोली, यह पड़ा घर, जहां इच्छा हो वहां हाथ धो लो।

फिर गणेश जी बच्चे की तरह बोले अब हाथ कहां पोंछू ?
नींद में मग्न अब देवरानी को बहुत गुस्सा आया कि कब से तंग किए जा रहे हैं, सो बोली, “मेरे सर पर पोंछो और कहा पोछोंगे।”

सुबह जब देवरानी उठी तो यह देखकर हैरान रह गई कि पूरा घर हीरे-मोती से जगमगा रहा है, सिर पर जहां विनायक जी पोंछनी कर गए थे वहां हीरे के टीके व बिंदी जगमगा रहे थे।

उस दिन देवरानी, जेठानी के यहां काम करने नहीं गई। बड़ी देर तक राह देखने के बाद जेठानी ने बच्चों को देवरानी को बुलाने भेजा।
जेठानी ने सोचा कल खाना नहीं दिया इसीलिए शायद देवरानी बुरा मान गई है। बच्चे बुलाने गए और बोले चाची चलो मां ने बुलाया है सारा काम पड़ा है।
देवरानी ने जवाब दिया अब उसकी जरूरत नहीं है। गणेश जी के आशीष से घर में सब भरपूर है।

बच्चो ने घर जाकर मां को बताया कि चाची का तो पूरा घर हीरे मोतियों से जगमगा रहा है। जेठानी दौड़ती हुई देवरानी के पास आई और पूछा कि यह सब हुआ कैसे ?
देवरानी ने उसके साथ जो हुआ वो सब कह डाला।

घर लौटकर जेठानी ने ढ़ेर सारा घी डालकर चूरमा बनाया और छीकें में रखकर और सो गई। रात को चौथ विनायक जी सपने में आए कहने लगे, भूख लगी है, क्या खाऊं ?
जेठानी ने कहा, हे गणेश जी महाराज, मेरी देवरानी के यहां तो आपने सूखा तिलकुट्टा खाया था, मैने तो झरते घी का चूरमा बनाकर आपके लिए छींके में रखा हैं, फल और मेवे भी रखे हैं जो चाहें खा लीजिए।

बालस्वरूप गणेश जी बोले अब “हाथ कहा धोए”
जेठानी बोली, उसके यहां तो टूटी फूटी झोपड़ी थी मेरे यहां तो कंचन के महल हैं जहां इच्छा हो वहां हाथ धो लो।
फिर गणेश जी ने पूछा, अब हाथ कहां पोंछू ?
जेठानी बोली, मेरे ललाट पर बड़ी सी बिंदी लगाकर पोंछ लो ।

धन की भूखी जेठानी सुबह बहुत जल्दी उठ गई। सोचा घर हीरे-जवाहरात से भर चूका होगा पर देखा तो पूरे घर में गन्दगी फैली हुई थी। तेज बदबू आ रही थी।
उसके सिर पर भी बहुत सी गंदगी लगी हुई थी। उसने कहा “हे गणेश जी महाराज, यह आपने क्या किया।”

मुझसे रूठे और देवरानी पर टूटे। जेठानी ने घर और की सफाई करने की बहुत ही कोशिश करी परन्तु गंदगी और ज्यादा फैलती गई।
जेठानी के पति को मालूम चला तो वह भी बहुत गुस्सा हुआ और बोला तेरे पास इतना सब कुछ था फिर भी तेरा मन नहीं भरा।

परेशान होकर चौथ के गणेशजी से मदद की विनती करने लगी। गणेश जी ने कहा, देवरानी से जलन के कारण तूने जो किया था यह उसी का फल है। अब तू अपने धन में से आधा उसे दे देगी तभी यह सब साफ होगा।

उसने आधा धन बांट दिया किन्तु मोहरों की एक हांडी चूल्हे के नीचे गाढ़ रखी थी। उसने सोचा किसी को पता नहीं चलेगा और उसने उस धन को नहीं बांटा ।
उसने कहा “हे श्री गणेश जी, अब तो अपना यह बिखराव समेटो”
वे बोले, पहले चूल्हे के नीचे गाढ़ी हुई मोहरों की हांडी सहित ताक में रखी दो सुई के भी दो हिस्से कर कर।
इस प्रकार गजानन ने बाल स्वरूप में आकर सुई जैसी छोटी चीज का भी बंटवारा किया और अपनी माया समेटी।

हे गणेश जी महाराज, जैसी आपने देवरानी पर कृपा की वैसी सब पर करना। कहानी कहने वाले व सुनने वाले सब पर कृपा करना। लेकिन जेठानी को जैसी सजा दी वैसी किसी को मत देना।

॥ गणेश जी की कथा ॥

एक बार गणेश जी एक छोटे बालक के रूप में चिमटी में चावल और चमचे में दूध लेकर निकले। वो हर किसी से कह रहे थे कि कोई मेरी खीर बना दो, कोई मेरी खीर बना दो।
कोई भी उनपर ध्यान नहीं दे रहा था बल्कि लोग उन पर हँस रहे थे। वे लगातार एक गांव के बाद, दूसरे गांव इसी तरह चक्कर लगाते हुए पुकारते रहे, पर कोई खीर बनाने के लिए तैयार नहीं था। सुबह से शाम हो गई गणेश जी लगातार घूमते रहे।

शाम के वक्त एक बुढ़िया अपनी झोपड़ी के बाहर बैठी हुई थी, तभी गणेश जी वहां से पुकारते हुए निकले कि “कोई मेरी खीर बना दे, कोई मेरी खीर बना दे”, बुढ़िया बहुत कोमल ह्रदय वाली स्त्री थी।
उसने कहा “बेटा, मैं तेरी खीर बना देती हूं।” वह छोटा सा बर्तन चढ़ाने लगी तब गणेश जी ने कहा कि दादी मां छोटा सा बर्तन मत चढ़ाओ तुम्हारे घर में जो सबसे बड़ा बर्तन हो वही चढ़ा दो।
बुढ़िया ने वही चढ़ा दिया। वह देखती रह गई कि वह जो थोड़े से चावल उस बड़े बर्तन में डाली थी वह तो पूरा भर गया है। गणेश जी ने कहा “दादी मां मैं स्नान करके आता हूं तब तक तुम खीर बना लो। मैं वापस आकर खाऊँगा।”

खीर तैयार हो गई तो बुढ़िया के पोते पोती खीर खाने के लिए रोने लगे बुढ़िया ने कहा गणेश जी तेरे भोग लगना कहकर चूल्हे में थोड़ी सी खीर डाली और कटोरी भर भरकर बच्चों को दे दी।
अभी भी गणेश जी नहीं आए थे। बुढ़िया को भी भूख लग रही थी वह भी एक कटोरा खीर का भरकर के कीवाड़ के पीछे बैठकर एक बार फिर कहा कि गणेश जी आपके भोग लगे कहकर खाना शुरु कर दिया तभी गणेश जी आ गए।

बुढ़िया ने कहा “आजा रे बेटा खीर खा ले मैं तो तेरी ही राह देख रही थी”, गणेश जी ने कहा “दादी मां मैंने तो खीर पहले ही खा ली”
बुढ़िया ने कहा “कब खाई ?” गणेश जी ने कहा “जब तेरे पोते पोती ने खाई तब खाई थी और अब तूने खाई तो मेरा पेट पूरा ही भर गया।”

बुढ़िया ने पूछा, “मैं इतनी सारी खीर का क्या करूंगी ?” इस पर गणपति जी बोले, “सारे गांव को दावत दे दो”
बुढ़िया ने बड़े प्यार से, मन लगाकर खीर बनाई थी, खीर की भीनी-भीनी, मीठी-मीठी खुशबू चारों दिशाओं में फैल गई थी
वह हर घर में जाकर खीर खाने का न्योता देने लगी। लोग उस पर हँस रहे थे। बुढ़िया के घर में खाने को दाना नहीं और यह सारे गांव को खीर खाने की दावत दे रही है।
लोगों को कुतूहल हुआ और खीर की खुशबू से लोग खिंचे चले आए। लो ! सारा गाँव बुढ़िया के घर में इकट्ठा हो गया।

बुढ़िया ने पूरी नगरी जीमा दी फिर भी बर्तन पूरा ही भरा था, राजा को पता लगा तो बुढ़िया को बुलाया और कहा क्यों री बुढ़िया ऐसा बर्तन तेरे घर पर अच्छा लगे या हमारे घर पर अच्छा लगे ।
बुढ़िया ने कहा “राजा जी आप ले लो। “राजा जी ने खीर का बर्तन महल में मंगा लिया, लाते ही खीर में कीड़े, मकोड़े, बिच्छू हो गए और दुर्गंध आने लगी।

यह देखकर राजा ने बुढ़िया से कहा, “बुढ़िया बर्तन वापस ले जा, जा तुझे हमने दिया।”
बुढ़िया ने कहा “राजा जी आप देते तो पहले ही कभी दे देते यह बर्तन तो मुझे मेरे गणेश जी ने दिया है” बुढ़िया ने बर्तन वापस लिया, लेते ही सुगंधित की हो गई ।
घर आकर बुढ़िया ने गणेश जी से कहा, बची हुई खीर का क्या करें ?
गणेश जी ने कहा “झोपड़ी के कोने में खड़ा खोदकर गाड़ दो । उसी जगह सुबह उठकर वापस खोदेगी तो धन के दो चरे मिलेंगे।”

ऐसा कहकर गणेश जी अंतर्ध्यान हो गए जाते समय झोपड़ी के लात मारते हुए गये तो झोपड़ी के स्थान पर महल हो गया। सुबह बुढ़िया ने फावड़ा लेकर घर को खोद ने लगी तो टन टन करते दो धन के चरे निकल आए ।

वह बहुत खुश थी। उसकी सारी दरिद्रता दूर हो गई और वह आराम से रहने लगी। उसने गणपति जी का एक भव्य मंदिर बनवाया और साथ में एक बड़ा सा तालाब भी खुदवाया।
इस तरह उसका नाम दूर-दूर तक प्रसिद्ध हो गया। उस जगह वार्षिक मेले लगने लगे। लोग गणेश जी की कृपा प्राप्त करने के लिए, उस स्थान पर पूजा करने और मान्यताएं मानने के लिए आने लगे।
गणेश जी सब की मनोकामनाएं पूरी करने लगे.

गणेश जी जैसा आपने बुढ़िया को दिया वैसा सबको देना विनायक जी की कहानी कहने वाले और आसपास के सुनने वाले सब को देना।

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