सभी विषय

एकादशी व्रत कथाएँ

चौथ माता व्रत कथाएँ

तीज व्रत कथाएँ

देव चालीसा संग्रह

देव आरती संग्रह

दीपावली-लक्ष्मीपूजन

देवी आरती संग्रह

देवी चालीसा संग्रह

नवदुर्गा और नवरात्रि

श्री सत्यनारायण व्रत कथा

व्रत कथाएँ

प्रदोष व्रत कथाएँ

सरल पूजन विधि

साप्ताहिक व्रत कथा

Athshri Logo
a

श्री सत्यनारायण व्रत कथा-द्वितीय अध्याय | Shri Satyanarayan Vrat Katha-Dwitiya Adhyay

श्री सत्यनारायण व्रत कथा

Satyanarayan-Vrat-Katha-2

श्री सत्यनारायण व्रत कथा-द्वितीय अध्याय | Shri Satyanarayan Vrat Katha-Dwitiya Adhyay

सूत जी बोले: हे ऋषियों ! जिसने पहले समय में इस व्रत को किया था उसका इतिहास कहता हूँ, ध्यान से सुनो।

एक समय की बात है, जब सत्यनारायण भगवान की महिमा का प्रचार पृथ्वी पर होने लगा था, तब एक गरीब ब्राह्मण सुंदर काशीपुरी नगरी में निवास करता था। वह ब्राह्मण बहुत ही निर्धन था और दिन-रात अपनी निर्धनता के कारण दुखी रहता था। उसे यह चिंता सताती रहती थी कि वह अपने और अपने परिवार का पालन-पोषण कैसे करेगा।

एक दिन वह ब्राह्मण भोजन की तलाश में नगर में घूम रहा था। उसी समय भगवान विष्णु के परम भक्त नारद मुनि वहां आए। ब्राह्मण ने नारद मुनि को प्रणाम किया और अपने कष्टों का कारण बताया। नारद मुनि ने ब्राह्मण से कहा, “हे ब्राह्मण! यदि तुम सत्यनारायण भगवान का व्रत करोगे तो तुम्हारे सभी दुख दूर हो जाएंगे और तुम्हें धन, सुख, और समृद्धि प्राप्त होगी।”

ब्राह्मण मन ही मन सोचने लगा कि सत्यनारायण भगवान का व्रत मैं जरुर करूँगा।

यह निश्चय करने के बाद उसे रात में नीँद नहीं आई। वह सवेरे उठकर सत्यनारायण भगवान के व्रत का निश्चय कर भिक्षा के लिए चला गया। उस दिन निर्धन ब्राह्मण को भिक्षा में बहुत धन मिला।

जिससे उसने बंधु-बाँधवों के साथ मिलकर श्री सत्यनारायण भगवान का व्रत संपन्न किया।
भगवान सत्यनारायण का व्रत संपन्न करने के बाद वह निर्धन ब्राह्मण सभी दुखों से छूट गया और अनेक प्रकार की संपत्तियों से युक्त हो गया।

उसी समय से यह ब्राह्मण हर माह इस व्रत को करने लगा। इस तरह से सत्यनारायण भगवान के व्रत को जो मनुष्य करेगा वह सभी प्रकार के पापों से छूटकर मोक्ष को प्राप्त होगा।

जो मनुष्य इस व्रत को करेगा वह भी सभी दुखों से मुक्त हो जाएगा।
सूत जी बोले कि इस तरह से नारद जी से नारायण जी का कहा हुआ श्री सत्यनारायण व्रत को मैने तुमसे कहा।
हे विप्रो ! मैं अब और क्या कहूँ?

ऋषि बोले : हे मुनिवर ! संसार में उस विप्र से सुनकर और किस-किस ने इस व्रत को किया, हम सब इस बात को सुनना चाहते हैं। इसके लिए हमारे मन में श्रद्धा का भाव है।

सूत जी बोले : हे मुनियों ! जिस-जिस ने इस व्रत को किया है, वह सब सुनो !

प्राचीन समय में, एक गरीब लकड़हारा जंगल में लकड़ी काटकर अपना गुजारा करता था। वह बहुत ही निर्धन था और उसे अपनी आजीविका के लिए दिन-रात कठिन परिश्रम करना पड़ता था।

एक दिन, लकड़हारा जंगल में लकड़ी काटने गया और उसने वहां कुछ ब्राह्मणों को देखा, जो पेड़ के नीचे बैठकर भगवान सत्यनारायण की पूजा कर रहे थे। ब्राह्मण पूरे श्रद्धा-भाव से पूजा-अर्चना कर रहे थे और सत्यनारायण व्रत की महिमा का गुणगान कर रहे थे।

लकड़हारे ने यह दृश्य देखा और ब्राह्मणों से पूछा, “आप लोग किसकी पूजा कर रहे हैं और यह किस व्रत की बात हो रही है?”

तब ब्राह्मणों ने उसे बताया, “हम भगवान सत्यनारायण की पूजा कर रहे हैं। यह व्रत अत्यंत फलदायक है। जो भी व्यक्ति सच्चे मन से भगवान सत्यनारायण का व्रत करता है, उसके जीवन में सुख, समृद्धि और शांति का वास होता है। उसकी सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं, और वह जीवन के सभी दुखों से मुक्त हो जाता है।”

ब्राह्मणों की बातें सुनकर लकड़हारे के मन में भगवान सत्यनारायण का व्रत करने की इच्छा उत्पन्न हुई। लेकिन उसने सोचा कि वह बहुत गरीब है, उसके पास इतना धन नहीं है कि वह विधिपूर्वक पूजा कर सके।

फिर भी, उसने मन में संकल्प लिया कि अगर भगवान उसे धन प्राप्त होने का कोई साधन देंगे, तो वह अवश्य सत्यनारायण व्रत करेगा।
उस दिन, लकड़हारा जब जंगल से लकड़ी काटकर वापस बाजार गया, तो उसकी लकड़ियाँ पहले की अपेक्षा अधिक मूल्य पर बिक गईं।

उसे अप्रत्याशित रूप से अधिक धन प्राप्त हुआ। उसने सोचा कि यह भगवान सत्यनारायण की कृपा है, और उसने तुरंत व्रत करने का निश्चय किया।

लकड़हारे ने भगवान सत्यनारायण का व्रत विधिपूर्वक किया और पूरी श्रद्धा से उनकी पूजा की। पूजा पूरी होने के बाद, उसके जीवन में अचानक बदलाव आने लगे।

उसकी गरीबी समाप्त हो गई, और उसे अपार धन और समृद्धि की प्राप्ति हुई। धीरे-धीरे वह संपन्न व्यक्ति बन गया, और उसके जीवन में सुख और शांति का वास हुआ।

इस व्रत के प्रभाव से वह बूढ़ा लकड़हारा धन पुत्र आदि से युक्त होकर संसार के समस्त सुख भोग अंत काल में बैकुंठ धाम चला गया।

॥ इति श्री सत्यनारायण व्रत कथा का द्वितीय अध्याय संपूर्ण ॥

श्रीमन्न नारायण-नारायण-नारायण।
भज मन नारायण-नारायण-नारायण।
श्रीमन्न नारायण-नारायण-नारायण।
श्री सत्यनारायण भगवान की जय॥

error: Content is protected !!