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श्री सत्यनारायण व्रत कथा-पंचम अध्याय | Shri Satyanarayan Vrat Katha-Pancham Adhyay

श्री सत्यनारायण व्रत कथा

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श्री सत्यनारायण व्रत कथा-पंचम अध्याय | Shri Satyanarayan Vrat Katha-Pancham Adhyay

सूत जी बोले–हे ऋषियों ! मैं और एक कथा सुनाता हूँ।

प्राचीन समय में तुंगध्वज नामक एक शक्तिशाली और पराक्रमी राजा था। वह अपने राज्य में बहुत प्रसिद्ध था और उसके राज्य में प्रजा सुखी और संपन्न थी। परंतु राजा तुंगध्वज को अपने धन और वैभव का बहुत घमंड था।

वह हमेशा सोचता था कि उसके राज्य में जितनी समृद्धि है, वह सिर्फ उसकी शक्ति और परिश्रम के कारण है। धीरे-धीरे, उसका अहंकार इतना बढ़ गया कि वह भगवान की पूजा और धार्मिक कृत्यों को तुच्छ समझने लगा।

एक दिन, जब राजा तुंगध्वज अपने राज्य में भ्रमण कर रहा था, उसने देखा कि कुछ गांव वाले एक पेड़ के नीचे सत्यनारायण भगवान की पूजा कर रहे हैं। पूजा में लोग भक्तिभाव से भगवान का गुणगान कर रहे थे और सत्यनारायण व्रत की कथा का पाठ कर रहे थे।

राजा ने यह दृश्य देखा और उसके मन में अहंकार जाग गया। उसने सोचा कि यह ग्रामीण लोग भगवान की पूजा करके अपना समय बर्बाद कर रहे हैं। राजा ने न केवल पूजा में भाग लेने से इंकार किया, बल्कि उसने उन ग्रामीणों की पूजा का अपमान भी किया।

राजा तुंगध्वज के इस अहंकार और भगवान सत्यनारायण की पूजा का अपमान करने के कारण भगवान ने उसे दंड देने का निश्चय किया। अचानक राजा के राज्य में अकाल और संकट छा गए। उसकी फसलें सूखने लगीं, और राज्य की समृद्धि धीरे-धीरे खत्म हो गई। प्रजा में असंतोष फैलने लगा और राजा का वैभव कम होने लगा।

राजा तुंगध्वज को यह समझ में नहीं आ रहा था कि उसके राज्य में यह संकट क्यों आ रहा है। उसे अपने अहंकार और भगवान की पूजा का अपमान करने की गलती का एहसास नहीं हुआ।

कुछ समय बाद, राजा को अपने पुराने गुरुओं और विद्वानों ने यह बताया कि यह सब उसके द्वारा भगवान सत्यनारायण की पूजा का अपमान करने के कारण हो रहा है।

राजा को अपनी भूल का एहसास हुआ और उसने तुरंत भगवान सत्यनारायण से माफी मांगने का निश्चय किया।
राजा ने श्रद्धा और भक्ति से सत्यनारायण व्रत करने का संकल्प लिया और विधिपूर्वक पूजा की। उसने पूरे मन और विश्वास के साथ सत्यनारायण भगवान की पूजा की और उनसे अपने कृत्यों के लिए क्षमा मांगी।

भगवान सत्यनारायण राजा की भक्ति और पश्चाताप से प्रसन्न हुए और उसकी सभी समस्याओं को दूर कर दिया। उसके राज्य में फिर से समृद्धि लौट आई। फसलें हरी-भरी हो गईं, प्रजा फिर से खुशहाल हो गई, और राजा का वैभव लौट आया।

राजा तुंगध्वज ने तब से यह निश्चय किया कि वह हमेशा सत्य और धर्म के मार्ग पर चलेगा और भगवान की पूजा को सर्वोपरि मानेगा।

हे श्रेष्ठ मुनियों ! जो व्यक्ति नित्य भगवान सत्यनारायण की इस व्रत-कथा को पढ़ता है, सुनता है, भगवान सत्यनारायण की कृपा से उसके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं।
हे मुनीश्वरों ! पूर्वकाल में जिन लोगों ने भगवान सत्यनारायण का व्रत किया था, उसके अगले जन्म का वृतान्त कहता हूं, आप लोग सुनें।

महान प्रज्ञा सम्पन्न शतानन्द नाम के ब्राह्मण सत्यनारायण व्रत करने के प्रभाव से दूसरे जन्म में सुदामा नामक ब्राह्मण हुए और उस जन्म में भगवान श्रीकृष्ण का ध्यान करके उन्होंने मोक्ष प्राप्त किया।
लकड़हारा भिल्ल गुहों का राजा हुआ और अगले जन्म में उसने भगवान श्रीराम की सेवा करके मोक्ष प्राप्त किया।
महाराज उल्कामुख दूसरे जन्म में राजा दशरथ हुए, जिन्होंने श्री रंगनाथजी की पूजा करके अन्त में वैकुण्ठ प्राप्त किया।
इसी प्रकार धार्मिक और सत्यव्रती साधु पिछले जन्म के सत्यव्रत के प्रभाव से दूसरे जन्म में मोरध्वज नामक राजा हुआ। उसने आरे से चीरकर अपने पुत्र की आधी देह भगवान विष्णु को अर्पित कर मोक्ष प्राप्त किया।
महाराजा तुंगध्वज जन्मान्तर में स्वयंभू मनु हुए और भगवत सम्बन्धी सम्पूर्ण कार्यों का अनुष्ठान करके वैकुण्ठलोक को प्राप्त हुए।
जो गोपगण थे, वे सब जन्मान्तर में व्रज मण्डल में निवास करने वाले गोप हुए और सभी राक्षसों का संहार करके उन्होंने भी भगवान का शाश्वत धाम गोलोक प्राप्त किया।
इस प्रकार श्री स्कन्दपुराण के अन्तर्गत रेवाखण्ड में श्री सत्यनारायण व्रत कथा का यह पाँचवाँ अध्याय पूर्ण हुआ।

॥ इति श्री सत्यनारायण व्रत कथा का पंचम अध्याय संपूर्ण॥

श्रीमन्न नारायण-नारायण-नारायण।
भज मन नारायण-नारायण-नारायण।
श्रीमन्न नारायण-नारायण-नारायण।
श्री सत्यनारायण भगवान की जय॥

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