स्कंद माता व्रत कथा | Skanda Mata Vrat Katha

नवदुर्गा और नवरात्रि

नवदुर्गा | पाँचवाँ दिन

नवदुर्गा सनातन धर्म में माता दुर्गा अथवा माता पार्वती के नौ रूपों को एक साथ कहा जाता है।
इन नवों दुर्गा को पापों की विनाशिनी कहा जाता है, हर देवी के अलग अलग वाहन हैं, अस्त्र शस्त्र हैं परन्तु यह सब एक हैं।

दुर्गा सप्तशती ग्रन्थ के अन्तर्गत देवी कवच स्तोत्र में निम्नाङ्कित श्लोक में नवदुर्गा के नाम क्रमश: दिये गए हैं–

प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी
तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम् ।।
पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।
सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम् ।।
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा: प्रकीर्तिता:।
उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना ।।

देवी दुर्गा के नौ रूप होते हैं जिन्हें नवदुर्गा कहा जाता है।

प्रथम दिन: शैलपुत्री
दूसरा दिन: ब्रह्मचारिणी
तीसरा दिन: चंद्रघंटा
चौथा दिन: कुष्मांडा
पाँचवाँ दिन: स्कंदमाता
छठे दिन: कात्यायनी
सातवें दिन: कालरात्रि
आठवें दिन: महागौरी
नौवें दिन: मां सिद्धिदात्री

॥ स्कंदमाता ॥

नवरात्रि का पाँचवाँ दिन स्कंदमाता की उपासना का दिन होता है। मोक्ष के द्वार खोलने वाली माता परम सुखदायी हैं। माँ अपने भक्तों की समस्त इच्छाओं की पूर्ति करती हैं।
भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र कार्तिकेय को भी स्कंद के नाम से जाना जाता है। इसीलिए यह भी माना जाता है कि स्कंदमाता ही कार्तिकेय की माँ हैं क्योंकि स्कंदमाता ही पार्वती का रूप मानी जाती है।

॥ शोभा-स्वरूप ॥

स्कंदमाता की चार भुजाएँ हैं। इनके दाहिनी तरफ की नीचे वाली भुजा, जो ऊपर की ओर उठी हुई है, उसमें कमल पुष्प है। बाईं तरफ की ऊपर वाली भुजा में वरमुद्रा में तथा नीचे वाली भुजा जो ऊपर की ओर उठी है उसमें भी कमल पुष्प ली हुई हैं।
इनका वर्ण पूर्णतः शुभ्र है। ये कमल के आसन पर विराजमान रहती हैं। इसी कारण इन्हें पद्मासना देवी भी कहा जाता है। इनका वाहन सिंह (शेर) है।

इस देवी की चार भुजाएं हैं। ये दाईं तरफ की ऊपर वाली भुजा से स्कंद को गोद में पकड़े हुए हैं। नीचे वाली भुजा में कमल का पुष्प है।
बाईं तरफ ऊपर वाली भुजा में वरदमुद्रा में हैं और नीचे वाली भुजा में कमल पुष्प है। इनका वर्ण एकदम शुभ्र है। ये कमल के आसन पर विराजमान रहती हैं। इसीलिए इन्हें पद्मासना भी कहा जाता है। सिंह इनका वाहन है।

॥ पूजा विधि ॥

  • सर्वप्रथम नवदुर्गा पूजन हेतु घटस्थापना करें।
  • अब देवी माँ का आवाहन करें।
  • देवी माँ को पुष्प, चन्दन, अक्षत आदि अर्पित करें।
  • तत्पश्चात स्कंदमाता की कथा पढ़ें।
  • अब देवी स्कंदमाता की आरती करें।
  • अंत में सपरिवार माँ का आशीर्वाद ग्रहण करें।

स्कंदमाता व्रत कथा

पौराणिक कथाओं के अनुसार, बहुत समय पहले एक राक्षस रहता था जिसका नाम तारकासुर था। तारकासुर कठोर तपस्या कर रहा था।
उसकी तपस्या से भगवान ब्रह्मा प्रसन्न हो गए थे। वरदान में तारकासुर ने अपने अमर होने की इच्छा रखी। यह सुनकर भगवान ब्रह्मा ने उसे बताया कि इस धरती पर कोई अमर नहीं हो सकता।

तारकासुर निराश हो गया, जिसके बाद उसने यह वरदान मांगा कि भगवान शिव का पुत्र ही उसका वध कर सके।
तारकासुर ने यह धारणा बना रखी थी कि भगवान शिव कभी विवाह नहीं करेंगे और ना ही उनका कोई पुत्र होगा।

तारकासुर यह वरदान प्राप्त करने के बाद लोगों पर अत्याचार करने लगा। तंग आकर सभी देवता भगवान शिव से मदद मांगने लगे।
तारकासुर का वध करने के लिए भगवान शिव ने माता पार्वती से विवाह किया।

विवाह करने के पश्चात शिव-पार्वती का पुत्र कार्तिकेय हुआ। जब कार्तिकेय बड़ा हुआ तब उसने तारकासुर का वध कर दिया। इसलिए यह कहा जाता है कि स्कंदमाता कार्तिकेय की मां थीं।

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