सोमवती अमावस्या व्रत कथा | Somvati Amavsya Vrat Katha

Oct 29, 2023 | व्रत कथाएँ

॥ व्रत का महत्त्व ॥

सोमवती अमावस्या सोमवार को आने वाली अमावस्या को कहते हैं। इस दिन व्रत और पूजन करना वैवाहिक जीवन पर बड़ा गहरा प्रभाव डाल सकता है।
वैवाहिक जीवन मे प्रेम और सद्भाव बढ़ाने के लिए सुहागिन महिलाओं को यह व्रत करना चाहिए। इससे गृह क्लेशों से मुक्ति मिलती है। सुख समृद्धि प्राप्त होती है।

सोमवती अमावस्या के दिन व्रत, पूजन करने और पितरों को जल तिल देने से बहुत पुण्य मिलता है। यह तिथि पितरों की तिथि मानी जाती है।
गणित के प्रायिकता सिद्धांत के अनुसार अमावस्या वर्ष में एक अथवा दो बार ही सोमवार के दिन हो सकती है। परन्तु समय चक्र के अनुसार अमावस्या का सोमवती होना बिल्कुल अनिश्चित है।

॥ सोमवती अमावस्या मान्यता॥

प्रथम मान्यता के अनुसार: सोमवती अमावस्या के दिन महिलाएँ तुलसी माता की 108 परिक्रमा लगाते हुए कोई भी वस्तु, फल दान करने का संकल्प लेतीं हैं।

दूसरी मान्यता के अनुसार: सोमवती अमावस्या के दिन महिलाएँ पीपल के व्रक्ष की 108 परिक्रमा करतीं हैं, तथा अखंड सौभाग्य की कमाननाएँ करती हैं।
साथ ही साथ, श्री गौरी-गणेश एवं सोमवती व्रत कथा पाठ के साथ वस्तु अथवा फल दान करने का संकल्प लेतीं हैं। पीपल के पेड़ में सभी देवों का वास माना गया है अतः इस मत के अनुसार पीपल की पूजा की जाती है।

॥ पूजा विधि ॥

  • इस दिन सुबह सूर्योदय से पहले स्नान कर लेना चाहिए। स्नान पानी मे गंगाजल डालकर करना चाहिए ।
  • पूजा वाली जगह को जल गोबर आदि से पवित्र कर लें। कलश स्थापित करने के लिए अष्ट दल कमल बनायें। इस पर कलश रखें कलश मे पानी भरें।
  • उसमे चावल, पुष्प, हल्दी, दक्षिणा, सुपारी डालकर ढक्कन लगाकर उस पर चावल रख दें।
  • उस पर दीपक रख दें । दीपक मे मौली की बत्ती लगाएं ( रूई की नहीं )।
  • सुपारी पर मौली लपेट कर उसे गणेश जी के रूप मे स्थापित कर दें।
  • गौरी माता की स्थापना के लिए छोटी मूर्ति लें अथवा गोबर से बनाकर स्थापित कर लें।
  • पूजन आसन पर बैठ कर करें।
  • सबसे पहले खुद पर तीन बार जल छिड़क कर खुद को पवित्र करें ।
  • इसके बाद दीपक जला लें।
  • फिर व्रत का संकल्प करें।
  • पहले कलश का पूजन करने के लिए जल छिड़कें, रोली, मौली, पुष्प, नेवेद्य आदि अर्पित करें। दक्षिणा अर्पित करें।
  • गणेश जी का आवाहन करें।
  • सबसे पहले गणेश जी का पूजन षोडशोपचार विधि से करें।
  • जल छिड़कें, पंचामृत, जनेऊ, चन्दन, रोली, मोली, सिन्दूर, सुपारी, लौंग, पान, चावल, पुष्प, इलायची, मिष्ठान, फल, नैवेद्य, दक्षिणा आदि अर्पित करें। आरती करें।
  • माँ गौरी का आवाहन करें ।
  • जल छिड़कें, पंचामृत, शृंगार सामग्री, चन्दन, रोली, मोली, सिन्दूर, सुपारी, लौंग, पान, चावल, पुष्प, इलायची, मिष्ठान, फल, नैवेद्य, दक्षिणा आदि अर्पित करें। आरती करें।
  • इसी प्रकार तुलसी का पूजन करें। इसके बाद 108 परिक्रमा लगायें ।
  • पीपल की पूजा की है तो पेड़ पर सूत लपेट दें। अपने सामर्थ्य के अनुसार फल, मिठाई, सुहाग सामग्री आदि की परिक्रमा दी जा सकती है । 108 परिक्रमा लगायें। परिक्रमा करते समय ” ॐ श्री वासूदेवाय नमः ” का जाप करें ।
  • इसके बाद सोमवती अमावस्या की कहानी सुने या कहें।
  • पूजन के बाद गणेश जी, माँ गौरी आदि को धन्यवाद करते हुए विदा होने की प्रार्थना करें ।

॥ सोमवती अमावस्या व्रत कथा ॥

एक गरीब ब्राह्मण परिवार था। उस परिवार में पति-पत्नी के अलावा एक पुत्री भी थी। वह पुत्री धीरे-धीरे बड़ी होने लगी। उस पुत्री में समय और बढ़ती उम्र के साथ सभी स्त्रियोचित गुणों का विकास हो रहा था।
वह लड़की सुंदर, संस्कारवान एवं गुणवान थी। किंतु गरीब होने के कारण उसका विवाह नहीं हो पा रहा था। एक दिन उस ब्राह्मण के घर एक साधु महाराज पधारें।

वो उस कन्या के सेवाभाव से काफी प्रसन्न हुए। कन्या को लंबी आयु का आशीर्वाद देते हुए साधु ने कहा कि इस कन्या के हथेली में विवाह योग्य रेखा नहीं है।
तब ब्राह्मण दम्पति ने साधु से उपाय पूछा, कि कन्या ऐसा क्या करें कि उसके हाथ में विवाह योग बन जाए।

साधु ने कुछ देर विचार करने के बाद अपनी अंतर्दृष्टि से ध्यान करके बताया कि कुछ दूरी पर एक गांव में सोना नाम की धोबिन जाति की एक महिला अपने बेटे और बहू के साथ रहती है, जो बहुत ही आचार-विचार और संस्कार संपन्न तथा पति परायण है।
यदि यह कन्या उसकी सेवा करे और वह महिला इसकी शादी में अपने मांग का सिंदूर लगा दें, उसके बाद इस कन्या का विवाह हो तो इस कन्या का वैधव्य योग मिट सकता है।

साधु ने यह भी बताया कि वह महिला कहीं आती-जाती नहीं है। यह बात सुनकर ब्राह्मणी ने अपनी बेटी से धोबिन की सेवा करने की बात कही।
अगल दिन कन्या प्रात: काल ही उठ कर सोना धोबिन के घर जाकर, साफ-सफाई और अन्य सारे करके अपने घर वापस आ जाती।

एक दिन सोना धोबिन अपनी बहू से पूछती है कि- तुम तो सुबह ही उठकर सारे काम कर लेती हो और पता भी नहीं चलता।
बहू ने कहा- मां जी, मैंने तो सोचा कि आप ही सुबह उठकर सारे काम खुद ही खत्म कर लेती हैं। मैं तो देर से उठती हूं। इस पर दोनों सास-बहू निगरानी करने लगी कि कौन है जो सुबह ही घर का सारा काम करके चला जाता है।

कई दिनों के बाद धोबिन ने देखा कि एक कन्या मुंह अंधेरे घर में आती है और सारे काम करने के बाद चली जाती है। जब वह जाने लगी तो सोना धोबिन उसके पैरों पर गिर पड़ी, पूछने लगी कि आप कौन है और इस तरह छुपकर मेरे घर की चाकरी क्यों करती हैं?
तब कन्या ने साधु द्बारा कही गई सारी बात बताई। सोना धोबिन पति परायण थी, उसमें तेज था। वह तैयार हो गई।

सोना धोबिन के पति थोड़ा अस्वस्थ थे। इसलिए उसने अपनी बहू से कहा कि वह उसके पति का ध्यान रखे जब तक वह वापस ना आ जाएँ। धोबिन और वह कन्या वहाँ से ब्राह्मण के घर आ जाते हैं।
सोना धोबिन ने जैसे ही अपने मांग का सिन्दूर उस कन्या की मांग में लगाया, उसका पति ज्यादा अस्वस्थ हो जाता है।

जब इस बात का पता धोबिन को लगता है तो वह जल लिये बिना ही वहां से यह सोचकर निकल जाती है कि रास्ते में कहीं पर भी जहां पर उसे पीपल का पेड़ मिलेगा तो वह पेड़ को परिक्रमा देकर ही जल को ग्रहण करेगी।
वह सोमवती अमावस्या का दिन था। पुए-पकवान जो कि उसे उस ब्राह्मण के घर से मिले थे। उसकी जगह पर उसने ईंट के टुकड़ों से 108 बार भंवरी और 108 बार पीपल के पेड़ की परिक्रमा देकर जल को ग्रहण किया।
ऐसा करते ही उसके पति के अस्वस्थ शरीर में वापस जान आ गई।

इसीलिए सोमवती अमावस्या के दिन से शुरू करके जो व्यक्ति हर अमावस्या के दिन परिक्रमा देता है, उसके सुख और सौभाग्य में वृद्धि होती है।
पीपल के पेड़ में सभी देवों का वास होता है। अतः जो व्यक्ति हर अमावस्या को न कर सके, वह सोमवार को पड़ने वाली अमावस्या के दिन 108 वस्तुओं कि परिक्रमा देकर सोना धोबिन और गौरी-गणेश का पूजन करता है, उसे अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है।

ऐसी प्रचलित परंपरा है कि पहली सोमवती अमावस्या के दिन धान, पान, हल्दी, सिंदूर और सुपाड़ी की परिक्रमा दी जाती है।
उसके बाद की सोमवती अमावस्या को अपने सामर्थ्य के हिसाब से फल, मिठाई, सुहाग सामग्री, खाने की सामग्री इत्यादि की परिक्रमा दी जाती है और फिर परिक्रमा पर चढाया गया सामान किसी सुपात्र ब्राह्मण, ननंद या भांजे को दिया जा सकता है।

॥ उद्यापन विधि ॥

  • सोमवती अमावस्या का उद्यापन 12 वर्ष तक सोमवती अमावस्या का व्रत करने के बाद किया जाता हैं । उद्यापन 6 वर्ष के बाद या शुरू मे भी किया जा सकता है ।
  • उद्यापन मे विधिवत पूजन किया जाता है । पंचरत्न की वेदी बनाई जाती है । पंचरत्न पाँच तत्वों के प्रतीक होते हैं । वेदी पर सोने से बना पीपल वृक्ष स्थापित किया जाता है ।
  • भगवान विष्णु गरुड़ सहित तथा माँ लक्ष्मी की स्थापना कर उनकी पूजा की जाती है । भोग लगाया जाता है ।
  • रात को विष्णु भगवान के भजन गाकर जागरण किया जाता है । दूसरे दिन सुबह हवन आदि किया जाता है ।
  • ब्राह्मण भोजन करवाया जाता है । दक्षिणा , वस्त्र आदि देकर उन्हे विदा किया जाता हैं ।
  • पूजन के समय दान वस्तु के साथ 108 परिक्रमा लगाई जाती है । फिर वो 108 वस्तु दान की जाती है ।
  • इसके अलावा धोबन को दान की वस्तुएं दी जाती हैं । जिसमे बाल्टी , मग , रस्सी , साबुन , ब्रश , धोवना , धोबन के लिए वस्त्र , चप्पल , शृंगार का सामान आदि शामिल किए जाते हैं ।
  • धोबन और धोबी के भोजन की व्यवस्था की जाती है । उन्हे दक्षिणा दी जाती है ।
  • उद्यापन करना जरूरी होता है । इसी से व्रतराज का सम्पूर्ण लाभ प्राप्त होता है ।
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