रविवार व्रत कथा | Sunday Vrat Katha

साप्ताहिक व्रत कथा

॥ व्रत का महत्त्व ॥

यह व्रत सभी मनोकामना की पूर्ति करने वाला तथा मान सम्मान में वृद्धि शत्रु का क्षय करने वाला माना जाता है। सुबह नहा धोकर स्वच्छ कपडे पहन कर पवित्र स्थान पर शांत मन से परमात्मा का स्मरण करते हुए सूर्य देव की पूजा की जाती है।

एक समय भोजन करते है जिसमे तेल और नमक नहीं लेते। भोजन या फलाहार सूर्यास्त से पहले कर लेना चाहिए यदि सूर्यास्त हो चुका हो तो दूसरे दिन सूर्योदय पर अर्ध्य देने के बाद भोजन किया जाता है।

॥ पूजा विधि ॥

पूजन सामग्री को व्यवस्थित रूप से ( पूजन शुरू करने के पूर्व ) पूजा स्थल पर जमा कर रख लें, जिससे पूजन में अनावश्यक व्यवधान न हो।
यदि इनमे से कुछ सामग्री ना जुटा सकें तो कोई बात नहीं, जितनी सामग्री सहर्ष जुटा सकें उसी से भक्ति भावना से पूजा करें। क्योंकि कहा जाता है भगवान भावना से प्रसन होते है, सामग्री से नहीं।

  • चौकी, रोली, मौली, अक्षत ( साबुत चावल )
  • दीपक, शुद्ध देशी घी, रुई, धूपबत्ती, फूल, अष्टगंध
  • अगरबत्ती, कपूर, तुलसीदल, जनेऊ, जल का कलश।
  • प्रसाद के लिए गेंहू के आटे की पंजीरी, फल, दूध, मिठाई, नारियल, पंचामृत, सूखे मेवे, शक्कर, पान में से जो भी हो सवाया लें।
  • दक्षिणा।

॥ पूजन का मंडप ॥

पूजन को शुरु करने से पहले मंडप तैयार कर लें।

  • सबसे पहले पूजा के स्थान को साफ कर लें।
  • अब पूर्व या उत्तर की ओर मुख कर बैठे।
  • पूजा वाले स्थान को साफ करके चौकी स्थापित करनी चाहिए।
  • चौकी पर शुभ चिह्न स्वस्तिक बनाएं।
  • चौकी पर साफ लाल रंग का कपड़ा बिछाएं।
  • अब भगवान श्री गणेश एवं भगवान विष्णु की तस्वीर रखें। श्री कृष्ण या सत्यनारायण की प्रतिमा की भी स्थापना कर सकते है।
  • अब बायी ओर दीपक रखें।
  • चौकी के सामने पूजन की थाली जल भरकर कलश रखें।
  • पूजन की थाली में रोली से एक स्वास्तिक बनाते है। इस थाली में ही, फूल, मिठाई, रोली, मौली, सुपारी, पान, चावल, कपूर, धूप, अगरबत्ती, एक दीपक, जल कलश रखे

रविवार व्रत कथा

एक वृद्धा थी। वह हर रविवार सुबह गोबर से घर को लीप कर शुध्द करती, स्नान करती, भगवान की पूजा करती, भगवान को भोग लगाती उसके बाद खुद भोजन करती थी।
इससे उसे भगवान की कृपा प्राप्त थी। उसे किसी प्रकार का दुःख या तकलीफ नहीं थे और वह आनंदपूर्वक अपना जीवन व्यतीत कर रही थी।

उसकी पड़ोसन जिसके यहाँ से वृद्धा गोबर लाती थी उससे जलने लगी और उसने अपनी गाय को अंदर बंद कर दिया ताकि वृद्धा गोबर न ले जा सके।
इस वजह से रविवार के दिन बुढ़िया अपने घर को लीप नहीं पाई । वह पूजा नहीं कर पाई, ना भोजन बना सकी, ना भगवान को भोग लगा सकी और ना ही उसने खुद भोजन किया।
रात को वह भूखी ही सो गई। उसके सपने में भगवान आये और भोग ना लगाने का कारण पूछा तो उसने बताया कि गोबर नहीं मिल पाने के कारण वह भोग नहीं लगा सकी।

भगवान् बोले –हे माता तुम हर रविवार पूरा घर गोबर से लीपकर भोजन बनाकर मुझे भोग लगाने के बाद भोजन करती हो, इससे मैं बहुत प्रसन्न हूँ।
मैं निर्धन को धन और बाँझ स्त्रियों को पुत्र देकर उनके दुःख दूर करता हूँ। अतः मैं तुम्हे सभी इच्छाएँ पूरी करने वाली गाय दे रहा हूँ ऐसा कहकर भगवान अंतर्ध्यान हो गये।

सुबह जब वृद्धा की आँख खुली तो उसने देखा कि आँगन में अति सुन्दर गाय और बछड़ा बंधे हुए थे। यह देखकर वृद्धा बहुत खुश हुई। उसने गाय बछड़े के लिए चारे की व्यवस्था कर दी।
जब पड़ोसन ने वहां गाय और बछड़ा देखे तो उसे बहुत जलन हुई। तभी उसने देखा कि गाय ने सोने का गोबर किया।

वह चुपचाप जाकर सोने का गोबर उठा लाई और उसकी जगह अपनी गाय का गोबर रख आई। इस तरह वह रोजाना वृद्धा की नजर बचाकर सोने का गोबर ले जाती।

अपने भक्त के साथ चालाकी होते देख भगवान ने जोर की आंधी चला दी। डरकर वृद्धा ने गाय और बछड़े को अंदर बांध दिया। सुबह गाय ने सोने का गोबर किया तो वह आश्चर्य पड़ गई और रोज गाय को अंदर ही बांधने लगी।
इससे पड़ोसन तिलमिलाकर गई। उसे कोई रास्ता नहीं सूझा तो उसने ईर्ष्या वश राजा को शिकायत करके कहा कि ऐसी गाय तो सिर्फ राजा के पास होनी चाहिए।
क्योकि राजा प्रजा की देखभाल करता है। बुढ़िया इतने सोने का क्या करेगी।

राजा ने अपने सैनिकों को उस गाय को लाने का आदेश दे दिया। वृद्धा सुबह भगवान को भोग लगाने के बाद जैसे ही भोजन करने लगी राजा के सैनिक वहां पहुँच गए और गाय बछड़े को ले गए।
वृद्धा बहुत रोई गिड़गिड़ाई पड़ोसियों से मदद की गुहार की लेकिन कुछ नहीं हो सका।
वृद्धा दिन भर गाय के वियोग में रोती रही और वह भोजन भी नहीं कर पाई। रात भर भूखी प्यासी भगवान से गाय को वापस करवाने की प्रार्थना करती रही।

राजा गाय को देखकर बहुत खुश हुआ। लेकिन दूसरे ही दिन उसकी ख़ुशी गायब हो गई जब उसने पाया कि सुबह दुर्गन्ध से सारा महल भर गया।
गाय ने सारा महल बदबूदार गोबर से भर दिया था। राजा घबरा गया।
रात को सपने में आकर भगवान ने राजा से कहा –हे राजन ! वृद्धा के रविवार के व्रत से प्रसन्न होकर मैंने उसे यह गाय दी थी। गाय उस वृद्धा को वापस लौटा देने ही तुम्हारी भलाई है।

सुबह राजा ने वृद्धा को बुलवाकर सम्मान सहित गाय बछड़ा वापस किये और साथ ही बहुत सा धन दिया तथा अपने कार्य के लिए क्षमा मांगी।

राजा ने ईर्ष्यालु पड़ोसन को बुलवाकर दण्डित किया। तब जाकर राजा के महल से गन्दगी और बदबू दूर हुई।
उसी दिन राजा ने नगर वासियों को राज्य की समृद्धि और समस्त मनोकामना पूर्ण करने के लिए रविवार का व्रत करने का आदेश दिया।

रविवार का व्रत करने से बीमारी और प्रकृति के प्रकोप से बचे रहकर नगरवासी सुखी जीवन व्यतीत करने लगे।

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