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दशहरा-विजयदशमी | Vijayadashami-Dussehra 2024

नवदुर्गा और नवरात्रि

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दशहरा-विजयदशमी | Vijayadashami-Dussehra 2024

दशहरा (या विजयदशमी) भारत में एक महत्वपूर्ण त्योहार है, जिसे बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। यह त्योहार मुख्य रूप से दो प्रमुख घटनाओं का स्मरण करता है:

भगवान राम द्वारा रावण का वध: हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार, भगवान राम ने इस दिन लंका के राजा रावण को हराया था, जिसने राम की पत्नी सीता का अपहरण किया था। यह जीत सच्चाई और धर्म की विजय का प्रतीक है।

मां दुर्गा की महिषासुर पर विजय: दुर्गा पूजा के दसवें दिन को भी दशहरा के रूप में मनाया जाता है, जब देवी दुर्गा ने महिषासुर नामक दैत्य का वध किया था। यह शक्ति और नारीत्व की विजय का प्रतीक है।

॥ महत्त्व ॥

सच्चाई और नैतिकता: दशहरा हमें यह सिखाता है कि जीवन में सच्चाई और नैतिकता की जीत हमेशा होती है। भगवान राम और मां दुर्गा हमें बुराई के खिलाफ संघर्ष करने की प्रेरणा देते हैं।

धार्मिक महत्ता: यह दिन धर्म और सत्य की महत्ता को दर्शाता है और यह संदेश देता है कि कितनी भी बड़ी बुराई क्यों न हो, अंततः उसकी हार होती है।

सांस्कृतिक एकता: दशहरा अलग-अलग क्षेत्रों में विभिन्न रूपों में मनाया जाता है। उदाहरण के लिए, उत्तर भारत में रामलीला का मंचन होता है, जबकि पश्चिम बंगाल और अन्य पूर्वी राज्यों में दुर्गा पूजा का विसर्जन होता है।

सामाजिक संदेश: दशहरा बुराई के प्रतीकों (रावण, कुंभकर्ण और मेघनाद) के पुतलों का दहन करके यह सिखाता है कि हमें अपने भीतर की बुराइयों का भी अंत करना चाहिए, जैसे कि अहंकार, क्रोध, और अधर्म।

परंपरा और आनंद: यह एक ऐसा समय होता है जब लोग परिवार और दोस्तों के साथ मिलकर उत्सव मनाते हैं। मेले, मिठाइयाँ, रामलीला के आयोजन, और आतिशबाजी का मज़ा लिया जाता है।

॥ अर्जुन वृक्ष ॥

अर्जुन वृक्ष का दशहरा (विजयदशमी) के अवसर पर विशेष महत्व है, विशेष रूप से महाभारत से जुड़े संदर्भ में। अर्जुन वृक्ष को पवित्र और शक्तिशाली माना जाता है, और इसकी पूजा इस दिन शुभ मानी जाती है। इसका महत्व निम्नलिखित कारणों से है:

महाभारत का संदर्भ:
महाभारत के वनवास के समय, पांडवों को अज्ञातवास में जाना पड़ा था। उस समय अर्जुन ने अपने दिव्य अस्त्र-शस्त्रों को सुरक्षित रखने के लिए अर्जुन वृक्ष (जिसे कुछ क्षेत्रों में शमी वृक्ष भी कहा जाता है) की शाखाओं में छिपा दिया था। जब अज्ञातवास समाप्त हुआ, तो उन्होंने इसी वृक्ष से अपने शस्त्रों को निकाला और युद्ध में विजय प्राप्त की। यह विजय अच्छाई और सत्य की जीत का प्रतीक है, इसलिए विजयदशमी के दिन अर्जुन वृक्ष की पूजा की जाती है।

शौर्य और विजय का प्रतीक:
अर्जुन वृक्ष वीरता और विजय का प्रतीक माना जाता है। इस दिन लोग इस वृक्ष की पूजा करके शौर्य, साहस, और विजयी होने का आशीर्वाद प्राप्त करने की कामना करते हैं। खासकर योद्धा वर्ग और सैनिक इसके नीचे शस्त्रों की पूजा करते हैं, जिसे “शस्त्र पूजा” कहा जाता है।

सकारात्मक ऊर्जा और स्वास्थ्य:
अर्जुन वृक्ष आयुर्वेद में भी अत्यधिक महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसके पत्ते और छाल औषधीय गुणों से भरपूर होते हैं। यह दिल के रोगों के उपचार में उपयोगी माना जाता है, इसलिए इसे स्वास्थ्य, शक्ति और सकारात्मक ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है। विजयदशमी पर इस वृक्ष की पूजा करके लोग जीवन में सकारात्मक ऊर्जा और अच्छे स्वास्थ्य की कामना करते हैं।

धन और समृद्धि का प्रतीक:
अर्जुन वृक्ष को समृद्धि और सौभाग्य का प्रतीक भी माना जाता है। दशहरा के दिन इसकी पूजा करने से माना जाता है कि घर में लक्ष्मी (धन और समृद्धि) आती हैं और परिवार की उन्नति होती है।

पर्यावरण संरक्षण का संदेश:
इस त्योहार के दौरान अर्जुन वृक्ष की पूजा पर्यावरण संरक्षण का भी संदेश देती है। यह वृक्ष न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि पर्यावरण के लिए भी फायदेमंद है।

निष्कर्ष:
अर्जुन वृक्ष दशहरा के त्योहार पर वीरता, विजय, स्वास्थ्य और समृद्धि का प्रतीक है। इस वृक्ष की पूजा महाभारत के पौराणिक कथाओं और इसके औषधीय गुणों के कारण की जाती है, जो लोगों को अपने जीवन में अच्छाई, शक्ति और समृद्धि की प्राप्ति का संदेश देता है।

पूजन सामग्री

पूजा स्थल को साफ करें और उसे सजाएं। इस दिन पूजा आमतौर पर घर के मंदिर या किसी पवित्र स्थल पर की जाती है।

पूजा सामग्री एकत्र करें:

हल्दी, कुमकुम, चावल (अक्षत), फल, फूल, दूर्वा घास, पान के पत्ते, सुपारी, अगरबत्ती, दीपक, घी, और मिठाई (प्रसाद के लिए)

एक जल भरा लोटा, पवित्र धागा (मौली), कलावा

भगवान राम, माता सीता, लक्ष्मण और हनुमान की मूर्तियाँ या चित्र (अगर उपलब्ध हों)

पूजन की विधि

पूजा स्थल की तैयारी:
सबसे पहले घर के पूजा स्थल या साफ स्थान को गंगाजल या पवित्र जल से शुद्ध करें।
पूजा स्थल पर भगवान श्रीराम, मां दुर्गा और हनुमान जी की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।

स्वच्छता और ध्यान:
सबसे पहले, स्वयं को स्नान कर स्वच्छ करें और नए या साफ वस्त्र धारण करें।
पूजा स्थल पर बैठकर भगवान का ध्यान करें और मन को शांत करें।

कलश स्थापना (घट स्थापना):
एक तांबे या मिट्टी के बर्तन (कलश) में पानी भरें और उसके ऊपर आम के पत्ते रखें। उस पर एक नारियल रखें और उसके चारों ओर मौली (पवित्र धागा) बांधें। यह कलश देवी शक्ति का प्रतीक होता है।

दीप जलाना:
दीपक में घी भरकर उसे प्रज्वलित करें और पूजा स्थल पर रखें। यह शुभता का प्रतीक होता है।

भगवान गणेश की पूजा:
सबसे पहले भगवान गणेश का ध्यान करें, उन्हें अक्षत, फूल और जल अर्पित करें। गणेश जी विघ्नहर्ता हैं, और किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत में उनकी पूजा की जाती है।

दुर्गा माता और राम-सीता की पूजा:
माता दुर्गा की पूजा करें और उन्हें हल्दी-कुमकुम, फूल, अक्षत, जल, और मिठाई अर्पित करें और ध्यान करें।
भगवान राम, माता सीता, लक्ष्मण और हनुमान जी की पूजा करें। उन्हें भी कुमकुम, फूल, अक्षत, जल, और मिठाई अर्पित करें और ध्यान करें।

हनुमान जी की पूजा:
हनुमान जी को भगवान राम का सबसे बड़ा भक्त माना जाता है, इसलिए दशहरे पर उनकी पूजा का विशेष महत्व है। उन्हें चंदन, सिंदूर और तेल चढ़ाएं।
हनुमान चालीसा का पाठ करें और उनके चरणों में फूल अर्पित करें।

अस्त्र-शस्त्र की पूजा:
विजयदशमी को शस्त्र पूजा का भी महत्व है। इस दिन अपने घर के अस्त्र-शस्त्र (जैसे कि तलवार, छड़ी आदि) की पूजा करें। इन पर कुमकुम, चावल और फूल अर्पित करें। यह शौर्य और वीरता का प्रतीक है।

आरती:
भगवान राम, मां दुर्गा और हनुमान जी की आरती करें।
पूरे परिवार को आरती में शामिल करें और अंत में सभी को आरती का प्रसाद वितरित करें।

विशेष मंत्र:
पूजा के दौरान आप “ॐ जयति जयति रामो रामेशो विजयति” जैसे मंत्रों का जाप कर सकते हैं। इससे पूजा का महत्व और अधिक बढ़ जाता है।

नीम के पत्ते और शमी वृक्ष:
दशहरे के दिन शमी वृक्ष (अर्जुन का पेड़) की पूजा का भी विशेष महत्व है। मान्यता है कि पांडवों ने इसी पेड़ के नीचे अपने अस्त्र-शस्त्र छुपाए थे। शमी वृक्ष के पत्तों को सोने के रूप में एक-दूसरे को भेंट किया जाता है।

प्रसाद अर्पण:
देवी-देवताओं को मिठाई और फल अर्पित करें और इसके बाद प्रसाद को घर के सभी सदस्यों में बांटें।

पूजा के बाद:
पूजा संपन्न होने के बाद घर के सभी सदस्य प्रसाद ग्रहण करें और बड़े-बुजुर्गों से आशीर्वाद लें।
इस दिन नए कार्यों की शुरुआत करना शुभ माना जाता है। आप कोई नया कार्य या नया व्यवसाय प्रारंभ कर सकते हैं।

रावण दहन:
दशहरा की शाम को रावण, कुंभकर्ण और मेघनाद के प्रतीकात्मक पुतलों का दहन किया जाता है। यह बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है।
रावण दहन से पहले उसकी पूजा की जाती है। पुतलों को कुमकुम, चावल और फूल अर्पित करें, और फिर उनका दहन करें।

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